यूरिक एसिड बढ़ने के क्या है लक्षण और कारण? जानें इसे कंट्रोल करने के आयुर्वेदिक उपाय

आज के समय में हर दूसरा व्यक्ति गलत लाइफस्टाइल और अनहेल्दी खानपान होने की वजह से कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहा है। कुछ तो ऐसी भी बीमारी होती हैं जिनके बारे में ज्यादातर लोग जानते तक नहीं हैं। ऐसी ही एक बीमारी है यूरिक एसिड। Uric acid शरीर में एक तरह का गंदा पदार्थ होता है जो हमारे खून में जमा होना शुरू हो जाता है। इसके कारण शरीर के कई हिस्सों में दर्द होने लगता है।  यूरिक एसिड के बढ़ने से ज्यादातर जोड़ों में दर्द, घुटनों में दर्द जैसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। वैसे तो बाजार में बढ़े हुए Uric acid को कम करने के लिए कई तरह की दवाइयाँ मौजूद हैं लेकिन आप शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि आप घर में ही कुछ आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनाकर बढ़े हुए यूरिक एसिड को कम कर सकते हैं। जी हां, आयुर्वेदिक उपायों को अपनाकर भी आप आसानी से बढ़े हुए यूरिक एसिड को कम करके जोड़ो के दर्द से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे?

यूरिक एसिड की समस्या कब होती है?

हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, यूरिक एसिड के बढ़ने से शरीर के जोड़ों में तेज दर्द होने लगता है. पहले सिर्फ बुजुर्गों में ही ऐसी समस्या देखने को मिलती थी लेकिन अब कम उम्र के लोग भी इसका शिकार होने लगे हैं। जब भी हम प्यूरिन युक्त फूड्स अधिक मात्रा में खाते हैं, तब खून में Uric acid की मात्रा बढ़ जाती है। हालांकि हमारी किडनी यूरिक एसिड को फिल्टर कर उसे यूरिन के माध्यम से शरीर के बाहर निकाल देती है लेकिन जब प्यूरिन की मात्रा बढ़ जाती है तो किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती है और यूरिक एसिड ब्लड में मिलने लगता है।

यूरिक एसिड क्या होता है?

यूरिक एसिड खून में पाया जाने वाला एक रसायन होता है। यूरिक एसिड का निर्माण प्यूरीनयुक्त खाद्य पदार्थों की पाचन प्रक्रिया के दौरान होता है। हमारा शरीर किडनी की मदद से यूरिक एसिड को फ़िल्टर करता है। फिर वह पेशाब के साथ शरीर से बाहर निकल देता है। दरअसल, जब शरीर में प्यूरीन का लेवल काफी ज्यादा बढ़ जाता है तो किडनी उसे ठीक से फ़िल्टर नहीं कर पाती है। ऐसे में शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर के कई हिस्सों में दर्द की शिकायत होने लगती है।

यूरिक एसिड बढ़ने से क्या खतरा हो सकता है? 

शरीर में यूरिक एसिड बढ़ना यानी बीमारियों का प्रवेश होना। यूरिक एसिड के बढ़ते ही जोड़ों में दर्द, सूजन, गाउट और गठिया जैसी बीमारी उतपन्न हो जाती हैं। साथ ही यूरिक एसिड किडनी के काम को भी प्रभावित कर देता है। यदि कोई व्यक्ति डायबिटीज या हार्ट का मरीज है, तो उसे और भी कई समस्याएँ हो सकती हैं। दरअसल, कई बार किडनी यूरिक एसिड को बाहर नहीं निकाल पाती है, ऐसे में यूरिक एसिड क्रिस्टल का रूप ले लेता है और फिर वह शरीर में जोड़ो के आसपास जमा होने लगता है। इससे शरीर में जोड़ो का दर्द उत्पन्न हो जाता है।

यूरिक एसिड बढ़ने के लक्षण क्या हैं?

  • जोड़ों में दर्द 
  • उंगलियों में सूजन-दर्द 
  • जोड़ों में गांठ की शिकायत
  • उठने-बैठने में परेशानी 
  • गुर्दे की पथरी 
  • थकान, बुखार और ठंड 

यूरिक एसिड को कम करने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

  • यूरिक एसिड बढ़ाने वाली दवाएं ना खाएं। 
  • कॉफी और चाय का सेवन कम करें। 
  • वजन कम करें। 
  • फाइबर रिच फूड और विटामिन सी डाइट में शामिल करें। 
  • प्यूरिन रिच फूड्स का सेवन करने से बचें।
  • नशीले पदार्थों से दूरी बनाकर रखें। 
  • एयरेटेड ड्रिंक्स में हाई शुगर होता है, जितना हो सके इनसे बचें.
  • ज्यादा फ्रक्टोज वाले फलों का सेवन ना करें। 
  • पालक, ब्रोकली, हरी मटर, आदि जैसी प्यूरीन वाली सब्जियां खाने से बचें। 
  • पानी ज्यादा मात्रा में पिएं।
  • मीट का सेवन ना करें। 
  • रोजाना एक्सरसाइज या व्यायाम करें।  
  • रात में जल्दी भोजन करने की कोशिश करें।

यूरिक एसिड को कम करने का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

आयुर्वेद के मुताबिक, शरीर में जब यूरिक एसिड बढ़ जाता है तो इससे पथरी और गठिया रोग होता है। हम आपको आज कुछ ऐसे आयुर्वेदिक नुस्खें बता रहे हैं जो  यूरिक एसिड के लक्षणों को दूर करने में बेहद असरदार साबित होते हैं। आइए जानते हैं इन आयुर्वेदिक नुस्खों के बारे में।

गिलोय 

गिलोय को सबसे शक्तिशाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटी माना जाता है। गिलोय इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के साथ-साथ Uric acid को कम करने के लिए भी काफी असरदार साबित हुई है। इससे शरीर में पित्त की मात्रा कम होती है और वात दोष भी कम होता है।

सौंठ और हल्दी

सौंठ और हल्दी का पाउडर शरीर में Uric acid को कम करने में मदद करता है। साथ ही इसके सेवन से जोड़ो के दर्द में भी काफी आराम मिलता है। आप चाहे तो सौंठ और हल्दी के पाउडर में पानी मिलाकर उसे दर्द वाली जगह पर भी लगा सकते हैं।

काली किशमिश

काली किशमिश के सेवन से हडिडयां मजबूत होती हैं। Uric acid से होने वाले दर्द से राहत पाने के लिए आप रोजाना रात में काली किशमिश को भिगोकर रख दें और सुबह इसका सेवन करें. इससे आपको काफी आराम मिलेगा।

नीम 

औषधीय गुणों से भरपूर नीम को कई बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। Uric acid के मरीजों के लिए भी ये काफी फायदेमंद है। आप नीम के पेस्ट को दर्द वाली जगह पर लगा लें, इससे दर्द और सूजन दोनों से ही राहत मिलेगी।

त्रिफला

भीभीतकी, हरीतकी और आंवला से मिलकर बनने वाला त्रिफला भी Uric acid के मरीजों के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। सुबह रोजाना खाली पेट त्रिफला पाउडर को एक ग्लास गर्म पानी में मिलाकर पीने से काफी आराम मिलेगा।

गोखरू 

गोखरू का फल शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। आप ताजे का सालभर पुराने गोखरू के फल को अच्छे से कुचलकर इसे पानी में भिगो दें और फिर इसे एक-दो दिन तक पी लें। हालांकि, तीन दिन से ज्यादा इस पानी का इस्तेमाल न करें।

वरूण चूर्ण

वरूण चूर्ण भी आयुर्वेद में सबसे शक्तिशाली और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर दवाई मानी जाती है। वरूण चूर्ण का सेवन करने से जोड़ो के दर्द और सूजन दोनों से राहत मिलती है। साथ ही ये ब्लड में Uric acid को बढ़ने से भी रोकता है।

मुस्ता 

मुस्ता भी Uric acid को कण्ट्रोल करने के लिए सबसे असरदार आयुर्वेदिक जड़ी बूटी मानी जाती है। आप मुस्ता को हल्का दरदरा पीस लें और फिर इसे रातभर पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उठकर आप इस पानी को अच्छे से उबालकर पी लें।

नींबू पानी 

नींबू में अधिक मात्रा में विटामिन-C पाया जाता है जो शरीर में एसिडिक प्रभाव पैदा करता है। इससे Uric acid का स्तर कम होने लगता है। रोजाना सुबह उठकर गुनगुने पानी में नींबू निचोड़कर उसका सेवन करने से आपको काफी फायदा पहुंचेगा।

कमर के निचले हिस्से में होने वाला दर्द ले सकता है गंभीर रूप, अपनाएँ ये घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खें

उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई तरह की परेशानियां होने लगती है। अब ना सिर्फ बुढ़ापे में बल्कि जवानी में भी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है बदलती लाइफस्टाइल और शारीरिक हरकत में कम। दरअसल, दिन का ज्यादातर समय ऑफिस में घंटों कुर्सी पर बैठे-बैठे निकल जाता है। इसके अलावा हेल्दी खाने की जगह जंक फ़ूड का सेवन बढ़ गया है। साथ ही एक्सरसाइज या व्यायाम की कमी शरीर में कई तरह की बीमारियां बढ़ा देती है। सबसे ज्यादा अगर लोग किसी दिक्कत से परेशान रहते हैं तो वो है कमर दर्द।

पीठ दर्द, कमर दर्द, या बैक पैन आम शारीरिक बीमारियों में से एक है। ये बीमारी हर दूसरे व्यक्ति को अपने चपेट में ले लेती है। बदलती लाइफस्टाइल और खासकर ऑफिस में लंबे समय तक एक ही जगह गलत पॉश्चर में बैठने के कारण कमर के निचले हिस्से में दर्द होना शुरू हो जाता है। दरअसल, इससे रीढ़ को सहारा देने वाली मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है और फिर उनमें अकड़न आ जाती है। इससे पहले तो कमर दर्द होना शुरू हो जाता है। फिर ये दर्द धीरे-धीरे कमर के निचले हिस्से तक पहुँच जाता है। कुछ समय तक तो लोग इसे आम समझकर नजरअंदाज करते हैं, लेकिन अगर कमर के निचले हिस्से में दर्द लंबे समय तक बना रहे तो इसे इग्नोर नहीं करना चाहिए। आमतौर पर कमरदर्द या कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए आप आयुर्वेदिक इलाज की मदद ले सकते हैं। आप साधारण घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे अपनाकर कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द को दूर कर सकते हैं। हम आपको इस आर्टिकल में कमर के निचले हिस्से में दर्द होना कारण, इसके लक्षण और इससे राहत पाने के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में बताएंगे।

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने के क्या कारण हैं?

