क्या आप भी सोरायसिस की समस्या से पीड़ित है? अपनाएं ये आयुर्वेदिक नुस्खे और पाएं इस बीमारी से छुटकारा
क्या आप भी सोरायसिस की समस्या से पीड़ित है? अपनाएं ये आयुर्वेदिक नुस्खे और पाएं इस बीमारी से छुटकारा
त्वचा हमारे शरीर की ऐसी अभिन्न अंग है, जो हमें हवा और स्पर्श को महसूस करने में भी मदद करती है। आयुर्वेद की मानें तो त्वचा रक्त धातु से बनती है एवं त्वचा से जुड़े विकारों को कुष्ठ रोग कहा जाता है। ऐसा ही एक त्वचा से जुड़ा रोग सोयरासिस है, जिसके बारे में जानना जरुरी है। आज के आर्टिकल में हम इसी के बारे में विस्तार से जानेंगे।
सोरायसिस रोग क्या होते हैं?
सोरायसिस त्वचा से जुड़ी एक बीमारी है, जिसमें त्वचा पर लाल रंग के पपड़ीदार चकत्ते बनने लगते हैं। यह रोग ज़्यादातर जवान या बड़े उम्र के लोगों में देखने को मिलता है। लेकिन कभी कभार कम उम्र में भी यह समस्या देखी जा सकती है। सोरायसिस से महिलाएं और पुरुष दोनों समान रूप से प्रभावित होते हैं। यहाँ एक बात और है कि सोरायसिस किसी तरह का संक्रमण नहीं है, और न ही यह कोई संक्रामक है यानी यह छूने या हाथ मिलाने से नहीं फैलता है।
जैसा कि यह त्वचा रोग छूने या हाथ मिलाने से नहीं फैलता, इसके बावजूद पीड़ित को कई तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार यह किसी व्यक्ति के भावनात्मक, मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को भी प्रभावित कर देता है। चिकित्सा विज्ञान अब तक सोरायसिस के असल कारण तक नहीं पहुंच पाया है, लेकिन भी कुछ सामान्य कारण हैं जो सोरायसिस के लक्षणों को प्रभावित कर सकते हैं। अकसर कहा जाता है कि यदि परिवार में किसी को सोरायसिस है, तो अगली पीढ़ी में सोरायसिस रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
सोरायसिस रोग होने के क्या क्या कारण होते हैं?
यूँ तो आमतौर पर सोरायसिस रोग होने के एक बड़ा कारण आनुवंशिक है। लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसे कारण हैं, जिससे यह रोग हो सकता है। आइए, हम इस रोग के कारणों के बारे में जानते हैं।
तनाव
मानसिक तनाव सोरायसिस के प्रमुख कारणों में से सबसे आम है। हम तनाव के कारणों पर नियंत्रित कर सोरायसिस रोग से खुद का बचाव कर सकते हैं।
चोट लगना
सोरायसिस उन जगहों पर भी हो सकता है जहाँ पर हमारी त्वचा को चोट पहुंची है। खरोंच, सनबर्न, कीड़ो के काटने और टीका लगने से हुए घाव पर भी सोरायसिस रोग हो सकता है या बढ़ सकता है।
इन्फेक्शन
त्वचा से जुड़ा किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन सोरायसिस रोग को बढ़ा सकता है। ऐसे में जरुरी है कि किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन होने पर तुरंत अपना उपचार करवाएं।
मौसम
मौसम का भी सोरायसिस से सम्बन्ध है। सर्दी और बारिश के समय का कोई घाव या चोट सोरायसिस को प्रभावित कर सकता है। ठंडा मौसम सोरायसिस को बढ़ा सकता है।
स्मोकिंग
स्मोकिंग या धूम्रपान भी सोरायसिस का एक कारण माना गया है। इसलिए सोरायसिस से बचाव के लिए धूम्रपान छोड़ने की सलाह दी जाती है।
सोरायसिस रोग के लक्षण क्या होते हैं?
