क्या होता है रीढ़ की हड्डी का टीबी? ये क्यों और कैसे होता है? आइए जानिए

reed ki haddi ka tb

ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी जिसे हिंदी में तपेदिक कहा जाता है। टीबी एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है। इस बैक्टीरिया को माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है। यह अक्सर फेफड़ों को प्रभावित करता है। हम यह जानते हैं कि फेफड़ों का टीबी अक्सर संक्रमित व्यक्ति के द्वारा खांसने, छींकने, थूकने से फैलता है। यह संक्रमित कण जब किसी स्वस्थ व्यक्ति के अंदर सांस लेने पर शरीर में जाते हैं तब वह भी संक्रमित हो जाता है। फेफड़ों के टीबी की तरह ही रीढ़ की हड्डी का टीबी होता है।

जिन लोगों को स्पाइन टीबी का इलाज नहीं मिलता है वे अधिकतर इसके प्रभाव से स्थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं। लोग अक्सर ऐसी स्थिति में पहुंच जाते हैं जब उनकी बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ चुकी होती है। लोग कमर दर्द को टालते रहते हैं इसलिए दो-तीन हफ्ते बाद भी अगर कमर दर्द में आराम नहीं मिले तो तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचना चाहिए। इसका पता एक्स-रे से नहीं, बल्कि एमआरआई से लगाया जा सकता है। अगर रीढ़ की हड्डी के बीच में दर्द हो तो इसमें देरी नहीं करनी चाहिए। इस बीमारी का इलाज कई संस्थाएं आयुर्वेदिक तरीके से इसका इलाज कर रही हैं और लोग उनकी दवाओं से ठीक भी हो रहे हैं। ऐसी ही एक संस्था है नवग्रह आश्रम, भीलवाड़ा जिले के रायला गांव के पास मोती बोर का खेड़ा स्थित नवग्रह आश्रम कई बीमारियों के इलाज के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

रीढ़ की हड्डी का टीबी क्या है?

जब माइकोबैक्टीरियम नामक रोगाणु रीढ़ की हड्डी के ऊतकों में प्रवेश करता है और वहां संक्रमण का कारण बनता है, तो इसे स्पाइनल ट्यूबरकुलोसिस कहा जाता है।गौरतलब है कि टीबी के कीटाणु फेफड़ों से खून तक पहुंचते हैं और यहीं से रीढ़ की हड्डी तक फैलते हैं। बालों और नाखूनों को छोड़कर किसी भी हिस्से में टीबी हो सकती है। जो लोग सही समय पर इलाज नहीं कराते हैं या इलाज को बीच में ही छोड़ देते हैं, उनकी रीढ़ विकृत हो जाती है, जिससे स्थायी विकलांगता हो जाती है। हर उम्र और वर्ग के लोग रीढ़ की टीबी के शिकार हो सकते हैं।
रीढ़ की हड्डी में होने वाली टीबी इंटरवर्टेब्रल डिस्क से शुरू होती है, फिर रीढ़ की हड्डी तक फैलती है। समय पर इलाज नहीं किया जाए तो लकवा होने की संभावना रहती है। इसके लक्षण भी साधारण होते हैं, जिससे लोग अक्सर इसे नज़रअंदाज कर देते हैं। रीढ़ की हड्डी में टीबी के शुरुआती लक्षण पीठ में दर्द, बुखार, वजन घटना, कमजोरी या उल्टी आदि हैं। लोग इन समस्याओं को अन्य बीमारियों से जोड़ते हैं।

कैसे पहचानें रीढ़ की हड्डी के टीबी को?

जब किसी व्यक्ति को स्पाइन टीबी शुरू होता है तो उसे सूजन के साथ दर्द शुरू होता है। दर्द के साथ में बुखार, ठंड लगना, रात के समय बुखार आता है, भूख मर जाती है, शीत फोड़ा (cold abscess) बन जाते हैं। इसमें पस तो होता है लेकिन उतना लाल नहीं होता जितना कोई आम पस होता है। जब यह पस किसी हड्डी में होता है तो वहां पर बहुत दर्द होता है।

पीठ में अकड़न, रीढ़ के प्रभावित हिस्से में असहनीय दर्द खासकर रात के समय, प्रभावित रीढ़ की हड्डी में झुनझुनी, पैरों और बाहों में अत्यधिक कमजोरी और सुन्नता, हाथों और पैरों की मांसपेशियों में मरोड़, मल मूत्र त्याग करना काम करने में कठिनाई, रीढ़ की सूजन जो दर्दनाक हो सकती है या नहीं भी हो सकती है, सांस लेने में कठिनाई, उपचार छोड़ने के कारण मवाद की थैली का टूटना।
ये सभी लक्षण रीढ़ की हड्डी के टीबी के लक्षण हैं।

रीढ़ की हड्डी के टीबी से बचाव कैसे करें?

आमतौर पर रीढ़ की हड्डी का टीबी पता नहीं चल पाता है। पिछले कुछ दशकों में हड्डी क्षय रोग के बहुत कम मामले हुए हैं क्योंकि उपचार की व्यापकता बहुत बढ़ गई है। लेकिन फिर भी निम्न बचावों को अपनाया जा सकता है-

→गंदगी से बचें।
→हाथ धोकर खाना खाएं।
→साफ बर्तन में खाना खाएं।
→साफ पानी पीएं।
→हाइजीन का पूरा ध्यान रखें।
→भीड़भाड़ से बचें।
→पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन लें।
→शारीरिक एक्सरसाइज करें।

रीढ़ की हड्डी के टीबी को नजरअंदाज न करें। क्योंकि ट्यूबरक्लोसिस का जब पस बनता है तो यह नर्व्स पर दबाव डाल सकता है जो लकवा मार सकता है। इसलिए इसके लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है ताकि मरीज को समय पर इलाज मिल सके।
इसके अतिरिक्त रीढ़ की हड्डी के टीबी के सम्पूर्ण इलाज और जानकारी लेने के लिए पाठक श्री नवग्रह आश्रम, मोती बोर का खेड़ा, रायला, जिला भीलवाड़ा सम्पर्क कर सकते हैं। श्री नवग्रह आश्रम अब तक विभिन्न बीमारियों के 55 हज़ार से अधिक रोगियों को आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति ठीक कर चुका है।

Pavtan Pavtan
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