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने के कई कारण हैं जिनके बारे में हम आपको बता रहे हैं-

ख़राब पॉश्चर

दरअसल, जब भी आप लंबे समय तक गलत तरीके से बैठते हैं तो इससे मांसपेशियों में खिंचाव होने लगता है। इसके अलावा गलत तरीके या गलत पॉश्चर में घूमने से भी पीठ के निचले हिस्से में दर्द महसूस होने लगता है। इसके अलावा लंबे समय तक एक ही जैसी पोजीशन में बैठने से भी कमर के निचले हिस्से में दर्द होना शुरू हो जाता है।

मांसपेशियों में मोच आना

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने का एक और कारण मांसपेशियों में मोच आना भी हो सकता है। दरअसल, कई बार गलत तरीके से बैठने और उठने से या फिर गलत तरीके से एक्‍सरसाइज करने से मांसपेशियों में खिंचाव हो जाता है। इससे बाद में दर्द होने लगता है।

किडनी में पथरी होना

कई बार लोअर बैक पैन किडनी में पथरी होने कारण भी होने लगता है। इससे असहनीय दर्द होता है। ये दर्द पीठ के निचले हिस्से तक फ़ैल जाता है। जब आपको मूत्र में रक्त, बार-बार पेशाब आना और मतली जैसे लक्षणों के साथ पीठ के निचले हिस्से में भी दर्द होने लगे तो आप तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

अकड़न

इन दिनों महिलाओं में अकड़न की समस्या आम हो गई है। अकड़न के कारण पीठ निचले हिस्से की मांसपेशियां ज्यादा सिकुड़ जाती है या फिर अकड़ जाती है। ऐसे में कमर अंदर घुस जाती है और हिप्स ऊपर की तरफ निकल जाते हैं। इससे शरीर का शेप भी भद्दा लगता है और हमेश लोअर बैक पैन होने लगता है।

कमजोर कोर मांसपेशियां

जब रीढ़ की हड्डी को सुरक्षित ना किया जाए तो तो कमर में दर्द होना शुरू हो जाता है। कोर मसल्स रीढ़ की हड्डी से दोनों तरफ से जुड़ी होती हैं। अगर कोर कमजोर होती है तो रीढ़ की हड्डी में दर्द होने लगता है। ये दर्द निचले हिस्से तक फ़ैल जाता है।

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने के लक्षण क्या है?

  • पीठ पर खिंचाव
  • अचानक दर्द होना
  • सुन्न होना
  • चेहरे की चमक खो जाना
  • रीढ़ की हड्डी का दबाव
  • वजन बढ़ना
  • तनाव
  • दर्द का पैरों की तरफ बढ़ना

कमर के निचले हिस्से में दर्द से बचाव के आयुर्वेदिक उपाय क्या हैं?

यदि आप भी हल्के या गंभीर लोअर बैक पैन यानी कमर के निचले हिस्से में दर्द से परेशान हैं तो हम आपको आज कुछ ऐसे सरल आयुर्वेदिक उपाय बता रहे हैं, जिन्हें आप घर में अपनाकर इस दर्द से राहत पा सकते हैं।

अदरक

कमर के निचले हिस्से में दर्द से आपको अदरक राहत दिला सकती है। आप ताज़ी अदरक के चार-पांच टुकड़े लें और उसमें डेढ़ कप पानी डालकर करीब 15 मिनट तक उबालें। जब वह ठंडा हो जाए तो आप उस पानी में जरा-सा शहद मिलाकर पी लें। आप अदरक का पेस्ट बनाकर दर्द वाली जगह पर भी लगा सकते हैं। इससे आपको राहत मिलेगी।

सरसो का तेल

सरसो का तेल हर तरह के दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है। आप सरसो के तेल को हल्का गर्म करके उसे दर्द वाले हिस्से पर लगाकर हल्के हाथ से मालिश करें। आप चाहे तो सरसो के तेल में 10-12 लहसुन की कलियां और एक चम्मच अजवाइन डालकर उसे अच्छे से उबाल लें। फिर आप इसे ठंडा करके मालिश कर लें।

खसखस के बीज

कमर दर्द और कमर के निचले हिस्से में दर्द से राहत दिलाने में खसखस के बीज काफी असरदार है। आप आधा कप खसखस के बीज और उसमें थोड़ी सी मिश्री डालकर पीस लें। फिर इसे रोजाना सुबह और शाम को दूध में एक चम्मच डालकर पी लें।

तुलसी

कई चमत्कारी गुणों से भरपूर तुलसी कमर और उसके निचले हिस्से में होने वाले दर्द को ठीक करने में राहत दिलाएगी। आप एक कप पानी में तुलसी की 10 पत्तियां डालकर उबाल लें। फिर आप उसे ठंडा करने के बढ़ उसमें एक चुटकी नमक डालकर पी लें।

गेहूं

रोजाना खाने में इस्तेमाल होने वाले गेंहूं भी आपके लोअर बैक पैन से राहत दिलाने में मदद करेंगे। दरअसल, गेहूं में कई इसे दर्द निवारक गुण मौजूद होते हैं जो कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से छुटकारा दिला सकते हैं। आप रोजाना एक ग्लास पानी में एक मुट्ठी गेहूं डालकर रख दें और अगले दिन गेहूं को एक ग्लास दूध में डालकर गर्म कर लें। आप इसका दिन में दो बार सेवन करें, इससे आपको कमर दर्द से राहत मिल सकती है।

लहसुन

लहसुन वैसे तो शरीर के हर हिस्से के लिए बहुत फायदेमंद है। लेकिन आप इसका इस्तेमाल कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द को कम करने के लिए भी कर सकते हैं। आप सरसो के तेल में लहसुन की कुछ कलियों को डाल दें और उसे अच्छे से उबाल लें। फिर तेल ठंडा होने पर आप उस तेल से दर्द वाली जगह पर मसाज करें। इससे आपके दर्द में काफी राहत मिलेगी।

क्या आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ हैं? हार्ट ब्लॉकेज से बचने के लिए अपनाएं ये आयुर्वेदिक नुस्खे

इन दिनों तो ना सिर्फ बुजुर्ग लोग बल्कि नौजवान भी कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। पिछले करीब एक दशक की बात करें तो इस दौरान सबसे ज्यादा हृदय रोगों के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। इतना ही नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक तो दुनियाभर में हृदय रोग मौत का सबसे प्रमुख कारण है। आप शायद ही ये बात जानते होंगे कि हृदय रोगों के बढ़ने का सबसे मुख्य कारण कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ना है। व्यक्ति को स्वस्थ रखने और बीमार रखने दोनों में ही कोलेस्ट्रॉल अहम् किरदार निभाता है।

जब आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने लगती है तो आप हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में शरीर में कई तरह की दिक्कतों का सामने करना पड़ता है। आमतौर पर लोग कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए दवाइयों का सेवन करते हैं, लेकिन क्या आप ये बात जानते हैं कि आप आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनाकर भी हाई कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकते हैं। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कोलेस्ट्रॉल क्या है, कोलेस्ट्रॉल कितने प्रकार का होता है, हाई कोलेस्ट्रॉल कैसे होता है, हाई कोलेस्ट्रॉल के लक्षण, हाई कोलेस्ट्रॉल से बचाव के आयुर्वेदिक उपाय आदि के बारे में बता रहे हैं।

कोलेस्ट्रॉल क्या होता है?

कोलेस्ट्रॉल एक मोम जैसा पदार्थ होता है। यह हमारे शरीर में खून के अंदर पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर में मुख्य भूमिका निभाता है। मानव शरीर को कोलेस्ट्रॉल की जरूरत कोशिकाओं को स्वस्थ रखने और नई कोशिकाओं के निर्माण के लिए भी होती है. कोलेस्ट्रॉल लीवर में बनता है जो शरीर के हर हिस्से में पाया जाता है। यह बॉडी में हॉर्मोन्स को कंट्रोल करने के अलावा सूरज की रोशनी को विटामिन D में बदलने में मदद करता है। इतना ही नहीं, कोलेस्ट्रॉल शरीर से टॉक्सिन्स को सोखकर स्वस्थ रखता है। ये दिमाग के लिए भी फायदेमंद होता है।

कोलेस्ट्रॉल कितने प्रकार का होता है?

कोलेस्‍ट्रॉल दो प्रकार के होते हैं। पहला ही हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन (HDL cholesterol) जिसे गुड कोलेस्‍ट्रॉल भी कहा जाता है और दूसरा है लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (LDL cholesterol) जिसे बैड कोलेस्‍ट्रॉल कहा जाता है। एचडीएल कोलेस्‍ट्रॉल को सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है। ये खून से अतिरिक्त फैट हटाने में मदद करता है, इसलिए इसे गुड कोलेस्‍ट्रॉल कहते हैं। ये हार्ट के लिए भी फायदेमंद होता है। वहीं एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल हार्ट के लिए नुकसानदायक होता है। दरअसल, शरीर में बैड कोलेस्‍ट्रॉल बढ़ने से हार्ट ठीक से काम नहीं कर पाता. इस कारण तमाम तरह की परेशानियां होती हैं. एलडीएल को खराब कोलेस्‍ट्रॉल के नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में तमाम तरह की परेशानियां होने लगती है।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के क्या कारण हैं?

इन दिनों ज्यादातर लोगों के बीच कोलेस्ट्रॉल बढ़ने यानी हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या हो रही हैं। हाई कोलेस्ट्रॉल होने से हार्ट डिसीज और स्ट्रोक का भी खतरा बढ़ गया है। कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं, जिनके बारे में हम आपको विस्तार से बता रहे हैं।

अस्वस्थ आहार

यदि आप लगातार फैट वाले आहार का सेवन कर रहे हैं, जिसमें सैच्युरेटेड फैट की मात्रा अधिक रहती है तो ऐसे में खून में एलडीएल या बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ने लगता है। मीट, डेयरी उत्पाद, अंडा, नारियल तेल, पाम ऑइल, मक्खन, चॉकलेट्स, तली-भुनी चीजें, प्रोसेस्ड फूड और बेकरी आइटम से ज्यादातर दूरी बनाकर रखें।

ख़राब लाइफस्टाइल

यदि आप दिनभर में ज्यादातर समय बैठे रहते हैं और शारीरिक गतिविधि का ज्यादा काम नहीं करते हैं तो इससे भी रक्त वाहिकाओं में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है। इसके अलावा मोटापे की समस्या भी खून में फैट के सर्कुलेशन को बाधित करती है.

धूम्रपान और शराब

बहुत ज्यादा धूम्रपान करने या शराब के सेवन से शरीर में रक्त धमनियां कठोर हो जाती है। इससे ब्लड प्रेशर बढ़ने लागत है और हृदय को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। साथ ही ये कोलेस्ट्रॉल स्तर को बढ़ाता है और एचडीएल स्तर को कम करता है।

वंशानुगत

कई बार जब आपके परिवार में कोई व्यक्ति यदि हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारी का शिकार हो तो आपको भी ये बीमारी होने का ख़तरा बढ़ जाता है।

अन्य बीमारी

पीसीओएस, हाइपोथायरायडिज्म, डायबिटीज, किडनी डिजीज, एचआईवी और ऑटोइम्यून बीमारियां जैसे – रुमेटायड आर्थराइटिस, सोरायसिस के कारण भी शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ने लगता है।

शरीर में बढ़ते कोलेस्ट्रॉल लेवल के क्या लक्षण हैं?

  • हाई बीपी
  • सीने में दर्द
  • सांस फूलना
  • थकान औऱ कमजोरी
  • स्किन पर पीले रंग का जमाव
  • झनझनाहट महसूस होना
  • जी मिचलाना
  • सुन्न होना
  • अत्यधिक थकान
  • नाखूनों का पीलापन
  • नाखूनों में दरार आना
  • हाथों में दरार दिखना
  • हाथों में झनझनाहट होना
  • पसीना आना
  • मोटापा

स्वस्थ व्यक्ति के लिए कोलेस्ट्रॉल की सही मात्रा क्या है?

कुल कोलेस्ट्रॉल: 200- 239 mg/dL से कम
HDL: 60 mg/dL से अधिक
LDL: 100 mg/dL से कम

हाई कोलेस्‍ट्रॉल होने से कैसे बचें?

  • शराब और धूम्रपान से दूरी बनाएं।
  • सप्ताह में कम से कम 150 मिनट व्यायाम करें।
  • ज्यादा शुगर, सेचुरेटेड फैट और रिफाइंड खाद्य पदार्थ खाने से बचें।
  • अपने भोजन में दाल, बीन्स, नट्स, टोफू शामिल करें।

हाई कोलेस्‍ट्रॉल को कम करने के आयुर्वेदिक उपाय क्या हैं?

लहसुन

रोजाना सुबह-शाम लहसुन का सेवन करने से शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा कम हो सकती है।

नींबू

नींबू शरीर के वजन को कम करने के साथ-साथ कोलेस्‍ट्रॉल को भी कम करने में मदद करता है। रोजाना खाली पेट नींबू का सेवन करने से कोलेस्‍ट्रॉल तेजी से कम होता है।

अलसी

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में अलसी बेहद फायदेमंद है, इसके लिए आप अलसी के पिसे हुए बीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

ओट्स

फाइबर से भरपूर ओट्स का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल कम होने लगता है। आप रोजाना नाश्ते में ओट्स को शामिल कर सकते हैं।

मछली का तेल

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मछली का भी अहम रोल होता है। दरअसल, मछली के तेल में ओमेगा 3 और फैटी एसिड मौजूद होता है जो कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है।

हल्दी और करी पत्ता

हल्दी और करी पत्ते में भी कोलेस्ट्रॉल को कम करने के कई उपयोगी गुण पाए जाते हैं। आप रोजाना भोजन बनाते समय इन दो चीजों का उपयोग जरूर करें।

अर्जुन की छाल

कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए आप अर्जुन के पेड़ की छाल का भी सेवन कर सकते हैं। आप रोजाना एक ग्लास पानी में इसे भिगोकर और फिर उबालकर पी लें। इससे आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल घटने लगता है।

विटामिन-सी

कोलेस्ट्रॉल लेवल को घटाने के लिए आपको रोजाना अपने आहार में विटामिन-सी (Vitamin-C) युक्त चीजें शामिल करनी होंगी। आप आँवला, अनार, नींबू, संतरा, मौसंबी आदि जैसी खट्टी चीजों को अपने आहार में शामिल करें।

अंकुरित दाल

दाल हमारे शरीर के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होती हैं। आप रोजाना अपने आहार में राजमा, चने, मूंग, सोयाबीन और उड़द आदि जैसी अंकुरित दालों को शामिल करे। ये आपके कोलेस्ट्रॉल लेवल को घटाने में काफी मददकर साबित होंगी।

हर जगह फ़ैल रहा Eye Flu का कहर, आयुर्वेदिक इलाज से दूर करें ये बीमारी

बरसात के मौसम अपने साथ-साथ तमाम बीमारियों को भी लेकर आते हैं। मानसून में आने वाली ज्यादातर बीमारियां संक्रमित होती हैं। ये एक से दूसरे में बड़ी तेजी से फैलती है। इन दिनों आंखों की एक बीमारी ने हर जगह हाहाकार मचा रखा है। इस बीमारी का नाम है कंजंक्टिवाइटिस, जिसे पिंक आई इन्फेक्शन या आई फ्लू भी कहा जाता है। दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में आई फ्लू का संक्रमण बहुत तेजी से बढ़ता जा रहे हैं। बच्चों से लेकर बड़ों तक हर कोई इस बीमारी का शिकार हो रहा है।

आँखों में होने वाले इस इन्फेक्शन के कारण सब चीजें प्रभावित होती है। आप शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि कंजंक्टिवाइटिस यानी आई फ्लू का आयुर्वेदिक इलाज भी संभव है। आप घर में करने वाले कुछ आयुर्वेदिक नुस्खों को आज़माकर भी आईफ्लू जैसी संक्रमित बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं। लेकिन इससे पहले हम जानेंगे कि आखिर आई फ्लू है क्या, आई फ्लू कैसे फैलता है, आई फ्लू क्यों होता है, आई फ्लू के लक्षण और आई फ्लू से बचाव कैसे करें?

कंजंक्टिवाइटिस/आई फ्लू क्या है?

आंखों के होने वाले इन्फेक्शन को आई फ्लू या कंजंक्टिवाइटिस कहते हैं। इसमें व्यक्ति की आँख इन्फेक्शन के कारण लाल हो जाती है। आँखों से लगातार पाने भी निकलता है और इन्फेक्शन के कारण वह सूज भी जाती है। आखों में दिनभर गंदगी जमा होती है, जिससे साफ़ नहीं दिख पाता है।

आई फ्लू क्यों होता है?

अचानक आई बाढ़ और बारिश के कारण इस बीमारी का खतरा बढ़ गया है। दरअसल मानसून में टेम्प्रेचर कम हो जाता है और हाई ह्यूमिडिटी बढ़ जाती है। इस वजह से लोग बैक्टीरिया, वायरस और एलर्जी के संपर्क में आते हैं। ये सारे इन्फेक्शन और एलर्जिक रिएक्शन्स आई फ्लू यानी कंजंक्टिवाइटिस का कारण बनते हैं।

आई फ्लू के क्या लक्षण हैं?

  • आंखें लाल होना
  • आंखों में चुभन
  • आंखों में खुजली
  • आंखें चिपकना
  • आंखों में सूजन है
  • लाइट सेंसिटिविटी

कैसे होता है आई फ्लू?

बरसात के मौसम में उमस बढ़ जाती है। ऐसे में बार-बार पसीना आता और लोग पसीना पोंछने के चक्कर में अपनी आँखों को छूटे हैं। इस वजह से आँखों में गंदे हाथ लग जाते हैं और इन्फेक्शन फ़ैल जाता है। आई फ्लू के वायरस सबसे ज्यादा सतहों पर मौजूद रहते हैं जैसे दरवाजे के हैंडल, टॉवल या टिश्यू आदि। इसलिए इन्हें हाथ लगाने के बाद तुरंत अपने हाथ धोएं।

क्या संक्रमित व्यक्ति को देखने से भी हो सकता है आई फ्लू?