सोरायसिस एक ऐसी बीमारी है जो किसी भी जगह की त्वचा पर हो सकती है, लेकिन ये ज़्यादातर कोहनी, घुटने और पीठ पर होती है। सोरायसिस का असर सर की चमड़ी पर और नाखूनों में भी देखने को मिलता है। आइए, अब हम इसके कारणों पर नज़र डालते हैं।
- त्वचा में लाल के चकत्ते (Rashes) होना।
- शरीर में सफेद कलर की मोटी परत जमना।
- चकतों में खुजली और लालपन (Redness) होना।
- लाल रंग के चकतों का ज्यादातर घुटने और कोहनी के बाहरी भागों में होना।
- सोरायसिस जहां पर होता है वहां पर खुजली के साथ-साथ दर्द का होना।
- त्वचा में सुखापान (Dryness) आना और दरारें (Fissures) पड़ना
- त्वचा का छिल जाना
- त्वचा की चमड़ी की मोटाई (Thickness) का कम होना
- त्वचा के ऊपर लाल रंग के पापड़ीदार उभरे हुए चकते बनना
- जोड़ों का दर्द, सूजन या अकड़न आना
- नाखूनों में असामान्यताएं, जैसे कि गड्ढेदार, बदरंग, या टेढ़े-मेढ़े नाखून होना।
सोरायसिस रोग किस उम्र के लोगों में होता है?
सोरायसिस यूँ तो अनुवांशिक रोग है, यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है। जिन लोगों के माता पिता को यह बीमारी होती है, उन बच्चों में इसके होने की संभावना अधिक होती है। अगर हम उम्र की बात करे तो सोरायसिस 45 – 79 वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों को होने की संभावना अधिक रहती है।
क्या आयुर्वेद में सोरायसिस रोग का उपचार किया जा सकता है? (Ayurvedic treatment for Psoriasis)
सोरायसिस के इलाज के लिए सबसे कारगर आयुर्वेदिक विधि पंचकर्म है। इसमें शरीर, त्वचा कोशिकाओं और दिमाग को शुद्ध करने के लिए शाकाहारी भोजन की सलाह दी जाती है। पंचकर्म चिकित्सा सोरायसिस के इलाज के लिए सरल आहार परिवर्तन का महत्व बताती है।
सोयरासिस के लिए आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियां
सोयरासिस के इलाज के लिए हम इन जड़ी बूटियों को अपना सकते हैं।
गुडुची – निदान परिवर्जन में इसका उपयोग किया जाता है, जिससे यह रोग बढ़ता नहीं है और दोबारा नहीं होता है।
सरिवा – यह शरीर के तंत्रिका और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है।
हल्दी – यह त्वचा विकारों को दूर करने में मददग़ार है।
मंजिष्ठा – यह रक्तशोधन यानी खून की सफाई का कार्य करती है।
सोयरासिस में क्या नहीं खाना चाहिए ?
- मैदा, चना, मटर, उड़द की दाल इत्यादि से परहेज करें खाद्य पदार्थों का परहेज करना चाहिए।
- अधिक खट्टे फलों का ज्यादा सेवन करने से बचें
- सब्जियों में सरसों, टमाटर, बैंगन, कंद-मूल को कम करें
- दही, दूध, कोल्ड ड्रिंक का सीमित सेवन
- तेल युक्त और मसालेदार भोजन नहीं करें
- नॉनवेज का सेवन नहीं करें
- नमक का कम उपयोग करें
- चीनी का सिमित मात्रा में सेवन करें आदि।
उपरोक्त आर्टिकल में आपने सोयरासिस के बारे में विस्तार से जाना। यह आर्टिकल इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न आर्टिकल्स के आधार पर लिखा गया और जानकारी मात्र के लिए है। अगर आप उपरोक्त में से कोई लक्षण महसूस करते हैं तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएं।