Category: Ayurvedic Treatment

क्या बलगम में खून आना खतरनाक है? जानिए इसके कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

बलगम में खून आना ऐसी समस्या है, जिसे नजरअंदाज करना खतरनाक साबित हो सकता है। बलगम में खून आने को हेमोप्टाइसिस कहते हैं। अगर बलगम खांसी में बहुत ज़्यादा खून आ रहा है, तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि यह शरीर में किसी अंदरूनी समस्या या बीमारी का संकेत भी हो सकता है। कई बार यह समस्या संक्रमण, चोट या अन्य कारणों से भी होती है, लेकिन बलगम में खून आने पर उसे अनदेखा नहीं करना चाहिए, और तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

आयुर्वेद में ऐसे प्राकृति उपचार के बारे में बताया गया हैं, जिन्हें अपनाने से इस समस्या से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है। इस आर्टिकल में हम बलगम में खून आने के कारण, इसके लक्षण और आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानेंगे।

बलगम में खून आने के कारण

  1. सांस की नली में संक्रमण

अगर सांस की नली में संक्रमण है, तो बलगम में खून आने की समस्या हो सकती है। ब्रोंकाइटिस, निमोनिया या अन्य संक्रमण के कारण फेफड़ों और सांस की नली में सूजन पैदा होती, जिससे बलगम में खून आ सकता है।

  1. फेफड़ों की गंभीर बीमारियां

फेफड़ों से जुड़ी टीबी, फेफड़ों का कैंसर या पल्मोनरी एम्बोलिज्म आदि बीमारियों में भी बलगम में खून आने की समस्या हो सकती है। ये बीमारियां आमतौर पर लंबे समय तक खांसी और कमजोरी के लक्षणों के साथ आती हैं।

  1. नाक या गले की चोट

कभी-कभी नाक या गले की अंदरूनी चोटों के कारण भी बलगम में खून आ सकता है, लेकिन यह समस्या लम्बे समय तक नहीं रहती। चोट के ठीक होने के साथ समस्या भी खत्म हो जाती है।

  1. अस्थमा या एलर्जी

अस्थमा या एलर्जी की समस्या होने पर भी बलगम में खून आ सकता है। इसके अलावा फेफड़ों में खून के थक्के, धूम्रपान, और प्रदूषण के कारण भी यह समस्या देखने को मिलती है।

  1. रक्त का पतला होना

खून को पतला करने की दवाइयों के सेवन से भी बलगम में खून आने की संभावना बढ़ जाती है।

क्या बलगम में खून आना खतरनाक है?

बलगम में खून आना खतरनाक हो सकता है, लेकिन यह हमेशा गंभीर नहीं होता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि बलगम में खून कितनी मात्रा में, और यह कितनी बार आ रहा है। अगर बार-बार या लगातार खून आ रहा है, तो समस्या गंभीर हो सकती है।

अगर यह समस्या बार-बार होने के साथ ही खून की मात्रा भी बढ़ रही है, और उसके साथ अन्य लक्षण जैसे तेज बुखार, सीने में दर्द और सांस लेने में कठिनाई का अनुभव हो रहा ​है, तो इस स्थिति में तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए।

बलगम में खून आने के साथ अन्य लक्षण

  1. बलगम में हल्के लाल से गहरे भूरे रंग का खून दिखना।
  2. बार-बार खांसी के साथ खून आना।
  3. खून की मात्रा का समय के साथ बढ़ना।
  4. सांस लेने में कठिनाई महसूस होना।
  5. सीने में दर्द, भारीपन या जलन होना।
  6. तेज बुखार एवं ठंड लगना।
  7. कमजोरी और थकान का अनुभव।
  8. भूख कम लगना, वज़न कम होना आदि।

बलगम में खून आने की समस्या का आयुर्वेदिक उपचार

  1. मुलैठी और शहद

मुलैठी एक प्राकृतिक जड़ी-बूटी है, जो फेफड़ों की सूजन को कम करने में मददगार है। मुलैठी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार सेवन करना लाभदायक माना गया है।

  1. तुलसी और अदरक का रस

तुलसी और अदरक का रस बलगम में संक्रमण को ठीक करने में सहायक है। इसे शहद के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए।

  1. हल्दी और गर्म पानी

हल्दी में एंटीसेप्टिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। रात को सोने से पहले एक गिलास गर्म पानी में हल्दी मिलाकर पीने से बलगम साफ होता है, और खून आना बंद हो सकता है।

  1. त्रिफला चूर्ण

त्रिफला चूर्ण शरीर को डिटॉक्स करने का काम करता है, और फेफड़ों को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है। इसे गुनगुने पानी के साथ रात में लेना फायदेमंद है।

  1. आंवला रस

आंवला का रस रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, और फेफड़ों को मजबूत बनाता है। रोजाना आंवला रस का सेवन बलगम से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहाय​क है।

अन्य घरेलू उपाय

  1. धूम्रपान और अत्यधिक प्रदूषण से बचें।
  2. गर्म और ताजे भोजन का सेवन करें।
  3. नियमित योग और प्राणायाम करें।
  4. पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
  5. मसालेदार और तला हुआ नहीं खाएं।

यह आर्टिकल इस समस्या से जुड़ी सामान्य जानकारी के​ लिए लिखा गया है। किसी भी प्रकार के लक्षण दिखने पर, और आयुर्वेदिक उपचार लेने से पूर्व विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें। डॉक्टर आपकी समस्या और स्थिति के आधार पर बेहतर उपचार सुझाएंगे।

क्या आपका भी खून हो गया है गाढ़ा? जानिए खून पतला करने के आयुर्वेदिक उपाय

आज के समय में स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत आवश्यक हो गया है, क्योंकि गलत खानपान, रोजमर्रा की जिंदगी और मौसम में परिर्वतन के साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं। ऐसी ही एक समस्या है सर्दी के मौसम में खून का गाढ़ा हो जाना, जो हमारे लिए जोखिम पैदा कर सकता है क्योंकि इसकी वजह से दिल का दौरा या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।

दरअसल, बहुत कम ही लोगों को इस बारे में पता होता है कि उनका खून गाढ़ा हो गया है, और इसका कारण क्या है? अगर हम खून के गाढ़ा होने के कारण को जान लें और कुछ उपायों को अपना लें तो हम इससे होने वाली बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं। इस आर्टिकल में हम खून गाढ़ा होने के कारण, लक्षण और इससे बचाव के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

सर्दियों में खून गाढ़ा क्यों होता है?

सर्दी के मौसम में जब ठंड बढ़ती है तो हमारा खून गाढ़ा हो जाता है, जिससे रक्त के थक्के जम जाते हैं। रक्त का थक्का जमने से कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिसमें हृदय रोग प्रमुख है। यही एक कारण है कि सर्दी के मौसम में हमें अधिक दिल के दौरे और स्ट्रोक के मामले देखने को मिलते हैं।

सर्दी में रक्त का थक्का जमने से पूरे शरीर का ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित रहता है, और दिल पर खून को पंप करने का प्रेशर बढ़ता है जिससे हाई बीपी की समस्या हो जाती है। इसके अलावा रक्त का थक्का जमने से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोगधक क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसे में ठंड में निमोनिया और फेफड़ों संबंधी समस्याएं देखने को मिलती हैं।

खून गाढ़ा होने के लक्षण क्या है?

आमतौर पर खून गाढ़ा होने पर कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं। यह तब पता चलता है जब शरीर के किसी स्थान पर रक्त का थक्का जाता है। इसके अलावा अगर निम्नलिखित में से कोई लक्षण दिखाई दें तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएं।

  1. आंखों का धुंधलापन
  2. सिरदर्द
  3. खुजली
  4. सांस लेने में परेशानी
  5. चक्कर आना
  6. ब्लड प्रेशर का ज़्यादा होना
  7. कमज़ोरी महसूस होना

खून पतला करने के घरेलू उपाय क्या है?

  1. हल्दी

हल्दी का सेवन खून पतला करने के लिए बहुत ही असरदार उपाय है। हल्दी में सूजनरोधी और रक्त को पतला करने वाले या थक्कारोधी गुण होते हैं। सर्दी के मौसम में गुनगुने दूध के साथ हल्दी का सेवन फायदेमंद रहता है।

  1. अदरक

अदरक खून के थक्के जमने से रोकने में मदद कर सकता है। अदरक में सैलिसिलेट्स भी होते हैं जो एस्पिरिन की तरह खून को पतला करने का गुण रखते हैं।

  1. दालचीनी

दालचीनी में खून को पतला करने वाला एजेंट कॉमारिन होता है। रक्त-पतला करने वाली दवा वारफारिन, कॉमारिन से ही प्राप्त होती है इसलिए दालचीनी का सेवन अवश्य करें।

  1. खट्टे फल

खून प​तला करने के लिए खट्टे फलों जैसे संतरा, मौसमी आदि का सेवन फायदेमंद है। खट्टे फलों में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो सूजन को कम करते, ब्लड सर्कुलेशन बेहतर बनाते और खून को गाढ़ा होने से रोकते हैं।

  1. अनार

अनार के बीज नाइट्रेट और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं जो ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ावा देते हैं। अनारा खाने से मस्तिष्क, हृदय, मांसपेशियों और शरीर के अलग-अलग अंगों में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है।

अगर आप खून गाढ़ा होने के लक्षणों को महसूस करते हैं, तो किसी भी प्रकार का आयुर्वेदिक उपाय अपनाने से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

लेखक के बारे में

अगर आप कैंसर, मधुमेह, अस्थमा, किडनी, गठिया रोग, ब्लड प्रेशर, गेस्ट्रिक, लीवर या किसी अन्य समस्या से ग्रसित है तो भीलवाड़ा के रायला स्थित श्री नवगृह आश्रम अवश्य पधारें।

श्री नवगृह आश्रम में कई रोगों का आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार किया जाता है। किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए सम्पर्क करें।

मोबाइल नम्बर : +91 844 844 9569, +91 7665555755, +91 7023062755

पता: श्री नवगृह आश्रम, ग्राम – मोती बोर का खेड़ा, ग्राम पंचायत – रायला, जिला भीलवाड़ा।

प्रोस्टेट की समस्या को जड़ से खत्म करने का आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

आज के समय में न चाहते हुए भी हम किसी न किसी विकार से ग्रसित हो ही जाते हैं। ऐसा ही एक विकार प्रोस्टेट ग्रंथि से जुड़ा हुआ है। जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि के अधिक विकसित होने या उसके बढ़ जाने से व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याएं हो जाती हैं। आज के आर्टिकल में हम इसी के बारे में विस्तार से जानेंगे।

प्रोस्टेट की समस्या क्या होती है?

प्रोस्टेट की समस्या आमतौर पर पुरुषों में होती है, और उम्र के साथ साथ इसकी संभावना और अधिक बढ़ जाती है। प्रोस्टेट ग्रंथि पुरुषों की प्रजनन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जो वीर्य के एक भाग का उत्पादन करती है। जब यह ग्रंथि बढ़ती है, या इसमें सूजन होती है, तो इससे विभिन्न समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

प्रोस्टेट ग्रंथि क्या होती है?

प्रोस्टेट शरीर में मौजूद एक ग्रंथि है, जिसे ‘पौरुष ग्रंथि‘ भी कहा जाता है। यह एक द्रव पदार्थ का उत्पादन करती है, जो स्खलन के दौरान शुक्राणुओं को ले जाने का कार्य करता है। पौरुष ग्रंथि मूत्रमार्ग के चारों ओर स्थित होती है। प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने का मतलब इसके अधिक विकसित होने से लगाया जाता है। प्रोस्टेट ग्रंथि उम्र के साथ साथ बढ़ती है, जिससे मूत्राशय से मूत्र का प्रवाह अवरूद्ध हो जाता है।

प्रोस्टेट की समस्याएं क्या क्या होती है?

बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया (BPH): यह एक सामान्य स्थिति होती है, जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से मूत्र नली पर दबाव पड़ता है, और मूत्र संबंधी समस्याएं होती हैं।

प्रोस्टेटाइटिस: प्रोस्टेट की सूजन को प्रोस्टेटाइटिस कहा जाता है, यह संक्रमण या अन्य कारणों से होती है।

प्रोस्टेट कैंसर: यह प्रोस्टेट ग्रंथि में उत्पन्न होने वाला कैंसर है, जो अधिक उम्र के पुरुषों में देखने को मिलता है।

प्रोस्टेट की समस्याओं के लक्षण क्या है?

प्रोस्टेट की समस्याओं के लक्षण निम्नलिखित हैं।

  • पेशाब करने में कठिनाई।
  • बार-बार पेशाब करने की आवश्यकता।
  • रात को बार-बार पेशाब आना।
  • पेशाब में खून आना।
  • पेशाब के दौरान जलन या दर्द।
  • नीचले पेल्विक क्षेत्र में दर्द।
  • वीर्य में खून आना।
  • नींद में पेशाब आ जाना।
  • पेशाब कंट्रोल नहीं कर पाना।
  • पेशाब के रंग व गंध में बदलाव।
  • यौन क्रियाओं में समस्याएं आदि।

प्रोस्टेट की समस्याओं के कारण क्या है?

प्रोस्टेट की समस्याओं के कारण निम्नलिखित है।

  • उम्र का बढ़ना: उम्र के साथ साथ प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से भी यह समस्या होती है।
  • हॉर्मोनल परिवर्तन: टेस्टोस्टेरोन और अन्य हॉर्मोन में बदलाव होना।
  • जेनेटिक : परिवार में प्रोस्टेट की समस्या होना।
  • जीवनशैली और आहार: असंतुलित जीवनशैली और अस्वास्थ्यकर आहार का सेवन।
  • संक्रमण: बैक्टीरियल संक्रमण।
  • अन्य स्वास्थ्य समस्याएं: मोटापा, मधुमेह, और हाई बीपी आदि।

प्रोस्टेट की समस्या का आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

प्रोस्टेट की समस्या के लिए आयुर्वेदिक में कुछ उपायों और जड़ी बुटियों के बारे में बताया गया है। जीवनशैली में बदलाव और आयुर्वेदिक उपचार के माध्यम से इस समस्या से निजात पाने में मदद मिल सकती है।

प्रोस्टेट की समस्या का आयुर्वेदिक उपचार इस प्रकार है।

शिलाजीत:

शिलाजीत प्रोस्टेट स्वास्थ्य को सुधारने में मददगार है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, और सूजन को कम करता है।

त्रिफला:

त्रिफला आंवला, बहेड़ा, हरड़ का मिश्रण होता है, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है। यह पाचन तंत्र को सुधारता है, और प्रोस्टेट स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

गोखरू:

गोखरू प्रोस्टेट की सूजन को कम करता है, और मूत्र संबंधी समस्याओं में सुधार करता है। यह मूत्र प्रणाली के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद माना गया है।

पुनर्नवा:

पुनर्नवा मूत्रवर्धक गुणों से युक्त होता है, और प्रोस्टेट की सूजन को कम करने में सहाय​क है।
यह मूत्र प्रणाली की सफाई करता है, और संक्रमण को रोकता है।

अश्वगंधा:

अश्वगंधा तनाव को कम करने और हॉर्मोनल संतुलन को बनाए रखने में मददगार है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है।

कांचनार गुग्गुल:

कांचनार गुग्गुल प्रोस्टेट की सूजन को कम करने में काम में लिया जाता है। यह लसीका तंत्र को सुधारता है, और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है।

प्रोस्टेट की समस्या को खत्म करने के अन्य उपाय

  • संतुलित आहार का सेवन।
  • जीवनशैली में बदलाव।
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पिए।
  • नियमित व्यायाम व ध्यान आदि।

उपरोक्त आर्टिकल में आपने प्रोस्टेट की समस्या, इसके लक्षणों, कारणों और आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जाना। यह आर्टिकल प्रोस्टेट की सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है। प्रोस्टेट की समस्या होने पर डॉक्टर को अवश्य दिखाएं। कोई भी आयुर्वेदिक उपचार शुरू करने से पूर्व भी चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें।

क्या आपको भी हर समय डर और घबराहट सी रहती है? जानिए इससे छुटकारे के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में!

क्या आपने कभी एकाएक डर और घबराहट महसूस की है? किसी बात की चिंता या विचार से कभी आपने ऐसा महसूस किया हो? संभव है कि कुछ दिनों या सप्ताह के लिए आप इस समस्या से गुजरे हो या फिर अगर आप ऐसे किसी अनुभव से नहीं गुजरे हैं, तो यह अच्छी बात है।

आज के समय में शारीरिक के साथ मानसिक विकार बहुत आम होता जा रहा है। भागदौड़ भरी जिन्दगी, आर्थिक समस्या, तनाव, चिंता आदि कारणों से मन से जुड़े विकार बढ़ रहे हैं। मानसिक विकार किसी को भी हो सकते हैं, ये विकार शारीरिक समस्याओं के भी कारण बनते हैं। ऐसी ही एक समस्या का नाम है व्यक्ति को हर समय डर एवं घबराहट रहना।

सामान्य शब्दों में हर समय डर एवं घबराहट रहना एंग्जाइटी का लक्षण है। आज के इस आर्टिकल में हम हर समय डर एवं घबराहट के कारणों, लक्षणों और इससे छुटकारा पाने के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानेंगे।

हर समय डर और घबराहट क्यों होती है?

हर समय डर और घबराहट को एंग्जायटी डिसऑर्डर कहा जाता है, यह एक मानसिक बीमारी है, जिसमें मरीज को बेचैनी के साथ घबराहट, चिंता, डर और नकारात्मक विचार आते हैं। यदि समय रहते इसका उपचार नहीं किया जाता है, तो यह गंभीर हो सकता है।

एंग्जाइटी के लक्षण क्या होते हैं?

एंग्जाइटी के लक्षण निम्नलिखित है:-

  • हर समय बेचैनी
  • घबराहट
  • नींद नहीं आना
  • सांस लेने में तकलीफ
  • काम में मन न लगना
  • अचानक दिल की धड़कन बढ़ना
  • नकारात्मक विचार आना
  • थकान और कमजोरी
  • जी मिचलाना
  • पाचन से जुड़ी समस्या
  • चक्कर आना
  • अधिक पसीना आना
  • हाथ-पैर का ठंडा होना
  • हाथ-पैरों में सुन्न या झुनझुनाहट
  • स्थिर से बैठने में समस्या

एंग्जायटी के कारण क्या है?

एंग्जायटी या हर समय डर और घबराहट महसूस होने के कारण निम्न​लिखित हैं।

तनाव और चिंता: बहुत अधिक तनाव या चिंता करना हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बूरा प्रभाव डालता है, जिससे भी डर और घबराहट हो सकती है

डिप्रेशन: अवसाद या डिप्रेशन भी डर और घबराहट का कारण है। डिप्रेशन में व्यक्ति का आत्मविश्वास कम हो जाता है, और उसे हर समय नकारात्मक विचार आते हैं।

फोबिया: कुछ विशेष परिस्थितियों या वस्तुओं का डर (फोबिया) भी हर समय घबराहट का कारण हो सकता है। एंग्जायटी में यह समस्या आम है, जैसे मृत्यु का डर आदि।

व्यक्तिगत समस्याएं: व्यक्तिगत या परिवार की समस्याएं भी चिंता और डर का कारण बनती हैं।

शारीरिक कारण: कुछ शारीरिक समस्याएं जैसे थायरॉयड डिसऑर्डर, हॉर्मोनल असंतुलन, या अन्य चिकित्सीय स्थितियों के कारण भी व्यक्ति एंग्जायटी का ​शिकार हो जाता है।

आहार और जीवनशैली: अस्वस्थ आहार, अपर्याप्त नींद, और शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण भी एंग्जायटी की समस्या देखने को मिलती है।

नशीली दवाओं का सेवन: शराब, धूम्रपान, या अन्य नशीली दवाओं का सेवन भी मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

एंग्जायटी से छुटकारा पाने के आयुर्वेदिक उपाय क्या है?

एंग्जायटी से छुटकारा पाने के लिए आयुर्वेद में कई उपाय बताए गए हैं। यहां हम आपको कुछ आयुर्वेदिक उपाय बताने जा रहे हैं, जो एंग्जायटी से छुटकारा पाने में मददगार साबित हो सकते हैं।

अश्वगंधा: अश्वगंधा एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जो तनाव और एंग्जायटी को कम करने में मदद करती है। इसे रोजाना सेवन करने से मानसिक शांति मिलती है।

ब्रह्मी: ब्रह्मी मस्तिष्क की कार्य प्रणाली बेहतर बनाने के लिए जानी जाती है। यह तनाव और चिंता को कम करने में सहायक है।

जटामांसी: जटामांसी एक प्राकृतिक शामक है, जो मानसिक तनाव और एंग्जायटी को कम करने में मदद करती है। इसका सेवन करने से नींद भी अच्छी आती है।

च्यवनप्राश: च्यवनप्राश में कई जड़ी-बूटियाँ होती हैं, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाती हैं और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारती हैं।

तुलसी: तुलसी के पत्तों का सेवन करने से मानसिक शांति मिलती है, और एंग्जायटी कम होती है।

शिरोधारा: शिरोधारा एक आयुर्वेदिक उपचार है, जिसमें माथे पर धीरे-धीरे तेल डाला जाता है। यह उपचार मानसिक शांति और तनाव में राहत प्रदान करता है।

अरोमाथेरेपी: लैवेंडर, चंदन, और अन्य सुगंधित तेलों का उपयोग करने से मन शांत होता है, और एंग्जायटी में कमी आती है।

अच्छी नींद: पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण नींद मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है।

संतुलित आहार: आयुर्वेद में आहार का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है। ताजे फल, सब्जियाँ, और संतुलित आहार का सेवन करने से भी मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।

योग और प्राणायाम: नियमित योग और प्राणायाम का अभ्यास करने से मानसिक तनाव और एंग्जायटी में कमी आती है। विशेष रूप से अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, और शवासन बहुत प्रभावी होते हैं।

इन उपायों को अपनाने से एंग्जायटी से राहत मिल सकती है, हालांकि इन उपायों को अपनाने से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

क्या ब्लड यूरिया एवं क्रिएटिनिन का आयुर्वेदिक दवा में कोई सटीक उपचार है?

आजकल की भागदौड़ भरी जिन्दगी में हम अपना ख्याल नहीं रख पाते हैं, और न चाहते हुए भी किसी न किसी शारीरिक समस्या से ग्रसित हो जाते हैं। इनमें कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जो स्वत: ठीक हो जाती हैं, लेकिन कुछ ऐसी समस्याएं भी होती हैं, जिन पर अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया जाए तो ये गंभीर हो सकती हैं।

ऐसी ही एक शारीरिक समस्या या विकार का नाम है ब्लड यूरिया एवं क्रिएटिनिन का बढ़ जाना! आज के इस आर्टिकल में हम इसी के बारे में जानेंगे।

क्रिएटिनिन क्या है?

क्रिएटिनिन एक रासायनिक अपशिष्ट है, जो हमारी मांसपेशियों की गतिविधि के दौरान क्रिएटिन नामक यौगिक के टूटने से बनता है। इसे मुख्यतः किडनी द्वारा रक्त से फिल्टर किया जाता है और मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकाला जाता है। यह प्रत्येक व्यक्ति के खून में पाया जाता है। हमारे खून में क्रिएटिनिन की मात्रा स्थिर रहती है। अगर यह बढ़ जाए तो किडनी को खराब कर सकता है।

सामान्य क्रिएटिनिन का स्तर कितना होता है?

जानकारी के अनुसार पुरुषों में यह लगभग 0.6 से 1.2 मिलीग्राम/डीएल (मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर) होना चाहिए। महिलाओं में यह लगभग 0.5 से 1.1 मिलीग्राम/डीएल होता है।

ब्लड यूरिया क्या है?