विशेषज्ञों के मुताबिक, ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। यदि आप आई फ्लू से संक्रमित किसी व्यक्ति के बहुत पास जाते हैं तो आपको इन्फेक्शन हो सकता है। इसके अलावा व्यक्तिगत चीजों को शेयर करने से भी इसका खतरा बना रहता है। लेकिन ये ग़लतफ़हमी है कि किसी संक्रमित व्यक्ति की आँखों में देखने से इन्फेक्शन हो सकता है। जब तक आप उस व्यक्ति की आँखों से निकलने वाले पानी के संपर्क में नहीं आते, तब तक आपको आई फ्लू होने का जोखिम नहीं होगा।

आई फ्लू होने पर क्या करें?

  • जिसे इन्फेक्शन हुआ है, वह खुद को आइसोलेट कर लें।
  • वह अपने टॉवल, तकिए से लेकर हर चीज को अलग रखें।
  • इन्फेक्शन होने पर 3 से 5 दिन तक घर में ही रहें।
  • जितना हो सके काला चश्मा लगाकर रखें।
  • किसी भी सतह को छूने के बाद तुरंत साबुन से हाथ धोएं।
  • दूसरे लोगों से दूरी बनाकर रखें।
  • धूप या भीड़भाड़ वाली जगह पर जाने से बचें।
  • अपनी आँखों को छूकर वह हाथ कहीं और ना लगाएं।
  • आँखों को पानी से अच्छी तरह से धोएं।
  • आंख को साफ करने के लिए फिल्टर या उबले हुए पानी और रुई का इस्तेमाल करें।
  • हर चीज में साफ़-सफाई का खास ध्यान रखें।

आई फ्लू होने का रिस्क किन लोगों को ज्यादा है?

आई फ्लू बीमारी किसी भी वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है। बच्चों, एलर्जिक पेशेंट, बुजुर्ग और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों को ये इन्फेक्शन होने की ज्यादा रिस्क रहती है।

आई फ्लू कितने दिन में ठीक होता है?

वैसे तो आई फ्लू का इन्फेक्शन पूरी तरह से खत्म होने में 5-6 दिन लग जाते हैं। लेकिन यदि ये बहुत ज्यादा बढ़ गया है, या एक आँख से दूसरी आँख में फ़ैल गया है, तो इसे ठीक होने में 10-15 दिन या फिर एक महीना भी लग सकता है।

आई फ्लू का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

हल्दी

एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर हल्दी को आप गुनगुने पानी में एक चुटकी डाल दें और फिर इस पानी को रुई में भिगोकर उससे अपनी ऑंखें साफ़ करें। इससे इन्फेक्शन कम हो जाएगा।

गुलाब जल

गुलाब जल आँखों के लिए काफी फायदेमंद है। इससे आँख धोने से आई फ्लू के बढ़ने का खतरा कम हो सकता है।

आलू या केले ले छिलके

आप रात में सोने से पहले आलू के छिलके निकालकर उसे पतले टुकड़ो में काट लें और आँखों पर 10-15 मिनट के लिए रख दें। इससे आँखों में जलन नहीं होगी। आप केले के छिलके भी रख सकते हैं।

ग्रीन टी बैग

आई फ्लू में आँखों को ठंडक और आराम देने के लिए आप टी बैग इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे आँखों पर लगाने से सूजन भी कम हो जाएगी।

ठंडे पानी से सिकाई

आई फ्लू होने पर आप ठंडे पानी से इसकी सिकाई करें। इससे इन्फेक्शन धीरे-धीरे खत्म होने लगेगा और आँखों को भी आराम पहुँचने में मदद मिलेगी।

आंवला जूस

रोजाना सुबह खाली पेट और रात को सोने से पहले आंवले के जूस को पानी में मिलाकर पी लें। इससे इन्फेक्शन जड़ से खत्म होने में मदद मिलेगी।

त्रिफला चूर्ण

त्रिफला आँखों के लिए काफी फायदेमंद होता है। आप त्रिफला के चूर्ण को रातभर पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उसे अच्छी तरह छानकर छने हुए पानी से आँखों को धो लें। इससे आँखों की रोशनी भी बढ़ेगी और आँखों में होने वाली बीमारियां भी खत्म हो जाएगी।

तुलसी

औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी आँखों में होने वाले इन्फेक्शन को दूर करने में मदद करती है। आप तुलसी के पत्ते रातभर भिगोकर रख दें और सुबह उस पानी से आँखों को अच्छे से धो लें। इससे आपको काफी फायदा पहुंचेगा।

शहद

शहद भी आँखों के लिए काफी फायदेमंद होता है। हर आयुर्वेदिक इलाज में शहद बेहद महत्वपूर्ण होता है। इससे आँखों के इन्फेक्शन को भी दूर किया जा सकता है। आप एक ग्लास पानी में दो चम्मच शहद मिला लें। फिर आप इस पानी से आँखों को अच्छी तरह से धो लें। इससे इन्फेक्शन दूर हो जाएगा।

क्या आप मधुमेह (Diabetes) पर काबू पाना चाहते हो? तुरंत अपनाएं ये रामबाण आयुर्वेदिक नुस्खे

आज के समय में जो सबसे आम बीमारी हो गई है वो है डायबिटीज जिसे हम शुगर और मधुमेह भी कहते हैं। इस बीमारी ने हर दूसरे व्यक्ति को जकड़ रखा है। वैसे तो आज भी कई लोग डायबिटीज को आम बीमारी ही मानते हैं और इसके इलाज में भी लापरवाही करते हैं। लेकिन डायबिटीज इतनी खतरनाक बीमारी है कि जब ये बढ़ जाती है, तो ये कोई बड़ी बीमारी के रूप में बदल सकती है। इसलिए तो Diabetes को ‘साइलेंट किलर‘ भी कहा जाता है। डायबिटीज का कोई स्थाई इलाज नहीं है। एक बार जो इसकी चपेट में आ गया, उसे फिर उम्रभर इससे लड़ना पड़ता है। आमतौर पर डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए लोग एलोपेथी दवाइयों का ही सेवन करते हैं, लेकिन शायद आप ये बात नहीं जानते होंगे कि डायबिटीज का आयुर्वेद इलाज भी संभव है।

आयुर्वेदिक इलाज में किसी भी प्रकार की सर्जरी नहीं की जाती है। इसमें बस कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का सेवन करना होता है और इससे बीमारियों से काफी हद तक राहत मिल जाती है। पहले के समय में भी लोग डायबिटीज से पीड़ित रहते थे लेकिन वह आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों की मदद से इस बीमारी से खुद का बचाव कर लेते थे। आज हम आपको डायबिटीज बीमारी क्या है? डायबिटीज के लक्षण, डायबिटीज के कारण और डायबिटीज के आयुर्वेदिक इलाज के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

डायबिटीज क्या है?

डायबिटीज के बारे में अन्य जानकारी जानने से पहले हम जानते हैं कि आखिर डायबिटीज है क्या? हमारे खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने के कारण Diabetes की समस्या होती है।

डायबिटीज होने का क्या कारण है?

आयुर्वेद के मुताबिक, मधुमेह यानी Diabetes का रोग शरीर में मेटाबॉलिज़म की समस्या के कारण होता है। दरअसल, मेटाबॉलिज़म एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके दौरान शरीर भोजन से जो भी पोषण तत्व प्राप्त करता है, उसका उपयोग करके वह एनर्जी बनाता है। यदि मेटाबॉलिज़म में कोई दिक्कत हो जाती है तो शरीर में जो इंसुलिन हॉर्मोन मौजूद होता है, वो ठीक से काम करना बंद कर देता है। ऐसे में शरीर में इंसुलिन की कमी होने लगती है और खून में शुगर लेवल बढ़ जाता है।

डायबिटीज होने के अन्य कारण क्या हैं?

  • सही डायट ना लेना
  • ख़राब लाइफस्टाइल
  • शरीर में अधिक कफ होना
  • प्रदूषित जगह पर रहना
  • शरीर हमेशा थका हुआ होना
  • गलत दवाओं का सेवन करना
  • जेनेटिक

डायबिटीज कितने प्रकार की होती है?

आमतौर पर Diabetes तीन प्रकार की होती है-

  1. टाइप 1 डायबिटीज
  2. टाइप 2 डायबिटीज
  3. जेस्टेशनल डायबिटीज

डायबिटीज के क्या लक्षण हैं?

  • ज्यादा भूख लगना
  • प्यास ज्यादा लगना
  • वजन कम होना
  • जल्दी-जल्दी पेशाब आना
  • धुंधला दिखाई देना
  • बहुत ज्यादा थकावट होना
  • छाले और घाव होना और उनका पक जाना

टाइप 1 Diabetes के क्या लक्षण हैं?

  • बहुत ज्यादा भूख लगना
  • बहुत ज्यादा प्यास लगना
  • बिना कोशिश के भी लगातार वजन कम होना
  • बार-बार पेशाब आना
  • धुंधला दिखना
  • थकावट
  • बार-बार मूड बदलना

टाइप 2 Diabetes के क्या लक्षण हैं?

  • भूख बढ़ जाना
  • प्यास बढ़ना
  • ज्यादा पेशाब आना
  • धुंधला दिखना
  • थकावट रहना
  • घाव धीरे-धीरे भरना
  • बार-बार संक्रमण होना

डायबिटीज का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

हल्दी और मेथी का पानी

सुबह के समय रोजाना एक ग्लास गर्म पानी में 1 चम्मच हल्दी पाउडर और 1 चम्मच मेथी पाउडर मिलाकर पीने से फास्टिंग शुगर को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी।

आंवला चूर्ण

आंवले में मौजूद विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट शरीर में मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करते हैं। इससे ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है। ये शरीर में इंसुलिन बनाने में कारगर साबित होता है।

सदाबहार का पौधा

सदाबहार बेहतरीन औषधीय गुणों वाला पौधा है। ये आपको हर जगह मिल जाएगा। डायबिटीज के मरीज सदाबहार की ताज़ी पत्तियों को चबाकर खा सकते हैं। या फिर आप सदाबहार के फूल को पानी में अच्छे से उबालकर सुबह खाली पेट पिएं।

अंजीर के पत्ते

अंजीर के साथ-साथ उसके पत्ते भी काफी फायदेमंद होते हैं। इसके पत्ते सुबह खाली पेट चबाने से या फिर पानी में उबालकर पीने से शुगर कंट्रोल में रहती है।

जामुन के बीजों का पाउडर

जामुन के बीज डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। रोजाना जामुन के बीज का पाउडर खाली पेट एक चम्मच गर्म पानी के साथ पी लें, शुगर कंट्रोल में रहेगी।

अंगूर के बीज

डायबिटीज को कंट्रोल में रखने के लिए अंगूर के बीज काफी फायदेमंद साबित होते हैं। आप इन्हें पीसकर इसका चूर्ण बना लें और रोजाना पानी से इसका सेवन करें।

गिलोय

गिलोय सबसे ज्यादा औषधीय गुणों से भरपूर पौधा है। इससे ब्लड में शुगर की मात्रा कंट्रोल में रहती है। एक कप पानी में एक चम्मच गिलोय पाउडर डालकर छोड़ दें और सुबह उठकर उसका सेवन करें।

नीम

नीम का इस्तेमाल ज्यादा आयुर्वेदिक दवाओं में होता है। इसमे एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं। साथ ही नीम में कई ऐसे भी गुण पाए जाते हैं जो डायबिटिक को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। आप नीम के पत्ते का या फिर इसके रस का सेवन कर सकते हैं।

सौंफ

रोजाना खाना खाने के बाद डायबिटीज के मरीज एक बड़ी चम्मच सौंफ का सेवन जरूर करें। इससे मीठा खाने की लालसा खत्म हो जाती है। साथ ही ये खाने को पचाने में मदद करती है।

जैतून का तेल

जैतून के तेल का सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल तो कंट्रोल होता ही है और साथ ही ये ब्लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करने में मदद करता है। आप खाने में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

गुड़मार

गुड़मार एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। आमतौर पर इसका सेवन एलर्जी, खांसी और कब्ज जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए होता है। लेकिन ये डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होता है। रोजाना खाना खाने से एक घंटे पहले एक चम्मच गुड़मार के पत्तों का पाउडर खाने से शुगर कंट्रोल में रहती है।

Diabetes कंट्रोल करने के लिए आयुर्वेदिक चूर्ण बनाने की विधि

हम आपको आज कुछ ऐसी खास जड़ी बूटियों के बारे में बता रहे हैं, जिसके सेवन से आपकी शुगर हमेशा कंट्रोल में रहेगी। यदि ये सही तरीके से खाया जाए, तो आप इस बीमारी से छुटकारा भी पा सकते हैं। नीचे दी गई सभी जड़ी-बूटियों को सही मात्रा में मिलाकर इसका चूर्ण तैयार करें और रोजाना रात में सोते समय गर्म पानी से एक चम्मच यानी करीब 4 ग्राम इसका सेवन करें।

  • जामुन- 10 ग्राम
  • बिल्व – 10 ग्राम
  • चिरायता- 10 ग्राम
  • मधुनाशिनी- 20 ग्राम
  • त्रिकटु- 20 ग्राम
  • पिप्पली- 10 ग्राम
  • निर्गुंडी- 5 ग्राम
  • पुनर्नवा- 10 ग्राम
  • आंवला- 10 ग्राम
  • गुडुची- 20 ग्राम
  • भूमि-अमलकी- 15 ग्राम

 

आज के समय में यूं तो विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में डायबिटीज के कई इलाज मौजूद हैं लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा के रायला ग्राम स्थित ‘श्री नवग्रह आश्रमआयुर्वेदिक पद्धति से उपचार के लिए जाना जाता है। यहां पर कई प्रकार के रोगों का उपचार आयुर्वेदिक पद्धति से किया जाता है, जिसमें डायबिटीज भी एक है।

अगर आप Diabetes की समस्या से परेशान है तो नवग्रह आश्रम अवश्य जाना चाहिए।

क्या आप हाई बीपी (ब्लड प्रेशर) का शिकार हैं? एलोपेथी नहीं बल्कि आयुर्वेदिक इलाज से दूर करें ये समस्या

एक समय था जब ना तो नौकरी की टेंशन थी, ना गलत खानपान की। लोग खुद को स्वस्थ रखने के लिए खुले वातावरण में घूमते थे। यदि किसी को कोई तकलीफ भी होती थी तो वह आयुर्वेदिक इलाज की मदद से ठीक हो जाते थे। आयुर्वेदिक इलाज किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने में मदद करता है। ऐसे में पहले के समय में लोग आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का सेवन करते थे और कम ही बीमारी होते थे। लेकिन इन दिनों लोगों की लाइफस्टाइल काफी व्यस्त हो गई है। वह पूरे 24 घंटे में से खुद के लिए आधा घंटा तक भी नहीं निकाल पाते हैं। खानपान में गड़बड़ी और गलत जीवनशैली की वजह से कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। इन्हीं में से एक बीमारी है ब्लड प्रेशर।

आजकल हर दूसरा व्यक्ति ब्लड प्रेशर का शिकार है। ज्यादातर लोग हाई बीपी यानी हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। हाई बीपी को कंट्रोल करने के लिए लोग एलोपेथी दवाइयों का सेवन करते हैं। लेकिन कई बार इससे भी असर नहीं होता है। आप शायद ही ये बात जानते होंगे कि अब हाई ब्लड प्रेशर का आयुर्वेदिक इलाज भी संभव है। हाई बीपी का आयुर्वेद इलाज अपनाकर लोग खुद को इस बीमारी से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हाई बीपी का आयुर्वेदिक इलाज जानने से पहले आपको ये जानना जरुरी है कि आखिर हाई ब्लड प्रेशर होता क्या है, इसके लक्षण, कारण, क्या करें क्या ना करें आदि।

क्या होता है हाई ब्लड प्रेशर?

हाई ब्लड प्रेशर यानी हाइपरटेंशन की बीमारी बहुत घातक होती है। ये उस स्थिति में होता है जब धमनियों (arteries) में रक्त का दबाव बहुत बढ़ जाता है। वैसे तो हमारा ब्लड प्रेशर दिनभर ऊपर-नीचे होता रहता है लेकिन जब लंबे समय तक यह एक ही जैसा रहे तो यह समस्या बन सकता है। आमतौर पर ब्लड प्रेशर 140/90mmHg होता है। अगर खून का दबाव इससे ज्यादा होता है तो ये हाई बीपी माना जाता है। अगर हाई बीपी को कंट्रोल नहीं किया जाए, तो ये कई गंभीर बीमारियों को जगह दे सकता है। हाई ब्लड प्रेशर को ‘साइलेंट किलर’ भी कहा जाता है। कई बार ये हार्ट अटैक, हार्ट फेल, ब्रेन फेल, किडनी डैमेज और आंखों की समस्या जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है।

हाई ब्लड प्रेशर के क्या लक्षण हैं?

वैसे तो कई सालों तक हाई बीपी के लक्षणों का पता नहीं चलता है। लेकिन इसके कुछ ऐसे सामान्य लक्षण हैं, जिसको ध्यान में रखकर आप बीपी की जांच करवा सकते हैं।

  • धुंधला दिखना
  • सिर घूमना
  • छाती में दर्द
  • चक्कर आना
  • सांस लेने में मुश्किल
  • अनुवांशिक
  • थकान लगना और कंफ्यूजन लग्न
  • पेशाब में खून आना
  • सिरदर्द रहना
  • नाक से ब्लड आना

हाई बीपी के कारण

  • अगर आपके परिवार में किसी को हाई बीपी की समस्या है तो इसका खतरा आपको भी हो सकता है।
  • जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, तो आपके ब्लड प्रेशर में भी बढ़ोतरी होती है। ऐसे में कई बार हाई बीपी का खतरा बढ़ जाता है।
  • निद्रा अपनिया (sleep apnea) के कारण भी कई बार नींद में सांस रुक जाती है। ऐसे में हाई बीपी होने लगता है।
  • किडनी की कोई बीमारी भी हाई बीपी का कारण बनती है। दरअसल, जब किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती तो आपके शरीर में फ्लूइड ज्यादा मात्रा में बनने लगता है जो ब्लड प्रेशर को बढ़ा देता है।
  • कई बार आपका गलत खानपान भी बीपी को बड़ा देता है। ज्यादा तला हुआ, मसालेदार खाना और ज्यादा मीठे पदार्थ खाने से भी बीपी हाई होने का खतरा रहता है।
  • कई बार तनाव, गुस्सा, पॉल्यूशन और दूसरी शारीरिक समस्याएँ भी हाई बीपी की दिक्कत को बढ़ा देती हैं।

हाई बीपी होने पर क्या करें?

