Category: Ayurvedic Treatment

क्या आप भी सफेद दाग से है परेशान? अपनाएं ये आयुर्वेदिक उपाय और पाए इससे छुटकारा

अक्सर हमें चेहरे से जुड़ी कई तरह की समस्याएं होती हैं, जिनमें सबसे आम पिम्पल्स, दाग-धब्बे यार फिर ड्राइनेस। ये समस्याएं काफी आम होती हैं लेकिन इन समस्याओं के अलावा काफी लोगों के चेहरे पर सफेद दाग और पैच हो जाते हैं, जिन्हें सहुआ भी कहा जाता है, जोकि लम्बे समय तक या समय पर उपचार नहीं कराया जाए तो आजीवन रह सकते हैं। दरअसल, ये हमारी त्वचा पर एक तरह के फंगल इन्फेक्शन होता है, जो की सामान्य परेशानियों में से एक है, लेकिन इस पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।

शरीर पर सफेद दाग के कारण क्या है?

शरीर पर सफेद दाग होने को अंग्रेजी में विटिलिगो कहा जाता है। हम सभी ने अपनी जिंदगी में एक न एक बार विटिलिगो से पीड़ित व्यक्ति को अवश्य देखा होगा। ऐसा देखा जाता है कि उनके शरीर के लगभग सभी अंगों पर सफेद धब्बे होते हैं, जो ज्यादातर पैरों, चेहरे, और हाथों पर दिखते हैं।

दरअसल, विटिलिगो यानी सफेद दाग होना त्वचा से संबंधित बीमारियों में से एक बीमारी है, जो खून से संबंधित एलर्जी, गलत खाना-पीना और स्किन इन्फेक्शन के कारण होती है।

सफेद दाग क्यों होते हैं? सफेद दाग के कारण क्या है?

शरीर पर सफेद दाग के कई कारण हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं।

लेकोडर्मा: इस बीमारी से पीड़ित होने पर त्वचा पर सफेद दाग बनते हैं। इसमें त्वचा के कुछ हिस्से में मेलानोसाइट्स यानी त्वचा के रंग को नियंत्रित करने वाले कोशिकाओं की कमी होती है, जिसके कारण सफेद दाग बनते हैं। यह अधिकांशतः गर्मी या सूर्य के प्रभाव से होता है।

विटिलिगो: यह भी एक और त्वचा रोग है जिसमें भी मेलनोसाइट्स नामक कोशिकाओं की कमी होती है, और त्वचा पर सफेद दाग बनते हैं।

स्कैबिज: यह एक प्रकार का कीटाणु संक्रमण है, जिसमें त्वचा पर छोटे छोटे चकत्ते वाले दाग बनते हैं।

फंगल इन्फेक्शन: त्वचा पर सफेद दाग बनने का एक कारण फंगल इन्फेक्शन भी हो सकता है।

लेकोप्लेकिया: इस रोग में भी शरीर के कुछ हिस्सों की मेलनोसाइट्स की संख्या कम होती है, जिससे सफेद दाग बनते हैं।

वंशानुगत: वंशानुगत कारणों से भी त्वचा पर सफेद दाग बनते हैं।

अन्य कारण: त्वचा का अधिक धूप, तनाव या औद्योगिक केमिकल्स के संपर्क में आना।

शरीर पर सफेद दाग के लक्षण क्या है?

शरीर पर सफेद दाग के लक्षण बीमारियों के अनुसार अलग अलग हो सकते हैं। कुछ सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं।

  • खुजली: सफेद दाग के साथ खुजली या खुजली वाली जगह पर बाद में सफेद दाग का बनना।
  • त्वचा पर सफेद दाग: शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर सफेद रंग के छोटे या बड़े दाग दिखना।
  • त्वचा का रंग बदलना: यदि त्वचा के किसी भाग का रंग बदलता है और वह सफेद हो सकता है तो यह सफेद दाग का लक्षण हो सकता है।
  • अन्य त्वचा समस्याएं: उपरोक्त के अलावा सूखापन, फैलाव, या त्वचा की परेशानी हो सकती है, जिसे भी लक्षण के रूप में देखा जा सकता है।

सफेद दाग कितने प्रकार के होते हैं?

सफेद दाग या विटिलिगो का प्रकार, दाग के रंग और उसके आकार पर निर्भर करता है, जिसे इस प्रकार समझ सकते हैं।

यूनिवर्सल विटिलिगो: यह शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। इस प्रकार का सफेद दाग चेहरे से लेकर पैरों तक सभी जगह पर होता है।

सेगमेंटल विटिलिगो: यह शरीर के किसी खास हिस्से में ही होता है। आमतौर पर यह 1 से 2 साल तक फैलता है।

सामान्यीकृत विटिलिगो: यह विटिलिगो सबसे आम प्रकार है, जो शरीर के किसी भी भाग पर हो सकता है और कभी भी बढ़कर रुक भी सकता है।

फोकल विटिलिगो: यह फोकल विटिलिगो आकार में छोटा होता है और शरीर के किसी एक खास भाग को ही प्रभावित करता है।

एग्रोफेशियल विटिलिगो: यह विटिलिगो खासकर चेहरे पर होता है और कभी-कभी हाथों पैरों पर देखने को मिलता है।

शरीर पर सफेद दाग कब तक ठीक होते हैं?

सफेद दाग का ठीक होना उसके कारणों पर निर्भर करता है। रोग का प्रकार, रोग का स्थान, रोग की गंभीरता, और उपचार के आधार पर ही इसके ठीक होने का अनुमान लगाया जा सकता है। साथ ही सफेद दाग को ठीक करने के लिए उपचार के तरीके भी ​अलग अलग सकते हैं और इसमें समय लग सकता है।

वहीं, ऐसा भी देखा जाता है कि सही उपचार के प्रयासों के बावजूद भी सफेद दाग पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते हैं। यह स्थिति जीवनभर रह सकती है या कुछ समय के लिए रुक कर फिर से बढ़ सकती है।

शरीर पर सफेद दाग का आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

आयुर्वेद में सफेद दाग के उपचार के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जो सफेद दाग की बीमारी से छूटकारा पाने में मददगार साबित हो सकते हैं।

नीम: नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी को सफेद दाग पर लगाने से इसमें सुधार हो सकता है। नीम के पत्ते, नीम का तेल या नीम का छाल भी अत्यंत उपयुक्त माने जाते हैं।

तुलसी: तुलसी के पत्ते को पीसकर उनका रस निकालकर, सफेद दाग पर लगाना भी मददगार हो सकता है।

हल्दी: हल्दी में मौजूद कुर्कुमिन के गुणों के कारण, इसका उपयोग सफेद दाग के उपचार में किया जा सकता है।

नींबू का रस: नींबू का रस सफेद दाग के लिए एक प्रमुख और प्रभावी उपचार है। इसे नियमित रूप से सफेद दाग पर लगाने से उसका रंग धीरे-धीरे कम होता है।

अम्ली पदार्थों का उपयोग: अम्लीय पदार्थों का उपयोग सफेद दाग के इलाज में किया जा सकता है। आंवला, टमाटर, या दही का सेवन करना इसमें सहायक हो सकता है।

खीरा का पेस्ट: खीरे को पीसकर उसका पेस्ट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से इसमें सुधार हो सकता है।

गंधक: गंधक को तेल के साथ मिलाकर मिश्रण को सफेद दाग पर लगाने से इसमें लाभ हो सकता है।

आम के पत्ते: आम के पत्तों और त्वचा को सफेद दाग पर लगाने से फायदा हो सकता है।

आमला: आमला के रस का सेवन करने से भी त्वचा के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है, जो सफेद दाग को कम करने में मदद करता है।

पुदीना: पुदीने के पत्ते को पीसकर उसके रस को सफेद दाग पर लगाने से लाभ हो सकता है।

आंतों में सूजन का आयुर्वेदिक इलाज: क्या है इसका कारण और उपचार?

पेट हमारे शरीर का वह अंग है, जो अगर प्रभावित हो जाए तो शरीर थकान और कई बीमारियों से गिर जाता है। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पेट का ख्याल रखना बहुत आवश्यक है लेकिन कई बार हमारी खराब दिनचर्या के चलते पेट पर बूरा प्रभाव पड़ता है और उसमें कोई न कोई बीमारी जन्म ले लेती है।

पेट से जुड़ा ऐसा ही एक विकार है आंतों की सूजन। अगर हमारी आंतों में सूजन आ जाए तो हमें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दरअसल, आंतें भी हमारे शरीर का प्रमुख अंग हैं। हम जो भोजन ग्रहण करते है वह आंतों से ​होकर ही मलद्वार तक पहुंचता है। हमारी आंतें पेट से भोजन और तरल पदार्थ प्राप्त कर उसे पचाने और अवशोषित करने का कार्य करती है।

इस आर्टिकल में हम आंतों में सूजन आने के कारण और उपचार के बारे में जानेंगे। साथ ही हम आपको आंतों में सूजन के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में भी बताएंगे।

आंतों में सूजन के लक्षण क्या है?

आंतों में सूजन के लक्षण निम्नलिखित हैं।

  • खून का मवाद के साथ लगातार दस्त।
  • पेट में दर्द और ऐंठन रहना।
  • रेक्टल का दर्द होना।
  • मल के साथ खून का निकलना।
  • शौच की तीव्र इच्छा होना।
  • शौच करने में असमर्थता।
  • वजन कम होना।
  • थकान रहना।
  • बुखार आना।
  • सिरदर्द।
  • गहरे रंग का मूत्र आना।
  • बीपी लो होना।
  • उल्टी की शिकायत आदि।

आंतों में सूजन के कारण क्या है?

आंतों में सूजन के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें सबसे सामान्य कारण शामिल हैं:

  • गैस या एसिडिटी: अगर आपकी आंतों में गैस या एसिडिटी की समस्या है, तो यह आपकी आंतों में सूजन का कारण बन सकती है।
  • आंतों में इंफेक्शन: आंतों में इंफेक्शन, जैसे कि पेट के किसी हिस्से में बैक्टीरिया या वायरस का प्रवेश, भी सूजन का कारण बन सकता है।
  • गांठियाँ (अल्सर): आंतों में अल्सर या गांठियाँ होने पर भी सूजन हो सकती है।
  • आंतों की आघात: अगर आपकी आंतों में चोट या आघात हुआ है, तो यह भी सूजन का कारण बन सकता है।
  • पाचन संबंधी समस्याएँ: पाचन संबंधी समस्याओं, जैसे कि गैस्ट्राइटिस या क्रोन रोग, भी आंतों में सूजन का कारण बन सकती हैं।

आंतों में सूजन का आयुर्वेदिक इलाज क्या हैं?

आयुर्वेद में आंतों में सूजन का इलाज करने के लिए कई प्राकृतिक उपचार हो सकते हैं। यहाँ कुछ आयुर्वेदिक उपाय दिए जा रहे हैं जो आंतों की सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं:

  • त्रिफला (Triphala): त्रिफला भी पाचन को सुधारने और आंतों की सूजन को कम करने में सहायक हो सकती है।
  • गुड़ूची (Giloy): गुड़ूची आंतों की सूजन को कम करने में मदद कर सकती है। इसे गर्म पानी के साथ सेवन किया जा सकता है।
  • धनिया और जीरा: धनिया और जीरा का उपयोग भी आंतों की सूजन को कम करने में मदद कर सकता है।
  • पुदीना: पुदीना का रस भी आंतों की सूजन को कम करने में लाभदायक हो सकता है।
  • आंति दोषनाशक चूर्ण: आंति दोषनाशक चूर्ण का सेवन भी सूजन को कम करने में मदद कर सकता है।

आंतों में सूजन के दौरान क्या खाना चाहिए?

जब आपको आंतों में सूजन की समस्या होती है, तो आपको उपचार के साथ-साथ सही आहार का भी ध्यान रखना चाहिए। यहां कुछ आहार के बारे में जानकारी दी जा रही है जो आंतों में सूजन के दौरान सेवन किया जा सकता है:

खाना पचाने वाले आहार: पाचन को सुधारने के लिए हल्का और आसानी से पचने वाला आहार लें। इसमें अनाज, दाल, फल, सब्जियाँ, और दूध के उत्पाद शामिल हो सकते हैं।

प्रोटीन और विटामिन युक्त आहार: आंतों की सूजन के दौरान, प्रोटीन और विटामिन युक्त आहार खाना महत्वपूर्ण होता है। इसमें मसूर, मूंग, सोया, दूध, पनीर, दही, हरी सब्जियाँ, और फल शामिल हो सकते हैं।

हरी सब्जियाँ: हरी सब्जियाँ जैसे कि पालक, मेथी, टमाटर, और गोभी आंतों की सूजन को कम करने में मदद कर सकती हैं।

फल: फल और उनके जूस जैसे कि सेब, केला, संतरा, और नारंगी भी पाचन को सुधारने में मदद कर सकते हैं।

अनाज और दलिया: अनाज और दलिया जैसे उच्च फाइबर वाले आहार आपकी पाचन को सुधार सकते हैं और सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं।

आंतों में सूजन से बचाव के उपाय?

आंतों में सूजन से बचाव के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाना फायदेमंद हो सकता है:

स्वस्थ आहार: स्वस्थ और पाचन सही आहार लेना बहुत महत्वपूर्ण है। यहां ताजे फल, सब्जियां, अनाज, दलिया, प्रोटीन, और फाइबर युक्त आहार शामिल होना चाहिए।

हाइड्रेशन: पर्याप्त पानी पीना आंतों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सही हाइड्रेशन आपके पाचन को सुधार सकता है और सूजन से बचाव कर सकता है।

नियमित व्यायाम: नियमित व्यायाम करना आपके पाचन को सुधार सकता है और सूजन से बचाव कर सकता है। योग, प्राणायाम, और ध्यान भी यहां मददगार हो सकते हैं।

स्ट्रेस कम करें: स्ट्रेस आपके पाचन को प्रभावित कर सकता है और आंतों में सूजन को बढ़ा सकता है। स्ट्रेस को कम करने के लिए मेडिटेशन, योग, या अन्य संशोधन तकनीकों का उपयोग करें।

अधिक समय बैठे न रहें: अधिक समय बैठे रहने से आंतों में सूजन का खतरा बढ़ जाता है। नियमित अंतरालों में उठें और थोड़े समय के लिए चलें या बैठें।

समय पर खाएं: विशेष रूप से रात के खाने को समय पर खाएं और सोने से कम समय पहले खाना खाएं।

अल्कोहल और धूम्रपान का प्रतिबंध: अधिक मात्रा में अल्कोहल और धूम्रपान का सेवन आंतों के स्वास्थ्य को बिगाड़ सकता है। इसलिए इनका सेवन कम करें या बिल्कुल छोड़ दें।

यदि आपको आंतों में सूजन की समस्या है, तो उपरोक्त लक्षणों, कारणों एवं सुझावों का पालन करने के साथ डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

क्या आप भी सोरायसिस की समस्या से पीड़ित है? अपनाएं ये आयुर्वेदिक नुस्खे और पाएं इस बीमारी से छुटकारा

क्या आप भी सोरायसिस की समस्या से पीड़ित है? अपनाएं ये आयुर्वेदिक नुस्खे और पाएं इस बीमारी से छुटकारा

त्वचा हमारे शरीर की ऐसी अभिन्न अंग है, जो हमें हवा और स्पर्श को महसूस करने में भी मदद करती है। आयुर्वेद की मानें तो त्वचा रक्त धातु से बनती है एवं त्वचा से जुड़े विकारों को कुष्ठ रोग कहा जाता है। ऐसा ही एक त्वचा से जुड़ा रोग सोयरासिस है, जिसके बारे में जानना जरुरी है। आज के आर्टिकल में हम इसी के बारे में विस्तार से जानेंगे।

सोरायसिस रोग क्या होते हैं?

सोरायसिस त्वचा से जुड़ी एक बीमारी है, जिसमें त्वचा पर लाल रंग के पपड़ीदार चकत्ते बनने लगते हैं। यह रोग ज़्यादातर जवान या बड़े उम्र के लोगों में देखने को मिलता है। लेकिन कभी कभार कम उम्र में भी यह समस्या देखी जा सकती है। सोरायसिस से महिलाएं और पुरुष दोनों समान रूप से प्रभावित होते हैं। यहाँ एक बात और है कि सोरायसिस किसी तरह का संक्रमण नहीं है, और न ही यह कोई संक्रामक है यानी यह छूने या हाथ मिलाने से नहीं फैलता है।

जैसा कि यह त्वचा रोग छूने या हाथ मिलाने से नहीं फैलता, इसके बावजूद पीड़ित को कई तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार यह किसी व्यक्ति के भावनात्मक, मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को भी प्रभावित कर देता है। चिकित्सा विज्ञान अब तक सोरायसिस के असल कारण तक नहीं पहुंच पाया है, लेकिन भी कुछ सामान्य कारण हैं जो सोरायसिस के लक्षणों को प्रभावित कर सकते हैं। अकसर कहा जाता है कि यदि परिवार में किसी को सोरायसिस है, तो अगली पीढ़ी में सोरायसिस रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

सोरायसिस रोग होने के क्या क्या कारण होते हैं?

यूँ तो आमतौर पर सोरायसिस रोग होने के एक बड़ा कारण आनुवंशिक है। लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसे कारण हैं, जिससे यह रोग हो सकता है। आइए, हम इस रोग के कारणों के बारे में जानते हैं।

तनाव

मानसिक तनाव सोरायसिस के प्रमुख कारणों में से सबसे आम है। हम तनाव के कारणों पर नियंत्रित कर सोरायसिस रोग से खुद का बचाव कर सकते हैं।

चोट लगना

सोरायसिस उन जगहों पर भी हो सकता है जहाँ पर हमारी त्वचा को चोट पहुंची है। खरोंच, सनबर्न, कीड़ो के काटने और टीका लगने से हुए घाव पर भी सोरायसिस रोग हो सकता है या बढ़ सकता है।

इन्फेक्शन

त्वचा से जुड़ा किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन सोरायसिस रोग को बढ़ा सकता है। ऐसे में जरुरी है कि किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन होने पर तुरंत अपना उपचार करवाएं।

मौसम

मौसम का भी सोरायसिस से सम्बन्ध है। सर्दी और बारिश के समय का कोई घाव या चोट सोरायसिस को प्रभावित कर सकता है। ठंडा मौसम सोरायसिस को बढ़ा सकता है।

स्मोकिंग

स्मोकिंग या धूम्रपान भी सोरायसिस का एक कारण माना गया है। इसलिए सोरायसिस से बचाव के लिए धूम्रपान छोड़ने की सलाह दी जाती है।

सोरायसिस रोग के लक्षण क्या होते हैं?

सोरायसिस एक ऐसी बीमारी है जो किसी भी जगह की त्वचा पर हो सकती है, लेकिन ये ज़्यादातर कोहनी, घुटने और पीठ पर होती है। सोरायसिस का असर सर की चमड़ी पर और नाखूनों में भी देखने को मिलता है। आइए, अब हम इसके कारणों पर नज़र डालते हैं।

  • त्वचा में लाल के चकत्ते (Rashes) होना।
  • शरीर में सफेद कलर की मोटी परत जमना।
  • चकतों में खुजली और लालपन (Redness) होना।
  • लाल रंग के चकतों का ज्यादातर घुटने और कोहनी के बाहरी भागों में होना।
  • सोरायसिस जहां पर होता है वहां पर खुजली के साथ-साथ दर्द का होना।
  • त्वचा में सुखापान (Dryness) आना और दरारें (Fissures) पड़ना
  • त्वचा का छिल जाना
  • त्वचा की चमड़ी की मोटाई (Thickness) का कम होना
  • त्वचा के ऊपर लाल रंग के पापड़ीदार उभरे हुए चकते बनना
  • जोड़ों का दर्द, सूजन या अकड़न आना
  • नाखूनों में असामान्यताएं, जैसे कि गड्ढेदार, बदरंग, या टेढ़े-मेढ़े नाखून होना।

सोरायसिस रोग किस उम्र के लोगों में होता है?

सोरायसिस यूँ तो अनुवांशिक रोग है, यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है। जिन लोगों के माता पिता को यह बीमारी होती है, उन बच्चों में इसके होने की संभावना अधिक होती है। अगर हम उम्र की बात करे तो सोरायसिस 45 – 79 वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों को होने की संभावना अधिक रहती है।

क्या आयुर्वेद में सोरायसिस रोग का उपचार किया जा सकता है? (Ayurvedic treatment for Psoriasis)

सोरायसिस के इलाज के लिए सबसे कारगर आयुर्वेदिक विधि पंचकर्म है। इसमें शरीर, त्वचा कोशिकाओं और दिमाग को शुद्ध करने के लिए शाकाहारी भोजन की सलाह दी जाती है। पंचकर्म चिकित्सा सोरायसिस के इलाज के लिए सरल आहार परिवर्तन का महत्व बताती है।

सोयरासिस के लिए आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियां

सोयरासिस के इलाज के लिए हम इन जड़ी बूटियों को अपना सकते हैं।

गुडुची – निदान परिवर्जन में इसका उपयोग किया जाता है, जिससे यह रोग बढ़ता नहीं है और दोबारा नहीं होता है।
सरिवा – यह शरीर के तंत्रिका और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है।
हल्दी – यह त्वचा विकारों को दूर करने में मददग़ार है।
मंजिष्ठा – यह रक्तशोधन यानी खून की सफाई का कार्य करती है।

सोयरासिस में क्या नहीं खाना चाहिए ?

  • मैदा, चना, मटर, उड़द की दाल इत्यादि से परहेज करें खाद्य पदार्थों का परहेज करना चाहिए।
  • अधिक खट्टे फलों का ज्यादा सेवन करने से बचें
  • सब्जियों में सरसों, टमाटर, बैंगन, कंद-मूल को कम करें
  • दही, दूध, कोल्‍ड ड्रिंक का सीमित सेवन
  • तेल युक्त और मसालेदार भोजन नहीं करें
  • नॉनवेज का सेवन नहीं करें
  • नमक का कम उपयोग करें
  • चीनी का सिमित मात्रा में सेवन करें आदि।

उपरोक्त आर्टिकल में आपने सोयरासिस के बारे में विस्तार से जाना। यह आर्टिकल इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न आर्टिकल्स के आधार पर लिखा गया और जानकारी मात्र के लिए है। अगर आप उपरोक्त में से कोई लक्षण महसूस करते हैं तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएं।

क्या आयुर्वेद में फैटी लिवर ग्रेड 2 का पूर्णतः उपचार सम्भव है?

हम सभी को कभी न कभी पेट से जुड़ी समस्याएं तो अवश्य हुई होगी, इनमें कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जो सामान्य होती है और कुछ पर अगर ध्यान नहीं दिया जाए तो वह आगे चलकर गंभीर रूप भी ले सकती है।

जब भी पेट से जुड़ी समस्याओं पर बात करते हैं तब लिवर और ज़हरीले पदार्थों को पित्त के रूप में छानकर शरीर से अलग करता है। लीवर चयापचयों को detoxify करना, प्रोटीन को संश्लेषित करना, और पाचन के लिए आवश्यक जैव रासायनिक बनाने का कार्य भी करता है।

ऐसे हमें आप यह तो जान गए होंगे कि लिवर शरीर का एक प्रमुख अंग होने के साथ मानव शरीर की शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त (Bile) का निर्माण करती है। लेकिन कई बार स्वास्थ्य कारणों एवं खराब लाइफस्टाइल के कारण लिवर प्रभावित हो जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसी में एक अवस्था है फैटी लिवर।

फैटी लिवर रोग क्या है?

फैटी लिवर, जिसे हेपेटिक स्टीटोसिस भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें लिवर बहुत अधिक वसा जमा हो जाती है। फैटी लिवर सीधे तौर पर कोई लक्षण पैदा नहीं कर सकता है, लेकिन यह महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं का कारण जरूर बन सकता है। ऐसी स्थिति को रोकने और सुधारने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव करना महत्वपूर्ण है। फैटी लिवर विभिन्न कारकों से हो सकता है, जिनमें शराब का उपयोग, मोटापा और चयापचय संबंधी विकार शामिल हैं।

फैटी लिवर का अवलोकन

फैटी लिवर एक ऐसी स्थिति है जहां लिवर में वसा लीवर के वजन के 5% से 10% के स्तर तक जमा हो जाती है। वसा निर्माण के कारणों के आधार पर, वसायुक्त रोग की इस स्थिति को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

गैर-एल्कोहलिक फैटी लिवर रोग: यह शराब के सेवन से जुड़ा नहीं है।

एल्कोहलिक फैटी लिवर रोग: एल्कोहलिक फैटी लिवर रोग, अत्यधिक मात्रा में शराब के उपयोग से जुड़ा हुआ है।

फैटी लिवर को वसा की उपस्थिति के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

  • ग्रेड 1 इस श्रेणी अन्तर्गत लीवर में 5% से 33% वसा लीवर में जमा हो जाती है।
  • ग्रेड 2 इस श्रेणी अन्तर्गत लिवर में 34-66% वसा लिवर में जमा हो जाती है।
  • ग्रेड 3 यह गंभीर श्रेणी है, जिसमें 66% से अधिक वसा लिवर में जमा हो जाती है।

फैटी लिवर ग्रेड 2 के लक्षण क्या है?

फैटी लिवर, लिवर के फैटी होने के प्रभाव को प्रदर्शित करती एक ग्रेड है। ग्रेड 2 फैटी लिवर का अर्थ है लिवर में 34-66% वसा जमा हो गई है। हेल्थ आर्टिकल्स के अनुसार जब तक बीमारी सिरोसिस चरण तक नहीं पहुंच जाती, तब तक फैटी लिवर ग्रेड 2 में ज्यादातर कोई लक्षण नहीं दिखता है। कुछ लक्षण देखे जा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं।

  • भूख में कमी
  • वजन घटना
  • उल्टी आना
  • पैर और पेट सूजे हुए दिखाई देना
  • थकावट और कमजोरी महसूस करना
  • त्वचा का रंग बदलकर पीला हो जाना
  • आंखों का सफेद भाग पीला पड़ना
  • पेट के ऊपरी दाहिनी ओर दर्द होना।

फैटी लिवर ग्रेड 2 का कारण क्या है?

  • स्वास्थ्य स्थितियां या बीमारियाँ
  • आनुवंशिक कारक
  • असंतुलित आहार
  • अधिक वजन या मोटापा
  • टाइप 2 मधुमेह
  • रक्त में वसा का असामान्य स्तर
  • स्टेरॉयड का सेवन करना
  • नींद संबंधी विकार
  • हेपेटाइटिस सी संक्रमण आदि।

फैटी लिवर ग्रेड 2 का इलाज क्या है?

फैटी लिवर ग्रेड 2 के लक्षण दिखने पर आपको चिकित्सकीय सलाह लेनी होती है। आपकी चिकित्सा स्थिति के आधार पर डॉक्टर लिवर फंक्शन टेस्ट कराने की सलाह देगा। जिसमें आपके लिवर के स्वास्थ्य की जांच की जाएगी।

इसके अलावा डॉक्टर आपको अन्य टेस्ट के लिए भी कह सकता है, जिसमें अल्ट्रासाउंड, एमआरआई स्कैन आदि शामिल हैं। अगर हम दवाओं की बात करें तो फैटी लिवर रोग के इलाज के लिए कोई खास दवा नहीं है, हालांकि डॉक्टर्स द्वारा लिखी कुछ दवाओं के माध्यम से इसकी स्थिति में सुधार जरूर किया जा सकता है। फैटी लिवर के इलाज के लिए जीवनशैली में बदलाव की सलाह जरूर दी जाती है।

यदि आपको चयापचय संबंधी फैटी लिवर रोग है, तो यह उपाय किए जा सकते हैं।

  • स्वस्थ एवं संतुलित आहार लें
  • चीनी का उपयोग कम करें
  • वजन नियंत्रित करें
  • नियमित रूप से व्यायाम करें
  • अपने रक्त शर्करा को नियंत्रित करें
  • उच्च कोलेस्ट्रॉल है तो उसका करवाएं
  • लिवर का प्रभावित करने वाली दवाओं से बचें
  • शराब एवं धूम्रपान का सेवन नहीं करें आदि।

लिवर ग्रेड 2 का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

अब हम फैटी लीवर ग्रेड 2 के उपचार के लिए आयुर्वेदिक उपायों पर बात करेंगे। आयुर्वेद में ऐसी कई जड़ी बुटियां और औषधियां मौजूद है, जो लिवर ग्रेड 2 के ​इलाज में मददगार साबित हो सकती है।

फैटी लिवर का आयुर्वेदिक इलाज है आंवला

विशेषज्ञों के अनुसार आंवला लिवर के लिए सबसे अच्छा है। आंवला लिवर की कार्यप्रणाली में सुधार करता है। आंवला लिवर में जमा गंदा फैट हटाता है। फैटी लिवर की समस्या से ग्रसित लोगों को रोजाना आंवला रस पीना चाहिए।

सुबह गुनगुना पानी पिएं

लिवर को हेल्दी एंड स्ट्रोंग बनाने के लिए रोजाना जल्दी सोना और जल्दी उठना चाहिए। साथ ही सुबह उठकर सबसे पहले 1-2 गिलास गुनगुना पानी अवश्य पिएं।

एलोवेरा जूस

एलोवरा जूस भी फैटी लिवर को बेहतर करने में बहुत मददगार है। एलोवेरा जूस का सेवन रक्त को शुद्ध करने और लीवर के कार्य को बढ़ावा देने में मदद करता है।

गन्ने जूस का सेवन

अगर आपको फैटी लिवर की समस्या है तो गन्ने के रस का सेवन करें। गन्ने के रस का सेवन भी फैटी लिवर में गंदगी को बाहर निकालने में मददगार है।

त्रिफला चूर्ण

त्रिफला चूर्ण बहुत ही फायदेमंद औषधी है। आयुर्वेदिक तरीकों से तैयार किया गया ये चूर्ण डाइजेशन को सही रखने में मददगार है। इसके साथ ही शरीर के टॉक्सिंस को बाहर निकालने और लीवर को खराब होने से भी बचाता है। त्रिफला में एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो लिवर के स्वास्थ्य के लाभकारी है।

अंडकोष कैंसर क्या होता है? जानें इसके लक्षण, कारण एवं आयुर्वेदिक उपचार

टेस्टिकुलर कैंसर (Testicular cancer) जिसे वृषण कैंसर या अंडकोष के कैंसर भी कहा जाता है। यह बीमारी पुरुषों को ही होती है, क्योंकि यह कैंसर अंडकोष का कैंसर होता है। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि पुरुष इसके बारे में जागरूक रहें।

यह कैंसर की गंभीर बीमारी जरूर है, लेकिन आपको इससे इतना घबराने की जरूरत नहीं है, वक्त पर यदि इसका पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है।

अंडकोष कैंसर क्या होता है?