ब्लड यूरिया (Blood Urea) एक महत्वपूर्ण जैविक पदार्थ है, जो खून में पाया जाता है। यह यूरिया नामक यौगिक का हिस्सा होता है, जो प्रोटीन के मेटाबोलिज्म के दौरान लीवर में बनता है। यूरिया खून से किडनी द्वारा फिल्टर होकर मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकलता है।

किडनी में ब्लड यूरिया कितना होना चाहिए?

किडनी की सामान्य कार्यक्षमता के लिए रक्त में यूरिया का स्तर एक निश्चित सीमा के भीतर होना चाहिए। यह स्तर व्यक्ति की उम्र, आहार, स्वास्थ्य स्थिति और अन्य कारकों पर निर्भर कर सकता है। सामान्यतः, रक्त यूरिया नाइट्रोजन (Blood Urea Nitrogen, BUN) का स्तर निम्नलिखित होता है:

सामान्य ब्लड यूरिया नाइट्रोजन (BUN) स्तर:

वयस्क: 7 से 20 मिलीग्राम/डेसीलीटर (mg/dL)
बच्चे: 5 से 18 मिलीग्राम/डेसीलीटर (mg/dL)

क्रिएटिनिन और यूरिया में क्या अंतर है?

क्रिएटिनिन और यूरिया दोनों ही शरीर के अपशिष्ट हैं, जो विभिन्न मेटाबोलिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं और मुख्यतः किडनी द्वारा रक्त से फिल्टर किए जाते हैं। हालांकि, इन दोनों के उत्पादन, कार्य और महत्व में कुछ अंतर जरूर होता है।

ब्लड यूरिया बढ़ने के लक्षण

बार-बार पेशाब आना।
उल्टी आना।
भूख की कमी।
कमजोरी महसूस होना।
ब्लड प्रेशर का बढ़ना या कम होना।
कमजोरी एवं थकान होना आदि।

क्रिएटिनिन बढ़ने के लक्षण

थकान महसूस होना।
अनियमित हार्ट रेट।
मतली और उल्‍टी।
सांस लेने में तकलीफ।
मांसपेश‍ियों में दर्द होना।

ब्लड यूरिया एवं क्रिएटिनिन कम करने का आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में ब्लड यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर को नियंत्रित करने के लिए कुछ उपचार बताए गए हैं। हम आपको कुछ ऐसी जड़ी बुटियों के बारे में ​बताएंगे, जिनका उपयोग ब्लड यूरिया और क्रिएटिनिन को कम करने में सहाय​क हो सकता है।

गोखरू (Tribulus terrestris): गोखरू किडनी फंक्शन को सुधारने में सहायक होता है, और यूरिनरी सिस्टम को मजबूती प्रदान करता है।

पुनर्नवा (Boerhavia diffusa): पुनर्नवा का आयुर्वेद में बहुत महत्व है, यह किडनी की सफाई और उन्हें स्वस्थ रखने में मदद करता है। यह ब्लड यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर को कम करने में भी सहायक है।

गिलोय (Tinospora cordifolia): गिलोय एक इम्यून बूस्टर है और किडनी फंक्शन को सुधारने में मददगार माना गया है।

वरुण (Crataeva nurvala): वरूण किडनी स्टोन और यूरिनरी डिसऑर्डर्स के इलाज में उपयोगी है, और किडनी की कार्यप्रणाली में भी सुधार करता है।

चंद्रप्रभा वटी: यह आयुर्वेदिक दवा कई जड़ी बुटियों का मिश्रण होती है, और किडनी की कार्यक्षमता को सुधारने में सहायक है।

त्रिफला: त्रिफला का सेवन पाचन तंत्र को सुधारने और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।

नीम और हल्दी: नीम और हल्दी में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो शरीर के विभिन्न अंगों की कार्यक्षमता को सुधारने में सहायक हैं।

ब्लड यूरिया एवं क्रिएटिनिन नियंत्रित रखने के सामान्य उपाय?

  • नमक और प्रोटीन का सेवन सीमित करें।
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
  • धूम्रपान और शराब से बचें।
  • योग और प्राणायाम करें।
  • स्वस्थ एवं संतुलित आहार का सेवन।
  • दवाओं का सीमित उपयोग आदि।

इस आर्टिकल में आपने ब्लड यूरिया एवं क्रिएटिनिन के बारे में विस्तार से जाना। यह आर्टिकल इस समस्या से संबंधित जानकारी के लिए लिखा गया है। अगर आप उपरोक्त समस्या से ग्रसित है, तो चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

क्या आपको भी कुछ भी खाते ही हो जाती है उल्टी? जानें इसके कारण और आयुर्वेदिक उपचार

हम सभी अपनी सेहत को लेकर काफी सजग रहते हैं। कुछ भी ऐसा खाने से बचते हैं, जो हमारी सेहत पर बुरा अससर डाले। लेकिन, इसके बावजूद भी हमें कुछ न कुछ ऐसी समस्या हो जाती है, जो हमारे भोजन से रिलेटेड होती है। ऐसी ही एक समस्या है कुछ भी खाते ही उल्टी हो जाना या उल्टी जैसा महसूस होना।

कुछ लोगों को खाना खाने के तुरंत बाद उल्टी की समस्या देखी जाती है। आमतौर पर घरेलु उपचार से इसे ठीक किया जा सकता है। लेकिन जब खाने के बाद उल्टी की समस्या लम्बे समय तक बनी रहे, तब डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

खाना खाने के बाद जी मिचलाना या उल्टी की समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है।
इस लेख में हम खाने के बाद उल्टी आने के पीछे के कारणों और इसके आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जानेंगे।

खाना खाने के बाद उल्टी आने के कारण

  • फूड एलर्जी

जब हमें किसी भोजन विशेष से एलर्जी होती है, और हम उसका सेवन कर लेते हैं तो हमें उल्टी या जी मचलाने की समस्या हो सकती है।

  • फूड पॉइजनिंग

दूषित या हमारे शरीर व पाचनतंत्र के प्रतिकूल भोजन कर लेने से फूड पॉइजनिंग हो जाता है। इसके कारण भी खाने के बाद उल्टी और जी मचलाने की समस्या देखने को मिलती है।

  • पेट में संक्रमण

पेट में किसी प्रकार का संक्रमण होने पर भी खाने के बाद उल्टी आती है। ऐसा संक्रमित वायरस के कारण होता है।

  • गर्भावस्था

अगर कोई स्त्री गर्भवती है, तो उसके साथ भी यह समस्या देखने को मिलती है। यह आम समस्या है।

  • एसिड रिफ्लक्स

एसिड रिफ्लक्स रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें पेट का एसिड बार-बार मुंह और पेट को जोड़ने वाली नली, जिसे ग्रासनली कहा जाता है, उसमें आ जाता है। इस कारण भी यह समस्या हो सकती है।

  • चिंता और तनाव

चिंता और तनाव के कारण भी खाना खाने के बाद उल्टी और जी मचलाने की समस्या हो सकती है। ऐसे में तनाव व चिंता से बचें।

  • पित्ताशय की बीमारी

अगर किसी को पित्ताशय से जुड़ा विकार है, तो उसे भी यह समस्या होती है।

  • आईबीएस

आंतों में ऐंठन, पेट दर्द, सूजन, गैस और दस्त या कब्ज जुड़े विकार के कारण भी खाने के बाद उल्टी की समस्या देखने को मिलती है।

  • मोशन सिकनेस

मोशन सिकनेस की अवस्था में भी उल्टी और मतली की समस्या हो सकती है।

खाने के बाद उल्टी की समस्या होने पर डॉक्टर को कब दिखाएं?

हालांकि भोजन के बाद कभी-कभी मतली या उल्टी गंभीर नहीं है, लेकिन अगर समस्या अधिक दिनों तक बनी रहे, तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। साथ ही खाने के बाद उल्टी के साथ निम्नलिखित लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

  • उल्टी या मल में खून आना
  • छाती में दर्द
  • चिंता
  • दस्त
  • डिहाइड्रेशन
  • कम पेशाब आना
  • कमजोरी या चक्कर आना
  • 101.5°F से अधिक बुखार
  • पेट में तेज दर्द
  • धड़कन तेज होना
  • बार-बार उल्टी होना
  • आंखों या त्वचा पर पीलापन

खाने के बाद उल्टी को रोकने के आयुर्वेदिक उपाय

1 – प्याज का रस

प्याज के रस के माध्यम से उल्टी को दूर किया जा सकता है। प्याज के रस के अंदर पानी, कैलोरी, प्रोटीन, फैट, सैचुरेटेड फैटी एसिड आदि तत्व पाए जाते हैं। अगर खाने के बाद उल्टी जैसी समस्या हो तो प्याज के रस के साथ धनिया का रस मिलाएं और इसका सेवन करें। ऐसा करने से जी मचलाने की समस्या दूर होगी।

2 – लौंग का इस्तेमाल

लौंग में सोडियम, पोटेशियम, विटामिन सी, विटामिन बी, विटामिन ए, फोलेट, नियासिन, मैग्नीशियम, आयरन, ग्लूकोस, फाइबर, प्रोटीन होता है। खाने के बाद अगर उल्टी आए तो लौंग की दो कली को चूसने से जी मिचलाने की समस्या दूर होगी।

3 – जीरे का इस्तेमाल

पेट की समस्या को दूर करने और पाचन तंत्र की सेहत के लिए जीरा भी बेहतर विकल्प है। जीरे के उपयोग से मतली या उल्टी जैसी समस्या भी दूर हो सकती है। ऐसे में पानी में जीरा पाउडर मिलाएं और खाने के बाद उसका सेवन करें।

4 – टमाटर का इस्तेमाल

टमाटर के इस्तेमाल से भी इस समस्या को दूर किया जा सकता है। टमाटर में इलायची और काली मिर्च डालें और अच्छी तरह से कूट लें, और किर उस रस का सेवन करें।

5 – तुलसी का इस्तेमाल

तुलसी के इस्तेमाल से भी उल्टी की समस्या दूर होती है। ऐसे में खाने के बाद तुलसी के रस का उपयोग करना चाहिए।

6 – काली मिर्च का इस्तेमाल

काली मिर्च के इस्तेमाल से भी उल्टी की समस्या दूर हो सकती है। काली मिर्च के कुछ दानों को चूसना चाहिए, ऐसा करने से उल्टी से राहत मिलेगी।

7 – अदरक के इस्तेमाल से

खाने के बाद उल्टी की समस्या को अदरक रोकने में बेहद उपयोगी है। अदरक के अंदर पाए जाने वाले गुण न केवल पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि उल्टी की समस्या से भी राहत पहुंचाते हैं।

खाने के बाद उल्टी को रोकने के अन्य उपाय

खाने के बाद मतली एवंं उल्टी की समस्या में निम्नलिखित उपाय मददगार हो सकते हैं।

  • चिकना, तला हुआ और मसालेदार भोजन नहीं करें।
  • एक बार पेटभर खाने के बजाय थोड़ा-थोड़ा करके बार-बार खाएं।
  • खाने के बाद तुंरत टहलने से बचें।
  • अगर गर्म भोजन की गंध से बेचैनी महसूस हो, भोजन को हल्का ठंडा करके खाएं।
  • जब भी खाना खाएं आराम से खाएं।
  • खाने के तुरंत नहीं लेटना नहीं चाहिए।
  • गैरजरूरी दवाओं को लेने से बचें।

उपरोक्त आर्टिकल में आपने खाने के बादा उल्टी की समस्या, उसके कारणों एवं आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जाना। अगर आप इस समस्या से परेशान हैं तो कोई भी उपाय अपनाने से पूर्व एक बार चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

लिकोरिया की बीमारी क्या होती है? क्या इस बीमारी का कोई आयुर्वेदिक उपचार है?

महिलाओं में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की देखभाल बहुत जरूरी है। कई बार महिलाएं न चाहते हुए भी अपने स्वास्थ्य की अच्छे से देखभाल नहीं कर पाती है, ऐसे में उन्हें कई तरह की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

लिकोरिया या व्हाइट डिस्चार्ज भी उन्हीं में से है। इस आर्टिकल में हम लिकोरिया के बारे में विस्तार से जानेंगे।

लिकोरिया की बीमारी क्या होती है?

लिकोरिया, जिसे सामान्य भाषा में श्वेत प्रदर या व्हाइट डिस्चार्ज भी कहा जाता है। यह एक स्त्री रोग है जिसमें योनि से सफेद या पीले रंग का स्राव (डिस्चार्ज) होता है। यह स्राव अगर सामान्य मात्रा में हो तो यह प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन अत्यधिक या असामान्य स्राव होने लगे, तो यह गंभीर हो सकता है।

सामान्य रूप से व्हाइट डिस्चार्ज चिंता का विषय नहीं होता, लेकिन अगर इसकी मात्रा बढ़ जाए या इसके साथ अन्य लक्षण जैसे जलन, खुजली या दुर्गंध हो, तो यह किसी संक्रमण या अन्य स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।

लिकोरिया क्यों होता है?

लिकोरिया के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  • हार्मोनल असंतुलन: शरीर में हार्मोन के असंतुलन के कारण भी अतिरिक्त डिस्चार्ज हो सकता है।
  • संक्रमण: बैक्टीरियल, फंगल या वायरल संक्रमण भी लिकोरिया का कारण बनते हैं।
  • गर्भावस्था: गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलावों के कारण भी लिकोरिया हो सकता है।
  • सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन्स (STIs): कुछ यौन संचारित रोग भी लिकोरिया का कारण बन सकते हैं।
  • खराब हाइजीन: गुप्तांग की स्वच्छता न रखने से भी संक्रमण और लिकोरिया हो सकता है।
  • योनिक अल्सर: गुप्तांग के अंदर घाव आदि होने से भी लिकोरिया की संभावना रहती है।
  • सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज (STDs): वे बीमारियाँ जो यौन संपर्क के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती हैं, उससे भी लिकोरिया संभव है।

लिकोरिया के लक्षण

  • योनि से अत्यधिक सफेद या पीला स्राव।
  • योनि में खुजली या जलन।
  • कमर और पेट में दर्द।
  • थकान और कमजोरी।
  • योनि में जलन या खुजली।
  • दुर्गंधयुक्त डिस्चार्ज।
  • पेट के निचले हिस्से में दर्द आदि।

लिकोरिया में कौनसी जांच की जाती है?

लिकोरिया का उपचार करने के लिए डॉक्टर आमतौर पर मरीज को जांचों की सलाह देते हैं, उनमें ये तीन प्रमुख हैं।

  • योनि का स्वाब टेस्ट
  • ब्लड टेस्ट
  • अल्ट्रासाउंड

लिकोरिया का आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

आयुर्वेद में ऐसी जड़ी बुटियां मौजूद हैं, जो लिकोरिया में मरीज के लिए मददगार हो सकती है। इन जड़ी-बूटियों के उपयोग और जीवनशैली में सुधार से लिकोरिया को खत्म करने में मदद मिल सकती है। यहां हम आपको कुछ आयुर्वेदिक उपाय बता रहे हैं, जो लिकोरिया को ठीक करने में आपकी मदद कर सकते हैं।

  1. त्रिफला

त्रिफला बहुत ही गुणकारी आयुर्वेदिक मिश्रण है, जो तीन जड़ी बुटियों (आंवला, बिभीतकी, और हरितकी) से मिलकर बना होता है। यह शरीर को डिटॉक्स करने और पाचन तंत्र को मजबूत करने में मदद करता है। एक चम्मच त्रिफला पाउडर को रात में एक गिलास पानी के साथ लें। यह शरीर को डिटॉक्स करता है और योनि संक्रमण को भी कम करने में मददगार है।

  1. अशोक की छाल

अशोक की छाल महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है। अशोक की छाल का पाउडर या काढ़ा तैयार करके दिन में दो बार इसका सेवन करें। यह गुप्तांग के हिस्सों को मजबूत करता है और अत्यधिक डिस्चार्ज को नियंत्रित करता है।

  1. लोध्र (Symplocos racemosa)

लोध्र आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है, जो महिला प्रजनन स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। लोध्र पाउडर को पानी के साथ मिलाकर इसका पेस्ट बनाएं और दिन में दो बार इसका सेवन करें। यह श्वेत प्रदर को कम करने में मदद करता है।

  1. गुग्गुल (Commiphora mukul)

गुग्गुल शरीर के सूजन और संक्रमण को कम करने में सहायक होता है। गुग्गुल की गोलियां या पाउडर का पानी या दूध के साथ सेवन करें। यह संक्रमण से लड़ने में मदद करता है और श्वेत प्रदर को नियंत्रित करता है।

  1. चंदन (Sandalwood)

चंदन का शीतलन प्रभाव होता है और यह योनि की जलन को कम करने में मदद करता है। चंदन पाउडर को पानी या गुलाब जल में मिलाकर उसका पेस्ट बनाएं और इसे बाहरी रूप से योनि क्षेत्र पर लगाएं।

  1. योगाभ्यास

नियमित योग और प्राणायाम भी लिकोरिया को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं। मरीज को मस्त्यासन, भद्रासन, और सर्वांगासन जैसे योगासनों का नियमित अभ्यास करना चाहिए। ये आसन प्रजनन अंगों को मजबूत करने में मदद करते हैं।

लिकोरिया से बचाव के उपाय

  • जननांगों की उचित साफ सफाई रखें।
  • हरी सब्जियाँ, फल, और पौष्टिक आहार का सेवन करें।
  • दिन में पर्याप्त पानी पीएं।
  • नियमित योग और व्यायाम करें।
  • नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच करवाएं।
  • मसालेदार, तले हुए, और जंक फूड से बचें।

उपरोक्त आर्टिकल आयुर्वेदिक उपचार और रोग के संबंध में सामान्य जानकारी के आधार पर हैं। किसी भी उपचार को शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

क्या आप भी गठिया दर्द से है परेशान? अपनाएं ये आयुर्वेदिक उपाय और पाए इस समस्या से छुटकारा

आप ने कभी न कभी गठिया रोग का नाम सुना होगा या फिर किसी बुजुर्ग से यह कहते अवश्य सुना होगा कि उनके घुटनों में दर्द रहता है। दरअसल, यही गठिया विकार है जो अक्सर पचास वर्ष की उम्र के आसपास के लोगों को होता है।

आज के इस आर्टिकल में हम गठिया विकार के बार में विस्तार से जानेंगे।

गठिया रोग क्या होता है?
गठिया रोग के क्या कारण होते हैं?
गठिया रोग की पहचान कैसे करे?
गठिया के दर्द के कम कैसे किया जा सकता है?
क्या गठिया रोग को आयुर्वेदिक उपायों से ठीक किया जा सकता है?

गठिया क्या है?

गठिया बेहद आम है, खासकर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में होता है। गठिया एक ऐसी बीमारी है जो आपके जोड़ों को नुकसान पहुंचाती है। जोड़ शरीर के उस स्थान को कहा जाता है, जहाँ दो हड्डियाँ मिलती हैं। यं तो उम्र बढ़ने के साथ कुछ जोड़ स्वाभाविक रूप से घिसने लगते हैं। ऐसे में बहुत से लोगों को एक उम्र के बाद गठिया हो जाता है। लेकिन कई बार चोट लगने से भी गठिया हो जाता है। कुछ स्वास्थ्य स्थितियां भी गठिया का कारण बनती हैं।

गठिया किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह नीचे कुछ वे जोड़ बताएं जा रहे हैं, जो सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

  • हाथ और कलाई
  • घुटने
  • नितंब
  • पैर और टखने
  • कंधे
  • निचली पीठ (काठ की रीढ़) आदि।

गठिया रोग के क्या कारण होते हैं?

गठिया रोग होने के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं।

बढ़ती उम्र

उम्र बढ़ने के साथ साथ हमारी हड्डियां भी कमज़ोर होने लगती हैं। तकरीबन 60 वर्ष की उम्र के बाद लोगों में यह समस्या देखने को मिलती है। हड्डियों पर शरीर का वज़न न आने से गठिया का खतरा बढ़ जाता है।

मोटापा

शरीर का वज़न बढ़ने से भी उसका प्रभाव जोड़ों पर पड़ता है। इसके चलते जोड़ों में दर्द और ऐंठन की समस्या बनी रहती है।

जेनेटिक

कई बार आनुवांशिक तौर पर भी गठिया का प्रभाव देखने को मिलता है। अगर परिवार का कोई भी सदस्य गठिया से ग्रस्त हो, तो ये आपको भी प्रभावित कर सकता है।

खराब खान पान

उचित खान पान न होना भी गठिया का एक प्रमुख कारण है। हेल्दी डाइट न लेने से लोग आटो इम्यून डिजीज के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में सदैव पौष्टिक भोजन के अलावा एक्सरसाइज़ को भी अपने रूटीन में शामिल करना चाहिए।

चोट लगना

कई बार लगने वाली सामान्य चोट भी ऑस्टियो अर्थराइटिस का कारण बनती है। चोट लगने से कार्टिलेज का स्तर घटने लगता है। इससे शरीर कमज़ोर हो जाता है, और ये समस्या बढ़ जाती है।

गठिया रोग की पहचान कैसे करे? गठिया रोग के लक्षण क्या है?

गठिया रोग के कुछ प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।

  • जोड़ों में दर्द।
  • चलते-फिरते या उठते बैठते दर्द।
  • कठोरता।
  • सूजन।
  • त्वचा का रंग बदलना।
  • छूने पर दर्द।
  • जोड़ों के पास गर्माहट का एहसास आदि।

गठिया के दर्द को कम कैसे किया जा सकता है?

हम निम्नलिखित उपायों को अपनाकर गठिया के दर्द से राहत पा सकते हैं।

दवाओं का उपयोग: हम डॉक्टर से परामर्श लेकर दर्द निवारक आयुर्वेदिक या एलोपैथिक दवाओं का सेवन कर, दर्द से आराम पा सकते हैं।

बर्फ और गरम पानी की सिकाई: हम जोड़ों पर गरम पानी एवं बर्फ की सिकाई कर भी दर्द से एक बार छूटकारा पा सकते हैं।

योग और व्यायाम: हमें नियमित रूप से योग और व्यायाम करना चाहिए, जो गठिया के दर्द को कम करने में मददगार है।

आराम: यदि संभव हो आराम करें और जिन जोड़ों में दर्द रहता है, उस पर लगातार वजन नहीं डाले जैसे अगर पैरों के जोड़ों में दर्द है तो अधिक समय तक खड़ा नहीं रहे आदि।

संतुलित आहार: अपने भोजन में संतुलित एवं पौष्टिक आहार को शामिल करे। जिससे हड्डियां मजबूत हो एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।

क्या गठिया रोग को आयुर्वेदिक उपायों से ठीक किया जा सकता हैं?

जी हां, हम कुछ आयुर्वेदिक उपायों को अपनाकर गठिया विकार से राहत प्राप्त कर सकते हैं, जो इस प्रकार हैं।

हल्दी : हल्दी गठिया के लिए एक बहुत ही गुणकारी है। हम हल्दी को नारियल या फिर सरसों के तेल में मिलाकर प्रभावित जगह पर लेप लगा सकते हैं। ऐसा करने से दर्द से राहत मिलेगी। इसके अलावा गठिया मरीजों के लिए हल्दी का सेवन भी बेहद गुणकारी है। हल्दी में पाया जाने वाला करक्यूमिन नामक तत्व शरीर से दर्द को खत्म करने में मदद करता है।

लहसुन : लहसुन को सरसों के तेल में गर्म करने के बाद उसे अपने जोड़ों पर इस्तेमाल कर सकते हैं। लहसुन में डायलिल डाइसल्फ़ाइड पाया जाता है, जो एंटी इन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है। जिससे आपको सूजन एवं दर्द से राहत मिलेगी।

अदरक : गठिया के दर्द से राहत पाने के लिए अदरक भी बेहद गुणकारी है। अदरक का पेस्ट अपने जोड़ों पर लगाने और अदरक का सेवन भी लाभकारी है। अदरक गठिया के रोगियों के लिए बेहद लाभकारी है।

गुग्गुलु : गठ‍िया रोग के ल‍िए गुग्गुलु का भी इस्‍तेमाल क‍िया जाता है। आयुर्वेद में गठ‍िया रोग के ल‍िए भुजंगासन, ताड़ासन, हलासन, पद्मासन और अर्धमत्स्येन्द्रासन आद‍ि को भी फायदेमंद माना जाता है।

आंखों के नीचे सूजन क्यों होती है? जानें इससे बचने के आयुर्वेदिक उपाय!

दोस्तों, आंखें हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग होने के साथ ही, सुन्दर दिखने में भी मदद करती हैं। लेकिन कई बार हमारी आंखों में कुछ गिर जाने, संक्रमण या अन्य किसी स्थिति से आंखों के नीचे और हड्डी के ऊपर सूजन आ जाती है।

यह सूजन न सिर्फ हमें परेशान करती है, बल्कि सुन्दरता में भी बाधा डालती है। साथ ही अगर सूजन के कारणों की पहचान कर समय पर डॉक्टर से परामर्श नहीं लिया जाए तो यह समस्या गंभीर भी हो सकती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल में हम आंखों के नीचे सूजन आने के कारणों, लक्षणों और आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानेंगे।

आंखों के नीचे सूजन क्यों होती है?

आंखों के नीचे सूजन की समस्‍या को आई बैग्‍स के नाम से जाना जाता है। मेड‍िकल भाषा में इसका नाम पेर‍िऑरब‍िटल एड‍िमा है। आंखों के नीचे सूजन आने के कई कारण हो सकते हैं, जिसके आधार पर यह गंभीर है या सामान्य, इसकी पहचान की जा सकती है।

आंखों की हड्डियों के ऊपर नजर आने वाली सूजन को तब हल्‍के में नहीं लेना चाहिए, जब वह अधिक समय तक रहे। आंखों के नीचे सूजन कई कारणों से हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति की आंखों के नीचे हड्डियों पर सूजन है, सांस लेने में कठिनाई हो रही है और साथ में गंभीर दर्द भी हो रहा है, तो उन्हें तत्काल चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।

आंखों के नीचे सूजन के कारण – Eye Bags Causes

आंख में संक्रमण –आंख में संक्रमण के कारण भी आंखों के नीचे सूजन आ जाती है। संक्रमण, एक आंख से दूसरी में भी फैल सकता है।

आंखों के आसपास तरल पदार्थ जमा होना – जब आंखों के आसपास तरल पदार्थ जमा होता है, तो उसके कारण भी आई बैग्‍स की समस्‍या हो सकती है।

नमक का अधिक सेवन – नमक का अधिक सेवन करने पर भी आई बैग्‍स या आंखों के नीचे सूजन आ सकती है।

प्रदूषण या धूल – प्रदूषण या आंखों में धूल चली जाने पर भी एलर्जी के कारण आंख के नीचे सूजन हो सकती है।

नींद पूरी नहीं होना –अगर आपकी नींद पूरी नहीं होती है, तो भी आंख के नीचे सूजन आ सकती है।

अधिक रोना – कई बार अधिक रोने से भी आंखों के नीचे सूजन आ जाती है।

शरीर में पानी की कमी –ऐसा देखने में आता है कि शरीर में पानी की कमी से भी आंखों के नीचवे सूजन आ सकती है।

धूम्रपान का सेवन –धूम्रपान करने से भी आंखों के नीचे सूजन आ सकती है।

बढ़ती उम्र – बढ़ती उम्र के साथ आंखों के ऊतक कमजोर होते हैं और फैट न‍िचली पलकों पर चला जाता है, ज‍िससे भी आंखों के नीचे सूजन नजर आती है।

कैसे पहचाने की आँख में सूजन हो रही हैं?

आंखों में सूजन कई विभिन्न कारणों से हो सकती है, जैसे कि अलर्जी, संक्रमण, या आंखों की चोट आदि। यदि आपकी आंखों में सूजन हो रही है, तो निम्नलिखित कुछ लक्षण हो सकते हैं:

  • आंखों के आसपास लाली या सूजन।
  • आंखों से पानी या गिड़ निकलना।
  • आंखों में खुजली या जलन।
  • अस्पष्टता का कम दिखाई पड़ना।
  • आंख में धुंधलापन या ब्लरिंग।

आंख में सूजन होना क्या कोई गंभीर समस्या का संकेत हैं?

दरअसल, ऐसा आंखों के नीचे सूजन के कारणों की स्थिति पर निर्भर करता है। अगर सूजन सामान्य है, तो यह एक दो दिन में ठीक हो जाता है। इनमें हम नींद पूरी नहीं होना जैसे कारण शामिल करते हैं। लेकिन अगर सूजन दो से ​अधिक दिनों तक रहती है तो यह गंभीर हो सकता है। ऐसे में समय पर चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।

यहां हम कुछ ऐसे कारणों को जानेंगे, जिसकी वजह से आंखों की सूजन गंभीर हो सकती है।

  • संक्रमण: अगर आंखों की सूजन का प्रमुख कारण संक्रमण है तो यह गंभीर हो सकता है।
  • धूल : धूल, या अन्य पदार्थों के आंख में प्रवेश करने से भी सूजन आ सकती है, जोकि गंभीर हो सकता है।
  • चोट लगना: अगर आपकी आंखों में चोट लगी है, तो इससे भी आई सूजन गंभीर हो सकती है।
  • आंख की एलर्जी: कभी-कभी आंखों को किसी विशेष पदार्थ के प्रति अतिरिक्त संवेदनशीलता हो सकती है, जिससे आंखों में सूजन और खुजली हो सकती है। जो भी गंभीर हो सकती है।
  • ग्लौकोमा: यह आंख के रक्तचाप का एक संकेत हो सकता है, जिससे आंख में सूजन और दर्द हो सकता है। इसकी वजह से आई सूजन भी गंभीर हो सकती है।
  • अन्य समस्याएं: आंख की सूजन कई अन्य गंभीर समस्याओं का भी संकेत हो सकती हैं, जैसे आंख का कैंसर या आंख की रोगों में समस्याएं।

आंख में सूजन होने पर कब डॉक्टर को दिखाना चाहिए?

आंख में सूजन होने पर निम्नलिखित स्थितियों में डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए:

  • अगर सूजन तेजी से बढ़ रही है: यदि आपकी आंख की सूजन तेजी से बढ़ रही है, तो आपको तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए।
  • जब सूजन के साथ दर्द हो: यदि आपकी आंख में सूजन के साथ दर्द या असहनीय है, तो डॉक्टर से संपर्क करें।
  • जब सूजन के साथ दिखना कम हो: यदि आपकी आंख में सूजन के साथ दिखने में कोई भी बदलाव हो, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें।
  • यदि आंख के आसपास चिकनाहट या हीट लगे : यदि आपकी आंख के आसपास चिकनाहट या गर्मी महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
  • अगर आंख से पानी आए: यदि आपकी आंख से पानी आए, तो डॉक्टर से सम्पर्क अवश्य करें।
  • अगर बुखार या चक्कर आए: यदि आंख के नीचे सूजन के साथ बुखार या चक्कर आए, तो डॉक्टर को अवश्य दिखाए।

क्या आंख में सूजन से बचने का कोई आयुर्वेदिक इलाज हैं?

अब हम आंख के सूजन को ठीक करने के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानेंगे।

टी बैग का इस्तेमाल : आंख की सूजन को कम करने के लिए आप एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से युक्त टी बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप टी बैग को भिगोकर आधे घंटे के लिए फ्रिज में रख दें फिर आंख पर 5 से 10 मिनट के लिए रखें, इससे सूजन में आराम मिलेगा।

बेकिंग सोडा : बेकिंग सोडा भी सूजन को कम करने में सहायक होता है। इसके लिए 1 चम्मच सोडा को आधे कप पानी में मिलाकर रूई की मदद से आंखों पर रखें, यह आपको राहत देगा।

खीरा : खीरा सबसे असरदार तरीका है आंखों की स्वैलिंग ठीक करने के लिए। खीरा के दो टुकड़ों को आंखों पर रखकर कुछ देर लेट जाएं, इससे आपको काफी हद तक राहत महसूस होगी।

एलोवेरा : एलोवेरा भी आंखों की सूजन को कम करने में बहुत सहायक होता है। इससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और आंखों की सूजन से राहत मिलती है।

आलू : आलू का इस्तेमाल भी आंखों की सूजन को कम करने में किया जाता है। इसके लिए आलू के स्लाइस को सूती कपड़े में बांधकर आखों पर रखना चाहिए।

आंखों की सूजन से बचाय के उपाय

  • आंखों को साफ रखें
  • धूप का चश्मा पहनें
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं
  • पर्याप्त नींद निकालें
  • नमक का कम सेवन आदि।

इस आर्टिकल में आपने आंखों के नीचे सूजन के कारणों, लक्षण और आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जाना। अगर आप इस समस्या से ग्रसित हैं तो डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें।

नकसीर या नाक से खून बहने की समस्या क्यों होती है? जानें इसके आयुर्वेदिक इलाज के बारे में

कभी न कभी आप नाक से खून बहने की समस्या से अवश्य गुजरे होंगे। यूं तो यह एक सामान्य समस्या है, लेकिन अगर बार बार नाक से खून आए तो गंभीर भी हो सकती है। ऐसे में आज हम इस आर्टिकल में नकसीर की समस्या, कारण और इसकी रोकथाम के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानेंगे।

नकसीर की समस्या क्या होती है?

नकसीर का अर्थ होता है नाक से खून का बहना। यह एक सामान्य चिकित्सा समस्या है जो कई कारणों से हो सकती है, जैसे कि नाक की चोट, नाक के अंदरी इंजेक्शन, नाक के पास की किसी नस का फटना, या नाक की शारीरिक संरचना में कोई गड़बड़ी होना।

नकसीर को अंग्रेज़ी में ‘Epistaxis’ कहा जाता है, और यह नाक से रक्तस्राव की स्थिति है। यह एक सामान्य रोग है जो किसी भी उम्र के लोगों में हो सकता है। सामान्य रूप से, नकसीर आमतौर पर स्वयं ही समाप्त हो जाती है, लेकिन कभी-कभी यह गंभीर हो सकती है और चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

हालांकि, लंबे समय तक नकसीर का सामना करने वाले लोगों को चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि यह किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत भी हो सकता है।

नाक से खून बहने के कारण क्या हैं?

नाक से खून आना गंभीर और सामान्य, दोनों प्रकार की स्थिति है। नाक से खून आना कितना गंभीर है यह व्यक्ति की अवस्था पर निर्भर करता है। नाक में कई रक्त वाहिकाएं मौजूद होती हैं, जो नाक के आगे और पीछे की सतह के पास स्थित होती हैं और ये काफी नाजुक भी होती हैं, यही कारण है कि कई बार आसानी से इससे खून बहने लगता है। गर्मी के ​दिनों में ऐसा अधिक देखने को मिलता है। 3 वर्ष से 10 वर्ष तक की आयु के बच्चों में नकसीर की समस्या बहुत आम है।

अगर हम बात करें कि नाक से खून क्यों आता है। तो इसका आसान जवाब यह है कि नाक से खून बहने की समस्या नाक की रक्त वाहिकाओं में रक्तस्राव की वजह से होती है। इसका सबसे मुख्य कारण नाक में उपस्थित झिल्ली का सूख जाना या नाक में चोट लगना है।

आमतौर पर नकसीर की समस्या स्वत: ही ठीक हो जाती है। लेकिन यह समस्या अगर बार-बार हो रही है तो इसका कारण खून की कमी यानी एनीमिया भी हो सकता है। ऐसे में चिकित्सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

नकसीर की समस्या का अधिक खतरा किसे है?

बार-बार उंगली डालकर नाक साफ करना, संक्रमण, हाइपरटेंशन यानी तनाव, बीपी बढ़ने या खून पतला करने वाली दवाओं का सेवन करने वाले रोगियों को नकसीर की समस्या अधिक रहती है।
इसके अलावा एनीमिया, आईटीपी में प्लेटलेट्स घटने और ब्लड कैंसर के रोगियों में भी ये समस्या देखने को मिलती है, लेकिन ऐसे कुछ ही मामलों में होता है।

नाक से खून क्यों बहता है?

आम तौर पर नाक से खून बहने के दो कारण होते हैं। नाक को किसी कठोर चीज से खुजलाना या किसी नुकीली चीज से नाक को साफ करना और दूसरा गर्मी की वजह से भी यह समस्या देखने को मिलती है। गर्मी में नाक से खून आना बहुत सामान्य घटना है। ऐसा हम सब कभी न कभी अनुभव कर चुके हैं कि गर्मी की वज​ह से नाक में खून आया हो। साथ ही शुष्क हवा की वजह से जब नाक की झिल्ली सूख जाती है, तब भी नाक से खून आता है। यह गर्मी की वजह से खून आने की समस्या का ही दूसरा रूप है।

नाक से खून बहने के अन्य कारण

  • शराब का अधिक सेवन करना
  • नाक में ट्यूमर
  • विटामिंस की कमी
  • हेमोफिलिया
  • रक्त पतला करने वाली दवाओं का सेवन
  • दवाओं का दुष्प्रभाव
  • कोकीन का सेवन
  • बार बार नाक का बहना
  • नाक में गंभीर प्रकार की चोट
  • नाक में दवा का स्प्रे आदि।

नकसीर से बचने के कुछ घरेलु उपाय:

सिर में ठंडा पानी डाले – नाक से खून बहने के दौरान सिर को झूकाकर ठंडे पानी को सिर पर धार बनाकर डालेंगे तो नाक से खून बहना बंद हो सकता है।

शरीर में पानी की पूर्ति- शरीर में पानी की कमी से भी नाक में रक्तस्राव की समस्या हो सकती है। ऐसे में इस समस्या से छूटकारा पाने के लिए गर्मी के मौसम में अधिक से अधिक पानी पीना और तरल पदार्थों का सेवन करना फायदेमंद होता है।

बर्फ की सिकाई – नाक से खून बहने पर बर्फ के टुकड़े को कपड़े से लपेटकर, इसे नाक पर लगाकर 4 से 5 मिनट तक सिकाई करें, इससे रक्तस्राव रुक जाता है।

विटामिन ई- एक विटामिन ई का कैप्‍सूल लेकर उसका तेल एक कटोरी में निकाल लें, बाद में इस तेल को नथुनों पर लगाकर रातभर के लिए छोड़ दें। इससे भी नाक से रक्तस्त्राव की समस्या से आराम मिलता है।

भाप – भाप लेने से भी नाक से रक्तस्त्राव से आराम मिलता है। भाप लेने से नाक गुहा में नमी बनती है और सूखापन हट जाता है, जिससे रक्त बहना बंद हो जाता है।

यह कुछ उपाय अपनाकर आप नाक से खून बहने की समस्या से निजात एवं आराम पा सकते हैं। लेकिन अगर यह समस्या बार बार हो रही है, तो ऐसी ​स्थिति में चिकित्सक से सम्पर्क अवश्य करना चाहिए।

नकसीर की समस्या का आयुर्वेदिक उपचार

पीपल के पत्ते

आयुर्वेद के अनुसार, पीपल के पत्ते घाव को जल्दी भरने, सूजन कम करने और त्वचा को हील करने में मददगार हैं। नाक से खून आने की समस्या में पीपल के पत्ते को पीसकर, उसके रस की 5-7 बूंदें नाक में डालने से राहत मिलती है।

घी का इस्तेमाल

नकसीर से राहत पाने के लिए घी भी उपयोगी है। घी में मौजूद गुण नाक की ड्राईनेस को कम करते हैं। इससे नाक से खून निकलने की परेशानी से छुटकारा मिल सकता है।

शीशम

आयुर्वेद में शीशम के पत्तों, जड़ और छाल का विशेष महत्व है। नकसीर की समस्या में शीशम के पत्तों के रस की कुछ बूंदों को नाक में डालने से खून बहना बंद हो जाता है।

बेल

नकसीर की समस्या से निजात पाने के लिए बेल के पत्तों को पानी में उबालकर, इसमें मिश्री मिलाकर पिएं। इसके नियमित सेवन से लाभ होगा।

Pavtan Pavtan
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