गहरी सांस लें

ब्लड प्रेशर हाई हो जाने पर आप तुरंत गहरी सांस लेना शुरू करें। लेकिन गहरी सांस ऐसे लें कि वो नाक से लें और मुंह से निकले। इससे आपका तनाव कम होगा और शरीर में ऑक्सीजन बढ़ेगा।

भीड़ से दूर रहें

जैसे ही आपका बीपी हाई होने लगे तो आप खुद को भीड़ से दूर कर लें। भीड़ में रहने से ज्यादा घबराहट होगी। ऐसे में दिमाग पर ज्यादा दवाब पड़ता है और हार्ट अटैक जैसी गंभीर स्थिति बन सकती है।

खुले वातावरण में बैठे

हाई बीपी होने पर आप किसी खुले वातावरण में बैठे जहां ताज़ी हवा मिल सके। साथ ही आप अपना ध्यान सभी चीजों से हटा लें और सिर्फ अपनी सांसों पर केंद्रित करें।

आँख बंद करके लेटें

यदि आपका ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है तो आप किसी कमरे में जाकर शांति में आँखें बंद करके लेट जाएं। कुछ देर बाद आप ठंडा दूध या फिर नारियल पानी पी लें।

हाई ब्लड प्रेशर से बचाव कैसे करें?

  • नियमित रूप से संतुलित और स्वस्थ आहार लें।
  • खाने में ऊपर से नमक ना डालें।
  • खाने में नमक की मात्रा कम लें।
  • पोटेशियम युक्त भोजन करें।
  • कम फैट वाले पदार्थ को भोजन में शामिल करें।
  • फल और हरी सब्जियों का सेवन करें।
  • अपने वजन को हमेशा नियंत्रित रखें। मोटापे से हाई बीपी की समस्या होती है।
  • शराब और स्मोकिंग का सेवन करने से बचना चाहिए।
  • रोजाना की दिनचर्या में एक्सरसाइज या योग जरूर शामिल करें।

हाई ब्लड प्रेशर को कैसे करें कंट्रोल?

नमकीन फूड्स

हाई ब्लड प्रेशर सोडियम पर निर्भर होता है। यदि आप सोडियम ज्यादा खा रहे हैं तो शरीर में वॉटर रिटेंशन का कारण बनता है और इससे आपका बीपी बढ़ सकता है। पिज्जा, बर्गर, सैंडविच जैसे अन्य जंक फ़ूड से दूरी बनाकर रखें।

मीठा

हाई बीपी के मरीजों को ज्यादा मीठा खाने से बचना चाहिए। दरअसल, मीठा खाने से ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने लगता है। आप कैंडी, कुकीज़, केक, फलों का जूस और सोडा जैसी चीजों से दूरी बनाकर रखें।

रेड मीट

हाई बीपी वालों को रेड मीट खाने से ख़तरा रहता है। दरअसल, इसमें सेचुरेटेड फैट्स और कोलेस्ट्रॉल ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। ये दोनों सेहत के लिए नुकसानदायक होता है।

प्रोसेस्ड और पैक्ड फूड आइटम

हाई बीपी के मरीजों को प्रोसेस्ड और पैक्ड फूड आइटम से भी दूरी बनाकर रखना चाहिए। दरअसल, इन फूड्स में सोडियम की मात्रा ज्यादा होती है और इससे आपका बीपी बढ़ सकता है।

क्या हाई बीपी का आयुर्वेदिक इलाज संभव है?

चूँकि हाई ब्लड प्रेशर अब हर दूसरे व्यक्ति की समस्या बन गई है, ऐसे में आयुर्वेद ने भी इसका इलाज काफी पहले खोज निकाला है। देश में कई ऐसे संस्थान हैं जो बीमारियों को आयुर्वेदिक इलाज की मदद से ठीक करते हैं। हाई ब्लड प्रेशर से भी पीड़ित लोग अब अपनी बीमारी को ठीक करने के लिए आयुर्वेद का सहारा ले रहे हैं। हम आपको आज कुछ ऐसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के बारे में बता रहे हैं जो हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करती हैं।

अर्जुन छाल

अर्जुन के पेड़ से निकलने वाली छाल बहुत ज्यादा औषधीय गुणों से भरपूर रहती है। इससे कई बीमारियों का इलाज होता है। अर्जुन की छाल हाई ब्लड प्रेशर को तो कम करता ही है और साथ ही कोलेस्ट्रॉल भी कम करने में मदद करता है।

चुकंदर

वैसे तो चुकंदर हीमोग्लोबिन को बढ़ाने में काम आता है लेकिन इससे आप हाई बीपी भी कंट्रोल कर सकते हैं। चुकंदर में नाइट्रेट, पोटेशियम, फाइटोकेमिकल, और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करते हैं।

त्रिफला

त्रिफला भी एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है। त्रिफला हरड़, आवला और बहेड़ा का संयोजन है, जिसके सेवन से रक्त वाहिकाओं पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है। हाई बीपी को कंट्रोल करने के अलावा ये पाचन तंत्र को भी मजबूत करती है।

अश्वगंधा

अश्वगंधा जड़ीबूटी में तनाव को कम करने वाले औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसके सेवन से बीपी हमेशा कंट्रोल में बना रहता है। साथ ही अश्वगंधा खाने से प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है।

क्या घुटनों के दर्द ने कर दिया है जीना मुश्किल? आयुर्वेद की मदद से आप हो सकते हैं दर्द मुक्त

एक समय था जब इंसान 65 से 70 साल की उम्र तक आते-आते बीमारियां का शिकार होता था, क्योंकि तब लोग बिना मिलावट वाला भोजन करते थे। साथ ही पुराने समय में आयुर्वेदिक इलाज व्यक्ति का सहारा बनता था। आयुर्वेदिक इलाज की मदद से लोग जल्द ही स्वस्थ हो जाते थे। एक बार आयुर्वेदिक इलाज पूरा हो जाने के बाद फिर कभी बीमारी वापस लौटने का नाम नहीं लेती थी। लेकिन इन दिनों तो नौजवान लोग भी आम बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। सबसे ज्यादा अगर किसी बीमारी की चर्चा होती है तो वो है घुटनों का दर्द। घुटने का दर्द या नी पेन काफी कॉमन प्रॉब्लम है, जो आज के समय में किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। खासतौर से गृहणियों में घुटनों का दर्द आम समस्या बन गई है। ऐसे में वह अपने दर्द से निजात पाने के लिए कई तरह के उपचार ढूंढती हैं। लेकिन आप शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि अब घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज भी संभव है।

पुरुषों की तुलना में महिलाओं को क्यों होता है घुटनों में ज्यादा दर्द?

40 से अधिक उम्र लोगों में तो घुटनों के दर्द की समस्या इन दिनों बहुत आम हो गई है। वैसे तो ये बीमारी पुरुष और महिलाएं दोनों में देखी जाती है लेकिन ज्यादातर महिलाएं ही घुटनों के दर्द का शिकार हैं। दरअसल, महिलाओं की शारीरिक संरचना की वजह से उन्हें ज्यादा घुटनों का दर्द रहता है। डॉक्टर्स के मुताबिक, महिलाओं के जॉइंट्स की मूवमेंट ज्यादा रहती है। इस वजह से उनके उनके लिगामेंट्स अधिक लचीले होते हैं। वह जितना ज्यादा मूवमेंट करती हैं उतना दर्द बढ़ता जाता है।

घुटने में दर्द के क्या कारण हैं?

वैसे तो घुटनो में दर्द की समस्या हर दूसरे व्यक्ति को होने लगी है। लेकिन इस समस्या के कई कारण हो सकते हैं। बढ़ती उम्र के साथ-साथ हड्डियां कमजोर होना, घुटने कमजोर होना, घुटनों, मांसपेशियों और नसों में सूजन होना, फिजिकल एक्टिविटी की कमी, लिगामेंट और टेंडन से अधिक काम कराया जाना, घुटनों पर शरीर का वजन आना, चोट लगना आदि घुटनों के दर्द के कई कारण हो सकते हैं। घुटनों में दर्द के कारण चलने-फिरने, उठने-बैठने से लेकर दिनभर के सभी जरुरी काम करने तक में तकलीफ होती है। इंसान मजबूर सा हो जाता है। वह कहीं आने-जाने के पहले भी सोच में पड़ जाता है।

घुटने के दर्द के क्या लक्षण हैं?

घुटनों के दर्द के लक्षण अलग-अलग तरह के होते हैं। किसी को आसानी से लक्षण समझ आ जाते हैं और कुछ लोग महीनों गुजर जाने पर भी नहीं समझ पाते। हम आपको आज घुटनों के दर्द के सामान्य लक्षण बता रहे हैं। यदि आपको भी ये लक्षण काफी समय तक नजर आए, तो आप तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

  • सूजन और जकड़न
  • घुटने का लाल होना
  • घुटने का गर्म होना
  • घुटने में कमजोरी महसूस होना
  • चलने में घुटने से बैलेंस न बनना
  • घुटने को पूरी तरह से सीधा करने में मुश्किल होना
  • घुटना मोड़ने में दर्द होना

कहीं आपकी ख़राब लाइफस्टाइल तो नहीं बन रही बीमारियों का घर?

आज के समय में ख़राब लाइफस्टाइल के कारण भी कम उम्र में घुटनों का दर्द होना शुरू हो गया है। इससे ना सिर्फ घुटने का दर्द बल्कि और भी कई नई-नई तरह की बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। जब कुछ घुटने की मांसपेशियां दूसरी मांसपेशियों की अपेक्षा ज्यादा काम करती हैं, तो घुटने पर जोर आता है। ऐसे में असंतुलन के कारण घुटनों में दर्द होना शुरू हो जाता है। इसके अलावा घुटनों में दर्द गठिया, एसीएल टूटना, फ्रैक्चर होना, आर्थराइटिस, बर्साइटिस, बैठने के गलत तरीके के कारण भी होता है।

व्यायाम करना जरूरी

घुटनों के दर्द से यदि बचे रहना है तो आपको शरीर को स्वस्थ रखना बेहद जरूरी है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम करना जरूरी है। आप चाहे तो घुटनों के दर्द से राहत पाने के लिए स्विमिंग और साइकिलिंग भी कर सकते हैं। यह आपको घुटनों के दर्द से राहत दे सकती है।

ज्यादा वजन भी नुकसानदायक

शरीर के अधिक वजन के कारण सबसे ज्यादा असर घुटनों पर पड़ता है, क्योंकि आपके घुटने ही पूरा वजन झेलते हैं। चलने-फिरने, उठने-बैठने में वही आपकी मदद करते हैं। ऐसे में आपको वजन को कंट्रोल में करना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप एक्सरसाइज, जिम, व्यायाम आदि कर सेक्टर हैं। लेकिन जरूरत से ज्यादा व्यायाम से भी जोड़ों में दर्द होने लगता है। ऐसे में सब कुछ लिमिट में करें।

शरीर में न्यूट्रिएंट्स की कमी

कई बार शरीर में न्यूट्रिएंट्स की कमी होने लगती है और घुटनों का दर्द शुरू हो जाता है। इसलिए आप डाइट का खास ख्याल रखें। आप अपनी डाइट में रोजाना कैल्शियम और प्रोटीन को शामिल करें, खूब सारी हरी पत्तेदार सब्जियां, गोभी और ब्रोकली खाएं,संतरा, स्ट्रॉबेरी और चेरी जैसे विटामिन सी वाले फल खाएं, ढेर सारे नट्स खाएं, अदरक और हल्दी का का सेवन करें। इन सबसे आपको घुटनों के दर्द से राहत मिल सकती है।

घुटनों के दर्द से पीड़ित लोग क्या खाएं?

अचार, मिर्च-मसाले, इमली, अमचूर, सेम की फली, अरबी, आलू, गोभी, मोठ, मक्का, बेसन, सूखी सब्जियां, दही, फ्रिज का पानी, मूली न खाएं।

घुटनों के दर्द से पीड़ित लोग क्या ना खाएं?

बाजरा, मूंग, तिल, मेथी, परवल, बैंगन, एलोविरा, टिंडा, कच्ची हलदी, लौकी, गाजर, कच्चा लहसुन खाएं।

क्या घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज संभव है?

जोड़ो में यानी आस्टियोआर्थराइटिस के शुरुआती लक्षण में वजन कम करने, फिजियोथैरेपी और लाइफस्टाइल में बदलाव करने की सलाह दी जाती है। कई बार अगर इससे राहत नहीं मिलती तो दवाइयां दी जाती हैं। फिर भी यदि दर्द से छुटकारा नहीं मिलता तो डॉक्टर द्वारा इंजेक्शन यानी पीआरपी (प्लेटलेट रिच प्लाज्मा) दिया जाता है। बीमारी जटिल हो जाने पर ऑपरेशन कर दिया जाता है। आमतौर पर ज्यादातर डॉक्टर ऑपरेशन की ही सलाह देते हैं। लेकिन आप ऑपरेशन किये बिना भी घुटनों का दर्द काफी हद तक बंद कर सकते हैं। इसके लिए कई आयुर्वेदिक उपचार और घरेलू इलाज भी हैं। जी हां, अब घुटनों के दर्द का आयुर्वेद इलाज भी संभव है।

शहद-दालचीनी का लेप

यदि डॉक्टर आपके घुटनों को बदलने को कह दें तो आप आयुर्वेदिक लेप लगाएं। इसके लिए आप एक चम्मच शहद, एक चम्मच दालचीनी पाउडर, खाने वाला चूना आधा चम्मच लें और इन सबको मिक्स करके पेस्ट बना लें। फिर आप इसे घुटनों पर लगाएं और ऊपर से कपड़ा या बैंडेज लगा लें। इसे आठ-दस घंटों तक रहने दें।

अरंड व मेहंदी के पत्ते का लेप

अरंड व मेहंदी के पत्ते भी घुटनों के दर्द को दूर करने के काम आ सकते हैं। इसके लिए आप अरंड व मेहंदी के पत्तों को पीसकर घुटनों पर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है। ये लेप बनाने में भी काफी आसान है।

इसके अलावा भी घुटनों के दर्द से निजाद पाने के लिए देश में कई संस्थाएं आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करती हैं। इन्हीं में से एक संस्था है श्री नवग्रह आश्रम सेवा संस्थान। यह संस्थान राजस्थान के भीलवाड़ा में स्थित है। जो हर तरह की बीमारियों का आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करता है।

गुर्दे की पथरी का आयुर्वेदिक उपचार क्या है? रुका हुआ पत्थर गलाए आयुर्वेद के माध्यम से

क्या आप भी गुर्दे की पथरी से पीड़ित हैं? गुर्दे या किडनी हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंग हैं जो मूत्र के रूप में हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों और प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थ को बाहर निकालने का आवश्यक कार्य करते हैं। ऐसे में हम समझ सकते हैं हमारी किडनी की देखभाल करना कितना महत्वपूर्ण है।

इस ब्लॉग के माध्यम से आप गुर्दे की पथरी से छुटकारा पाने के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जानेंगे। मूल रूप से प्राकृतिक होने के कारण, आयुर्वेदिक उपचार काफी विश्वसनीय होते हैं और इनका कोई बड़ा दुष्प्रभाव नहीं होता है।

किडनी स्टोन क्या होता है?

गुर्दे की पथरी एक ठोस द्रव्यमान है जो गुर्दे के अंदर, विशेष रूप से मूत्रवाहिनी और मूत्राशय में खनिज और नमक के जमाव से बनी होती है। गुर्दे की पथरी विषाक्त पदार्थों के बाहर निकले में बाधा डालती है, अगर पथरी को समय पर बाहर नहीं निकाली गई तो अधिक गंभीर जटिलताएँ हो सकती हैं।

हालाँकि पथरी मूत्र पथ में बाधा नहीं डालती, इसके पत्थर मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाते हैं। हालाँकि, जैसे-जैसे जमाव बढ़ता है और यह बड़े, कठोर पत्थरों का रूप ले लेता है, तब रोगी को गंभीर दर्द, रक्तस्राव और बार-बार पेशाब करने की इच्छा का अनुभव होता है।

गुर्दे की पथरी को संतुलित आहार, व्यायाम, पर्याप्त पानी पीने और आयुर्वेदिक उपचार की मदद से शरीर से बाहर निकाला जा सकता है। बड़े पत्थरों के लिए आक्रामक सर्जरी या व्यापक फ्लश थेरेपी की आवश्यकता हो सकती है।

गुर्दे की पथरी कितने प्रकार की होती है?

गुर्दे की पथरी को आकार और उसकी प्रकृति के आधार पर चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

80% मामलों में पाया जाने वाला सबसे आम किडनी स्टोन कैल्शियम ऑक्सालेट है। दुर्लभ प्रकारों में सिस्टीन स्टोन, स्ट्रुवाइट स्टोन और यूरिक एसिड स्टोन शामिल हैं।

किडनी स्टोन क्यों होता है?

कम पानी का सेवन

अपने अंगों और आंतरिक कार्यों को दुरुस्त रखने के लिए दिन में 4 लीटर पानी पीना जरूरी है। अपर्याप्त पानी पीने से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना और मूत्र में खनिजों को पतला करना मुश्किल हो जाता है, जिससे गुर्दे की पथरी हो जाती है।

आरामदायक जीवन शैली

व्यायाम की कमी कई बीमारियों की जड़ है। जो लोग व्यायाम करते हैं और स्वस्थ भोजन करते हैं, उनका मूत्र मार्ग उन लोगों की तुलना में अधिक स्वस्थ होता है जो ऐसा नहीं करते हैं। ऐसे में शारीरिक क्रिया के अभाव में भी किडनी स्टोन हो जाता है।

आहार में बहुत अधिक प्रोटीन और सोडियम

अपने भोजन में अधिक प्रोटीन और नमक या सोडियम का इस्तेमाल करते हैं तो भी गुर्दे की पथरी हो सकती है। ऐसे में भोजन हमेशा संतुलित करना चाहिए।

मोटापा

मोटापा विभिन्न स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बनता है। जो लोग मोटे हैं उनमें गुर्दे की पथरी विकसित होने की संभावना उन लोगों की तुलना में कहीं अधिक है जो सामान्य बीएमआई स्पेक्ट्रम पर हैं।

अत्यधिक दवाइयों का सेवन

अत्यधिक दवाइयों का सेवन करने के असंख्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं। अधिक दवाइयों के सेवन से भी किडनी को खतरा होता है, इससे किडनी स्टोन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

शराब और कोक, कैफीन का सीवान

शराब, धूम्रपान, कोक और कैफीन का सेवन करने से भी किडनी स्टोन का खतरा बढ़ जाता है। यह पेय पदार्थ हमारे गुर्दे की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचा सकते हैं और मूत्रवाहिनी या मूत्राशय में पथरी का कारण बनते हैं। रोजाना शराब और कैफीन का सेवन आपको लंबे समय तक निर्जलित रखता है, जिससे गुर्दे की पथरी बनती है।

किडनी स्टोन के लक्षण क्या है?

क्या आप पेट के निचले हिस्से में तेज़ दर्द का अनुभव कर रहे हैं? तो यह गुर्दे की पथरी हो सकती है, लेकिन अधिकांश बार ऐसा नहीं होता है। हम आपको किडनी स्टोन के कुछ लक्षण बता रहे हैं, जो आपको इसे पहचानने में मदद कर सकते हैं।

  • अत्यधिक दर्द
  • गुर्दे की पथरी के कारण पेट के निचले हिस्से में गंभीर दर्द हो सकता है, जो अक्सर पेट और पीठ में घूमता रहता है।
  • मूत्र के रंग और गाढ़ेपन में बदलाव
  • गुर्दे की पथरी में पेशाब झाग के साथ दुर्गंधयुक्त हो जाता है और पेशाब में खून आने के कारण रंग हल्का लाल या भूरा हो सकता है।
  • जलन
  • गुर्दे की पथरी के कारण पेशाब करते समय दर्द और जलन होती है।

गुर्दे की पथरी के अन्य लक्षण

  • दर्द के साथ मतली या उल्टी
  • पेशाब में खून आना
  • पेशाब करने में असमर्थता
  • जल्दी पेशाब आना
  • पेशाब में दुर्गंध आना और झाग दिखना

गुर्दे की पथरी आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

पानी

गुर्दे की पथरी से प्राकृतिक रूप से उबरने के लिए हर डॉक्टर जो सबसे सरल उपाय सुझाता है वह है पानी। आपको बहुत सारा पानी पीना चाहिए, जो आपके शरीर को हाइड्रेटेड रखने में मदद करेगा और विषाक्त पदार्थों, अन्य अवांछित खनिजों को बाहर निकालने में भी मदद करेगा। पानी पथरी को मूत्र के रास्ते बाहर निकालना आसान बना देगा।

नारियल पानी

नारियल पानी सबसे स्वास्थ्यवर्धक पेय माना जाता है, जो गुर्दे की पथरी को घोलने में मदद करता है। यह गुर्दे की सभी पथरी को तोड़ने और मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकालने में मददगार है। नारियल का पानी पेशाब के दौरान होने वाली जलन से राहत दिलाने में भी सक्षम है।

भिंडी का सेवन

भिंडी, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के साथ मैग्नीशियम से भरपूर होती है। भिंडी किडनी में मौजूद रसायनों के क्रिस्टलीकरण को रोकने में भी मदद करती है, इस प्रकार यह किडनी की पथरी के लिए एक उत्कृष्ट उपाय है। अपने आहार में भिंडी को शामिल करना मददगार हो सकता है क्योंकि यह गुर्दे की पथरी के लिए एक उत्कृष्ट आयुर्वेदिक उपचार है।

कुल्थी दाल

कुल्थी दाल गुर्दे की पथरी और पित्ताशय की पथरी की रोकथाम और छुटकारा दिलाने में काफी उपयोगी है। यह पथरी को छोटे टुकड़ों में तोड़ देती है, जिससे पथरी आसानी से मूत्र मार्ग से बाहर आ जाती है।

तुलसी (तुलसी के पत्ते)

तुलसी भी गुर्दे की पथरी को घलाने में सक्षम है। यह किडनी को स्वस्थ बनाए रखने में भी मदद करती है। हम चाय के साथ या अलग से तुलसी के पत्तों का सेवन कर सकते हैं।

शहद के साथ नींबू का रस

गुर्दे की पथरी के लिए सामान्य या गर्म पानी में नींबू का रस बहुत प्रभावी होता है। इसमें हम शहद और नींबू का रस मिला सकते हैं।

नींबू पथरी को तोड़ने में मदद करता है जबकि शहद गुर्दे की पथरी को बिना किसी कठिनाई के मूत्र के माध्यम से बाहर निकालने में मददगार है।

उपरोक्त के अलावा गन्ने के रस का सेवन, तरबूज, कद्दू का सूप, मौसमी का रस , छाछ, जौ का पानी, आंवला पाउडर का सेवन करने से भी गुर्दे की पथरी से छुटकारा पाया जा सकता है।

तम्बाकू छोड़ने के उपाय, तम्बाकू कैसे छोड़े,

तम्बाकू छोड़ने का निश्चय करें। दिन अभी तय करें। आप अपने आस-पास रखी तम्बाकू वाली सभी चीजों को हटा दें। समय-समय पर कोई भी ऐसा दिन पुकर्रर करें, जब आप पूरे दिन में तम्बाकू का सेवन नहीं करेंगे। तम्बाकू छोड़ने के बाद शरीर के अच्छे प्रभावों पर गौर कीजिए। जब तम्बाकू के सेवन की तलब जोर से लगे तो अपनी तलब को थोड़ी देर भुला दें। अथवा अदरक को छोटे हिस्सों में काटकर उसे सेक कर उस पर निंबू व सेंधा नमक लगाकर उसका सेवन करें। तम्बाकू के सेवन की तलब से ध्यान हटाने के लिए कोई दूसरा कार्य करें। उन जगहों पर न जाएँ, जहाँ आपका मन धूम्रपान करने/तम्बाकू चबाने के लिए ललचाए। समान विचार रखने वाले ऐसे व्यक्तियों को दोस्त बनाएँ, जो तम्बाकू छोड़ने की आपकी कोशिश में आपको प्रेरित करें। तम्बाकू का सेवन न करने से होने वाली बचत की गणना कम उम्र में कैंसर कर अपने तम्बाकू छोड़ने के फैसले को मजबूत बनाएँ। अपने फैसले को मजबूत बनाएँ। अपने फैसले पर अटल रहें। अपनी छवि को सकारात्मक बनाएँ-अगर आप तम्बाकू का सेवन छोड़ देते हैं तो यह आपकी जीत है-अपने आपको मुबारकबाद दें और फिर आप देखेंगे कि दूसरे लोग भी आपके नक्शे कदम पर चलेंगे। ध्यान रखें आप हमेशा के लिए तम्बाकू छोड़ें। तम्बाकू सेवन छोड़ने पर कुछ मामूली शारीरिक व मानसिक कठिनाई होती हैं इन कठिनाइयों को दवाइयों एवं समय-समय पर मनोचिकित्सा द्वारा समाप्त किया जा सकता है। इस सप्ताह का समय निश्चित करें और प्रथम दिन से 10 दिन तक निरतंर प्रतिदिन तम्बाकू की मात्रा कम करते जाऐं। अन्तिम 4 दिवस बिल्कुल सेवन ना करें। अपने साथ सौंफ, मिश्री, लौंग या दालचीनी रखें और तम्बाकू के सेवन की तलब होते ही इनका इस्तेमाल करें। तुलसी, अजवायन, कालीमिर्च, दालचीनी, लौंग तथा गुड़युक्त बिना दूध की चाय धीरे-धीरे चुस्की लेकर पियें।

कैंसर हैं या नहीं , निर्णय कैसे लें।

कैंसर का ईलाज जितनी जल्दी शुरू करते हैं, उतना ही नतीजा बेहतर होता है। हकीकत यह है कि कई डॉक्टर भी इस तथ्य को जल्दी स्वीकार करने से डरते हैं कि मरीज को कैंसर होने की आशंका के बारे में कैसे बताएं इसलिए वे तमाम दवा देकर देख लेते हैं, लेकिन कैंसर के टेस्ट के लिए नहीं कहते। जबकि ऐसे तमाम उदाहरण हैं जब -लगातार खांसी, मुंह के छाले, दांतों से लगातार खून आना, ये भी ओरल कैंसर के लक्षण हो सकते हैं और नहीं भी। पेशाब में खून
आना प्रोस्टेट कैंसर का लक्षण हो सकता है। कई बार किडनी में स्टोन की वजह से भी पेशाब में खून आता हैं। शरीर में गांठ जो तेजी से बढ़ रही हो। यहां इस बात का ध्यान रखें कि अमूमन जिन गांठों में दर्द हो, शुरूआत में उनमें कैंसर सेल्स के होने की आशंका कम रहती है। अगर दर्द न हो तो आशंका बढ़ जाती हैं। जैसे अगर किसी महिला के ब्रेस्ट में गांठ है और दर्द भी है तो ऐसा अमूमन हॉर्मोन की परेशानी से ऐसा होता हैं। तेजी से वजन कम होना कैंसर का सबसे विशेष लक्षण है। अगर किसी का वजन 3 महीने में 10 किलो कम हो जाए तो उसे जरूर जांच करानी चाहिए। वैसे ध्यान देने वाली बात यह है कि शुगर और टीवी के मामले में भी कई बार अचानक वजन कम होता हैं। स्प्लीन (पेट में मौजूद इस अंग के कई सारे काम हैं, लेकिन सबसे अहम काम है शरीर की सुरक्षा में भूमिका निभाना) और लिंफनोड (यह शरीर के इम्यून सिस्टम का अहम भाग है। शरीर में मौजूद बैक्टीरिया और वाइरस से लड़ने में मदद करता है)। जाड़े में भी रात में पसीना आता है सचेत हो जांए। हालांकि ऐसा दिल के मरीजों के साथ भी होता हैं। अगर किसी महिला को अपने पार्टनर के साथ संबंध बनाते समय बार-बार ब्लीडिंग हो तो डॉ. से जरूर मिल लें। वैसे, जिस महिला ने किसी के साथ फिजिकल रिलेशन नहीं बनाए हैं, उसमें सर्वाइकल कैंसर का खतरा न के बराबर होता हैं। अगर कोई शारीरिक परेशानी हो रही है और वह बार-बार हो तो यह कतई जरूरी नहीं वह कैंसर हैं। वह कोई दूसरी छोटी-मोटी बीमारी भी हो सकती है। फिर भी सतर्कता जरूरी है।

Pavtan Pavtan
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