वृषण या अंडकोष कैंसर, अंडकोष में विकसित होता है, जिसे वृषण भी कहा जाता है, जो पुरुष प्रजनन प्रणाली का एक हिस्सा है। प्रत्येक पुरुष में दो अंडकोष होते हैं जो लिंग के ठीक नीचे अंडकोष की तरह एक थैली जैसी संरचना में मौजूद होते हैं। यह वृषण है जो शुक्राणुओं के उत्पादन और पुरुष सेक्स हार्मोन टेस्टोस्टेरोन को रिलीज करने का काम करता है। इन्हीं अंडकोष के भीतर वृषण कैंसर विकसित होता है। सबसे आम प्रकार के वृषण कैंसर शुक्राणु पैदा करने वाली कोशिकाओं में विकसित होते हैं, जिन्हें जर्म कोशिकाएं कहा जाता है।

अंडकोष कैंसर के लक्षण क्या है?

वृषण या अंडकोष कैंसर का आसानी से निदान संभव है, क्योंकि रोग के शुरुआती चरण में लक्षण दिखाई देते हैं। इस कैंसर के शुरुआती लक्षणों में एक अंडकोष में दर्द रहित गांठ या सूजन का होना शामिल है। वृषण कैंसर के अन्य लक्षण इस प्रकार है, जब वह जांघों में नहीं फैला हो।

  • अंडकोष या पेट के निचले हिस्से में भारीपन महसूस होना
  • अंडकोष में तरल पदार्थ का जमना
  • पीठ और पेट में दर्द महसूस होना
  • अंडकोष के आकार और बनावट में बदलाव

अन्य लक्षण जब वृषण कैंसर अन्य अंगों में फैल चुका हों, इसमें शामिल हैंः

  • कई मामलों में हार्मोनल बदलाव के कारण ब्रेस्ट विकसित होते हैं और दर्द होता है।
  • यदि यह फेफड़ों को प्रभावित करता है तो सांस लेने में भी दिक्कत होती है।
  • यदि कैंसर लिम्फ नोड तक फैल जाता है, तब लोअर बैक में दर्द होने की समस्या होने लगती है।
  • जब कैंसर लीवर में फैलता है, तब पेट में गंभीर दर्द होता है।
  • जब मस्तिष्क में कैंसर फैलता है, तब लगातार और कभी-कभी गंभीर सिर दर्द होता है।
  • हालांकि, कैंसर के उपचार के पूरा होने के बाद पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

टेस्टिकुलर कैंसर के कारण

टेस्टिकुलर कैंसर या अंडकोष कैंसर के कारण अभी भी पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं हो पाए हैं, लेकिन शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे कारकों, जिससे इस कैंसर को विकसित होने में सहायता मिल सकती है, उनकी पहचान की है जोकि इस प्रकार हैं:

उम्र: टेस्टिकुलर कैंसर युवा पुरुषों में अधिकतर पाया जाता है और विशेषतः यह 25 से 35 वर्ष की आयु के बीच वाले पुरूषों को अपनी चपेट में लेता है।

जेनेटिक कारण: परिवार में पुरुष को यह बीमारी यदि पहले हो चुकी है, तो संभव है कि यह कैंसर आगे भी उस परिवार के किसी अन्य पुरुष को हो सकता है।

क्रिप्टोर्चिडिज़्म (Cryptorchidism): क्रिप्टोर्चिडिज़्म का अर्थ है जन्म से पहले दोनों वृषण अंडकोश में नहीं उतरना। जिन पुरुषों में जन्म से पहले दोनों वृषण अंडकोश में नहीं उतरते हैं, ऐसे पुरुषों को भी वृषण कैंसर होने का ख़तरा अधिक होता है।

पूर्व में अनुभव: जिस किसी पुरुष को एक अंडकोष में वृषण कैंसर हो चुका है, उन्हें उनके दूसरे अंडकोष में भी यह कैंसर होने का ख़तरा बहुत अधिक होता है।

अंडकोष कैंसर का इलाज क्या है?

वृषण या अंडकोष कैंसर का उपचार भी अन्य कैंसर प्रकारों की तरह, कैंसर के चरण और उसके प्रकार पर निर्भर करता है। इस कैंसर के उपचार के विकल्पों में सर्जरी, रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी आदि शामिल हैं।

अंडकोष कैंसर के उपचार में सबसे पहले आमतौर पर अंडग्रंथि की जाती है, जिसमें ऑपरेशन की मदद से प्रभावित वृषण को हटाया जाता है और यह कार्सिनोमा-इन-सीटू के मामलों में किया जाता है, जहां कैंसर अंडकोष के बाहर नहीं फैला है।

सर्जरी: वृषण या अंडकोष कैंसर में प्रभावित अंडकोष को हटाने के लिए ऑर्किएक्टॉमी सर्जिकल प्रोसीजर किया जाता है। इसके अन्तर्गत कुछ केसेस में कैंसर को फैलने से रोकने के लिए पेट में लिम्फ नोड्स को रेट्रोपेरिटोनियल लिम्फ नोड विच्छेदन सर्जिकल प्रोसीजर के माध्यम से हटाया जाता है। सर्जरी का उपयोग वृषण या अंडकोष कैंसर में प्राथमिक उपचार के रूप में किया जाता है।

रेडिएशन थेरेपी: इस थेरेपी में, ऊर्जा एक्स-रे का उपयोग कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने और ट्यूमर को सिकोड़ने के लिए किया जाता है। शरीर में बचे हुए कैंसर सेल्स को ख़त्म करने के लिए इस विकल्प का उपयोग सर्जरी के बाद किया जाता है। इसके अलावा रेडिएशन थेरेपी का उपयोग सेमिनोमा जैसे वृषण कैंसर के केसेस में भी किया जाता है।

सेमिनोमा : इस प्रक्रिया में प्रभावित अंडकोष पूरी तरह सर्जरी से हटा दिया जाता है। सर्जरी के बाद अन्य उपचारों का उपयोग किया जा सकता है।

कीमोथेरेपीः यह एक ऐसा विकल्प है, जो सर्जरी के बाद दवा कार्बोप्लैटिन के साथ कीमो की 1 या 2 साइकिल पर काम करता है। कई विशेषज्ञ विकिरण पर कीमो पसंद करते हैं क्योंकि इसे सहन करना आसान होता है।

अंडकोष कैंसर का आयुर्वेदिक उपचार क्या है?

वृषण या अंडकोष कैंसर, अंडकोष में विकसित होता है, जो अंडकोष में स्थित पुरुष प्रजनन ग्रंथियां हैं। अंडकोष कैंसर उन कोशिकाओं में शुरू होता है जो शुक्राणु उत्पन्न करते हैं, जिन्हें जर्म कोशिकाओं के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन यह उन कोशिकाओं में भी शुरू हो सकता है, जो अंडकोष में हार्मोन उत्पन्न करती हैं। यह एक गंभीर स्थिति है जिसका इलाज आयुर्वेदिक तरीकों से भी किया जा सकता है।

अश्वगंधा

यह जड़ी बूटी प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले गुणों के लिए जानी जाती है। इसमें कैंसर रोधी गुण भी हो सकते हैं और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम करने और वृषण कैंसर के लक्षणों का इलाज करने में मदद कर सकते हैं।

सहजन

कहा जाता है कि मोरिंगा ओलीफ़ेरा में कुछ कैंसर-रोधी गुण हो सकते हैं, कैंसर कोशिकाओं पर इसके प्रभावों को पूरी तरह से समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। यह प्रभावित क्षेत्र के आसपास के प्रभाव को कम करके वृषण कैंसर का इलाज और सूजन को कम करने में मदद करता है।

तुलसी

तुलसी एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है और वृषण या अंडकोष कैंसर के कारण शरीर में सूजन और तनाव को कम करने में मदद कर सकता है। इसमें कैंसर रोधी गुण भी होते हैं, और यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।

हाइपर एसिडिटी ने कर दिया जीना मुश्किल? घर बैठे इन आयुर्वेदिक उपायों को अपनाकर पाए राहत

भारतीय भोजन की एक सबसे बड़ी खासियत होती है और वो है तेज मसाला। यहां जितने मसाले डाले जाए उतने कम हैं। ये मसाले खाद्य पदार्थ को बेहद स्वादिष्ट तो बना ही देते हैं लेकिन साथ ही ये आपके शरीर को काफी ज्यादा नुकसान भी पहुंचाते हैं। ज्यादा मसालों का सेवन करने से शरीर में कई तरह की बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं और इन्हीं में से एक है हाइपर एसिडिटी। ये इन दिनों आम बीमारी बन गई है जो हर दूसरे व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेती है। लेकिन कभी-कभी इस बीमारी की वजह से कई गंभीर बीमारियां व्यक्ति को घेर लेती हैं। ऐसे में इसे नजरअंदाज करने की जगह समय रहते इसका इलाज कर लेना चाहिए।

आमतौर पर लोग गैस और एसिडिटी की समस्या होने पर गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट के पास जाते हैं। वहां डॉक्टर्स की फीस से लेकर दवाइयों के खर्चे तक, लंबा बिल बन जाता है। लेकिन आप ये बात नहीं जानते होंगे कि आप बेहद कम खर्च में कुछ आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों के जरिए भी हाइपर एसिडिटी से छुटकारा पा सकते हैं। इनमें से कुछ आम जड़ीबूटी तो आपके घर में ही मौजूद रहती हैं। हम आपको आज इस आर्टिकल के जरिए हाइपर एसिडिटी क्या होती है, हाइपर एसिडिटी क्यों होती है? हाइपर एसिडिटी के लक्षण क्या हैं? हाइपर एसिडिटी से बचाव के तरीके, हाइपर एसिडिटी होने पर क्या खाएं क्या ना खाएं और हाइपर एसिडिटी के आयुर्वेदिक इलाज के बारे में बताएंगे।

हाइपर एसिडिटी क्या होती है?

आम भाषा में हाइपर एसिडिटी को पित्त कहते हैं। पित्त खाना पचाने और साथ ही पाचन तंत्र को मजबूत करने के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन कई बार शरीर में इसका उत्पादन जरुरत से ज्यादा होने लगता है ऐसे में एसिडिटी और एसिड रिफ्लक्स जैसी कई समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।

हाइपर एसिडिटी क्यों होती है?

हाइपरएसिडिटी यानी पित्त कई कारणों से हो सकता है। मसालेदार भोजन, गर्म मसलों का अधिक इस्तेमाल, फास्ट फूड, ज्यादा तेल में तली हुई चीजें, कम पानी पीना, ओवरईटिंग आदि के कारण हाइपर एसिडिटी हो सकती है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल जब इसोफेगस की परत से होकर गुजरता है, तो सीने और पेट में जलन होना शुरू हो जाती है, क्योंकि ये परत हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के लिए नहीं बनी होती है।

हाइपर एसिडिटी के सामान्य लक्षण क्या हैं?

  • छाती में दर्द
  • बदबूदार सांस
  • खांसी
  • निगलने में कठिनाई (डिस्फेगिया)
  • पेट में जलन
  • खट्टी डकार
  • जी मिचलाना
  • उल्टी
  • गले में खराश

किन कारणों से होती ही हाइपर एसिडिटी?

हाइपर एसिडिटी कई कारणों से हो सकती है जिनमें से कुछ आम कारण निम्नलिखित है।

  • खाली पेट रहना
  • खाने के तुरंत बाद लेटना
  • अनियमित भोजन करना
  • भोजन छोड़ना
  • अधिक खाना
  • मसालेदार भोजन
  • नमकीन भोजन
  • अधिक चाय या कॉफी का सेवन
  • फैटी फूड्स
  • कुछ दवाएं
  • रात में देर तक जागना
  • टेंशन लेना
  • पेप्टिक अल्सर
  • व्यायाम की कमी
  • नींद
  • तनाव के कारण
  • शराब और धूम्रपान आदि

हाइपर एसिडिटी से बचने के लिए क्या करें?

  • अधिक मिर्च मसाले वाली चीज़ें खाने से बचें।
  • अधिक गर्म कॉफी या चाय ना पीएं।
  • मासाहार का सेवन ना करें।
  • खाना खाने के बाद थोड़ा बहुत टहले।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें।
  • मौसमी फलों का सेवन करें।
  • नीबू, संतरा, मौसम्मी और पिपरमेंट के सेवन से बचें।
  • पैकेज्ड या फ्रोजन फूड के सेवन से बचें।

Hyperacidity दूर करने के लिए क्या चीजें खाएं?

केला

केले में फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है। ये पेट के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। साथ ही केला खाने को भी अच्छे से पचाने में मदद करता है। इसमें पोटैशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है जो पेट में बलगम (म्यूकस) के उत्पादन को बढ़ा देता है और एसिड को बढ़ने से रोकता है। रोजाना एक पका हुआ केला खाना फायदेमंद है।

ठंडा दूध

जब आपको भयंकर एसिडिटी हो रही हो तो आप ठंडे दूध का सेवन कर सकते हैं। दूध में अधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है जो हड्डियों के लिए सुपरफूड का काम करता है। साथ ही ठंडा दूध एसिडिटी और एसिड रिफ्लक्स से हो रही जलन से राहत दिलाता है।

ठंडी छाछ

एसिडिटी छाछ एक बेहद उपयोगी एंटीडोट है। ये खाना पचाने में मदद करती है। दरअसल, छाछ प्रोबॉयोटिक है और प्रोबॉयोटिक खाने से अच्छे से पचाने में मदद करता है। डॉक्टर भी छाछ पीने की सलाह देते हैं। प्रोबॉयोटिक गैस बनने से भी रोकते हैं। इसलिए हमेशा तला हुआ या मसालेदार भोजन करने के बाद आप छाछ जरूर पिएँ।

नारियल पानी

नारियल पानी पेट में ठंडक रखता है। आप हर एक दिन छोड़कर या रोजाना भी इसका सेवन कर सकते हैं। ये गैस और एसिडिटी बनने से रोकता है। साथ ही पचव क्रिया को भी दुरुस्त रखता है।

हाइपर एसिडिटी का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

आयुर्वेद में हर बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज बताया गया है। भले ही आयुर्वेदिक चिकित्सा को असर करने में समय लगता है लेकिन यह लंबे समय तक प्रभावी रहती है। साथ ही इससे शरीर में कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होते हैं। आयुर्वेदिक इलाज में आपको सिर्फ आपके घर में मौजूद कुछ चीजों का सेवन करना होता है। इससे आप उस बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा भी पा सकते हैं। आइए जानते हैं हाइपर एसिडिटी के आयुर्वेदिक इलाज के बारे में।

अजवाइन

अजाइन आपको हाइपर एसिडिटी से राहत दिलाने में मदद करेगी। ये पेट में बनने वाली एसिड को कंट्रोल करती है। ऐसे में Hyperacidity होने पर आप आधा चम्मच अजवाइन में एक चुटकी नमक मिलाकर इसका गर्म पानी के साथ सेवन कर लें। ऐसा करने से आपको हाइपर एसिडिटी से राहत मिलेगी।

दालचीनी

दालचीनी भी आपको Hyperacidity से राहत दिला सकती है। इसमें कई नेचुरल एंटासिड पाए जाते हैं, जो पेट में बनने वाले एसिड को रोकने में मदद करते हैं। साथ ही दालचीनी के सेवन से पाचन शक्ति भी मजबूत होती है। आप दालचीनी के पाउडर को शहद में मिलाकर इसका सेवन कर सकते हैं।

अंजीर

अंजीर भी Hyperacidity से राहत दिलाने में मदद करती है। इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, कॉपर, जिंक, पोटैशियम और आयरन जैसे और भी कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं। रोजाना अंजीर के सेवन से पेट में गैस, कब्ज और हाइपर एसिडिटी की समस्या से बहुत जल्द राहत मिलती है। आप रात में एक ग्लास पानी भरकर उसमें दो सूखे अंजीर भिगो दें और अगले दिन सुबह उठकर उसका पानी पी लें और अंजीर को अच्छे से चबाककर खा लें।

इसके अलावा कुछ आयुर्वेदिक चूर्ण और औषधियां ऐसी हैं जो परेशानी से आपको रहत दिलवाएगी वो औषधियां इस प्रकार हैं

  1. अविपत्तिकर चूर्ण
  2. सुतशेखर रस
  3. कामदुधा रस
  4. मौक्तिक कामदुधा
  5. अमलपित्तान्तक रस
  6. अग्नितुण्डि वटी
  7. फलत्रिकादी क्वाथ पंचकर्म चिकित्सा
  8. हरड़ का चूर्ण
  9. त्रिफला चूर्ण

आज के समय में यूं तो विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में हाइपर एसिडिटी के कई इलाज मौजूद हैं लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा के रायला ग्राम स्थित ‘श्री नवग्रह आश्रम‘ आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार के लिए जाना जाता है। यहां पर कई प्रकार के रोगों का उपचार आयुर्वेदिक पद्धति से किया जाता है, जिसमें हाइपर एसिडिटी भी एक है।

अगर आप हाइपर एसिडिटी की समस्या से परेशान है तो नवग्रह आश्रम अवश्य जाना चाहिए।

क्या लिवर सिरोसिस का आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों से इलाज संभव है?

दुनियाभर में कई ऐसी बीमारियां फ़ैल चुकी हैं जिसकी आपको और हमें भनक तक नहीं लगती है। इनमें से कुछ बीमारियों के तो कभी नाम भी नहीं सुने होते हैं, लेकिन ये बीमारियां आपके शरीर में फैलती जाती है। खराब दिनचर्या, अस्वस्थ खानपान और तनाव के कारण हमारे शरीर में बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं। खासतौर से इन बीमारियों का प्रभाव लिवर में कई तरह की बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं। इन्हीं में से एक बीमारी है लिवर सिरोसिस, जो एक बेहद ही एक घातक बीमारी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल करीब 7-8 लाख लोग इस बीमारी के चपेट में आते हैं। इस बीमारी के चलते व्यक्ति का लिवर धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। अंत में ऐसी स्थिति आ जाती है कि लिवर ट्रांसप्लांट के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है। ऐसे में जिन लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है, वो मजबूरन लिवर ट्रांसप्लांट नहीं करवा पाते हैं। वैसे तो लिवर सिरोसिस को लाइलाज बीमारी कहा जाता है लेकिन यदि इसका सही इलाज हो जाए तो ये किसी चमत्कार से कम नहीं होता है। सही समय पर सही उपचार अपनाकर इस बीमारी के गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है। हम आपको आज कुछ ऐसे घरेलू आयुर्वेदिक इलाज के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप इस बीमारी को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।

क्या होता है लिवर सिरोसिस?

इस बीमारी में लिवर बुरी तरह से डैमेज हो जाता है। इसे स्थिति को क्रॉनिक लिवर डिजीज कहते हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक, जब क्रॉनिक लिवर डिजीज होती है तो लिवर के टिश्यू काम करना बंद कर देते हैं। बता दें लिवर के टिश्यू संक्रमण से लड़ने, ऊर्जा संचरण, टिश्यू प्रोटीन निर्माण, रक्त के शुद्धिकरण और साथ ही पाचन तंत्र को मजबूत करने में बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि, जिस भी व्यक्ति को लिवर सिरोसिस बीमारी होती है, उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता अन्य मरीजों की तुलना में ज्यादा कमजोर हो जाती है। इस बीमारी में मरीज के लिवर की बहुत सारी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और उनकी जगह फाइबर ले लेता है। साथ ही लिवर का शेप भी बिगड़ने लगता है। इस बात से ही आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि लिवर सिरोसिस कितनी खतरनाक बीमारी है। सिरोसिस की वजह से जब लिवर को नुकसान पहुंचता है, तो उसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता। समय पर इस बीमारी की पहचान कर यदि इलाज शुरू कर दिया जाए तो इससे शरीर को ज्यादा नुकसान नहीं होता है।

लिवर सिरोसिस होने के क्या कारण हैं?

लिवर सिरोसिस बीमारी होती क्या है, ये तो आपने जान लिया है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी ये जानना है कि आखिर ये बीमारी होती क्यों हैं। तो हम आपको बता दें कि लिवर सिरोसिस बीमारी हेपेटाइटिस और ज्यादा शराब के सेवन से हो सकती है। इससे शरीर में इन्फेक्शन हो जाता है और लिवर सेल्स पर निशान पड़ जाते हैं। ऐसे में सिरोसिस ख़राब होने लगता है और काफी सारे सेल्स पर निशान दिखने लगते हैं, जिससे लिवर को अपना काम करने में मुश्किल होने लगती है।

लिवर सिरोसिस के लक्षण क्या हैं?

  • थकावट (या थकान) महसूस होना
  • कमजोरी आना
  • कम या बिलकुल भूख न लगना
  • वजन कम होना
  • लिवर पर सूजन आना
  • हथेलियों का लाल होना
  • त्वचा और आंखों का पीला हो जाना
  • ब्राउन या गहरे पीले रंग की पेशाब होना
  • बाल झड़ना
  • त्वचा और बेली बटन के करीब में रक्त वाहिकाओं में बदलाव
  • पुरुषों में ब्रेस्ट का साइज़ बढ़ने लगना
  • डायरिया
  • मेंटल कन्फूजन बढ़ना
  • पेट में पानी भरना
  • पेट और पैरों में सूजन आना
  • पाइल्स की बीमारी होना

लिवर सिरोसिस का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

आयुर्वेदिक इलाज पद्धति हजारों वर्षों से चली आ रही है। आयुर्वेद में हर बड़ी से बड़ी बीमारी का सफल इलाज बताया गया है। इसी तरह लिवर सिरोसिस जैसी घातक बीमारी का भी इलाज आयुर्वेद के पास मौजूद है। इन दिनों एलोपेथी इलाज के बढ़ने से लोग आयुर्वेदिक इलाज पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। लेकिन आप ये बात नहीं जानते होंगे कि आयुर्वेदिक इलाज द्वारा बीमारी को कम किया जा सकता है। हम आपको घर में मौजूद उन आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में बता रहे हैं, जो लिवर सिरोसिस को ठीक करने में मदद करेंगी। आइए जानते हैं लिवर सिरोसिस के आयुर्वेदिक इलाज के बारे में।

हल्दी

हल्दी में कई चमत्कारी गुण होते हैं। आप शायद ही ये बात जानते होंगे कि हल्दी हमारे लीवर में होने वाले रैडिकल डैमेज की मात्रा को कम करती है। हल्दी अन्य पारंपरिक दवाओं की तुलना में दर्द से राहत दिलाने में ज्यादा असरदार मानी जाती है। हल्दी फैट को पचाने में मदद करती है और साथ ही शरीर में पित्त का निर्माण करती है, जो हमारे लीवर के लिए प्राकृतिक डीटॉक्सिफायर का काम करता है।

एलोवेरा और आंवला का जूस

एलोवेरा और आंवला का जूस सिरोसिस से होने वाले लिवर डैमेज को कंट्रोल करने में काफी मदद करता है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के मुताबिक, रोजाना सुबह खली पेट 5-5ml एलोवेरा और आंवले के जूस को मिलाकर पीने से काफी राहत मिल सकती है।

अर्जुन की छाल

अर्जुन का पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। ये कई बीमारियों को ठीक करने में मदद करता है। अर्जुन की छाल का इस्तेमाल सदियों से आयुर्वेदिक दवा के रूप में किया जा रहा है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार, लिवर सिरोसिस में भी इसके सेवन से बहुत फायदा मिलता है। ऐसे में लिवर सिरोसिस के मरीज हर रोज दिन में दो बार सुबह और रात में अर्जुन की छाल को पानी में अच्छे से उबालकर इसे आधा गिलास पिएँ, इससे काफी आराम मिलेगा।

पपीता

पपीता पाचन के लिए सबसे अच्छा फल माना जाता है। जो भी व्यक्ति लिवर सिरोसिस से पीड़ित है, वह रोजाना ताजा पपीते का सेवन करे। ना सिर्फ पपीता बल्कि इसके बीज भी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगे। यदि आप अपने लिवर को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो पपीते का रस निकालकर इसमें नींबू को मिक्स करके फिर इसका सेवन करें। इससे मरीज को काफी आराम मिलेगा।

सेब

सेब ऐसा फल है जिसका रोजाना सेवन करने से आप हर बीमारी से दूर रहेंगे। इसमें पेक्टिन (Pectin ) होता है, जो पाचन तंत्र से विषाक्तता को कम करके लिवर को स्वस्थ रखने में मदद करता है। ऐसे में आप रोजाना अपनी डाइट में दो सेब शामिल करें। ये लिवर सिरोसिस से आराम दिलाने में प्रभावी हो सकता है।

तुलसी दल

तुलसी भी औषधीय गुणों से भरपूर पौधा है। तुलसी के पत्तों में हेपाटो प्रोटेक्टिव गुण मौजूद होता है, जो हमारे लिवर को ख़राब होने से बचाता है। ऐसे में लिवर सिरोसिस के मरीजों को रोजाना तुलसी के पत्तों से बनी चाय या जूस पीना चाहिए।

मुलेठी

वैसे तो मुलेठी का सेवन गले को ठीक करने के लिए किया जाता है लेकिन ये पेट से संबंधित समस्याओं को भी दूर करने में मदद करती है। इतना ही नहीं मुलेठी लिवर से संबंधित समस्याओं को भी दूर करती है। इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी गुण और ग्लिसराइजिक एसिड मौजूद होता है जो हमारे शरीर की इम्युनिटी को तेजी से बढ़ाता है। ऐसे में लिवर से संबंधित मरीजों के लिए मुलेठी का सेवन करना काफी फायदेमंद साबित होगा।

त्रिफला

त्रिफला भी एक बेहद ही चमत्कारी और शक्तिशाली आयुर्वेद जड़ी-बूटी मानी जाती है। इसके औषधीय गुण लिवर के लिए फायदेमंद होते हैं। लिवर की बीमारी से ग्रसित मरीज रोजाना रात में एक गिलास पानी के साथ एक चम्मच त्रिफला का सेवन लिवर डैमेज को कम करने का काम करता है।

पिप्पली

पिप्पली का उपयोग भी एक बेहतरीन आयुर्वेदिक औषधि के रूप में किया जाता है। ये कई बड़ी बीमारियों को ठीक करने में कारगर साबित होती है। लिवर से जुड़ी बीमारियों में आराम पाने के लिए पिप्पली का सेवन किया जाता है। पिप्पली में पिपरिन, ग्लूकोसाइड्स और पिपलार्टिन मौजूद होता है, जो हमारे लिवर को मजबूत बनाने में मदद करता है। साथ ही ये इम्युनिटी को भी बेहतर बनाता है।

अस्थमा ने कर दिया है सांस लेना मुश्किल? आयुर्वेदिक उपचार से जड़ से खत्म करें बीमारी

दुनियाभर में कई ऐसी बीमारियां हैं जिसके होने पर इंसान को भनक भी नहीं लगती है और फिर धीरे-धीरे वह बीमारी गंभीर होती चली जाती है। हमारे देश में दिन-प्रतिदिन वायु प्रदुषण भी बढ़ता जा रहा है, जिससे सांस संबंधित बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। इन्हीं में से एक बीमारी है अस्थमा। आज के समय में इस बीमारी ने हर दूसरे व्यक्ति को जकड़ रखा है। अस्‍थमा को श्‍वास रोग के नाम से भी जाना जाता है। अस्थमा सांस लेने में कठिनाई पैदा करता है, इस वजह से व्यक्ति को घबराहट होने लगती है। अस्थमा में श्वास नलियों की सूजन और अकड़न आ जाती है और फिर श्वसनमार्ग संकुचित हो जाता है। अस्थमा से फेफड़े काफी ज्यादा प्रभावित होते हैं। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 17।23 मिलियन यानी करीब 1 करोड़ 72 लाख से अधिक अस्थमा रोगी हैं। आमतौर पर अस्थमा के मरीज इस बीमारी का इलाज एलोपैथी के जरिए करवाते हैं। लेकिन आयुर्वेद में भी अस्थमा का सटीक इलाज मौजूद है। हम आपको आज इस आर्टिकल के माध्यम से अस्थमा क्या होता है, अस्थमा क्यों होता है, अस्थमा कितने प्रकार का होता है, अस्थमा के लक्षण क्या हैं, अस्थमा से बचाव के तरीके और अस्थमा के आयुर्वेदिक इलाज के बारे में बता रहे हैं। ये सभी जानकारी पाने के लिए आप आर्टिकल तो अंत तक जरूर पढ़ें।

अस्थमा क्या होता है?

अस्थमा के बारे में बाकी सब चीजें जानने से पहले आपको ये जानना जरूरी है कि आखिर अस्थमा होता क्या है? दरअसल, जब भी हम मुंह या नाक से सांस अंदर लेते हैं, तो ये गले के जरिए नीचे जाती है और फिर एयरवेज के जरिए फेफड़ों तक पहुँचती है। फेफड़ों के अंदर बहुत से छोटे-छोटे वायुमार्ग यानी एयरवेज होते हैं, जो हवा से ऑक्सीजन लेते हैं और उन्हें रक्त प्रवाह में पहुंचाने में मदद करते हैं। जब उस वायुमार्ग में सूजन आ जाती है, तब अस्थमा के लक्षण दिखने लगते हैं। इसके कारण आसपास की मांसपेशियों में भी तनाव आ जाता है। फिर वायुमार्ग में बलगम भर जाता है। इससे यहां से जो हवा गुजरती है, उसकी मात्रा में कम हो जाती है। ऐसे में अस्थमा का अटैक आता है और खांसी और छाती में जकरण भी महसूस होने लगती है।

अस्थमा होने के क्या कारण हैं?

वैसे तो अस्थमा होने के कई कारण हैं, लेकिन इनमें से कुछ प्रमुख कारण के बारे में हम आपको बता रहे हैं।

  • जो माता-पिता अस्थमा से ग्रसित होते हैं, उनके बच्चों को भी ये बीमारी होने की संभावना ज्यादा रहती है।
  • जिन भी लोगों को बचपन में वायरल इन्फेक्शन का ज्यादा खतरा रहता था, उन्हें भी अस्थमा होने का खतरा बना रहता है।
  • धुएं, कोहरा या फिर धूल व मिट्टी इत्यादि के लगातार संपर्क में आने से अस्थमा हो सकता है।
  • श्वसन नलिकाओं में इंफेक्शन भी अस्थमा होने का एक कारण है।
  • तेज-तेज चलने से भी कई बार अस्थमा की तकलीफ होने लगती है।
  • कई बार असहनीय पदार्थ के सेवन के कारण भी अस्थमा की तकलीफ हो सकती है।

अस्थमा कितने प्रकार का होता है?

अस्थमा के अलग-अलग लक्षण के कारण इस बीमारी का वर्गीकरण किया गया है, जो इस प्रकार है।

सीजनल अस्थमा – इस प्रकार का अस्थमा पूरे साल नहीं होता बल्कि ये एक विशेष मौसम में ही मरीज को प्रभावित करता है।
अकुपेशनल अस्थमा – जो लोग किसी भी प्रकार के कारखाने में काम करते हैं, वो इस प्रकार के अस्थमा से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
नॉन एलर्जिक अस्थमा – जब कोई व्यक्ति ज्यादा टेंशन में रहता है, या फिर उसे हमेशा सर्दी-जुकाम रहता है, वो नॉन एलर्जिक अस्थमा कहते हैं।
एलर्जिक अस्थमा – जब किसी तेज गंध, या चीज़ से व्यक्ति को एलर्जी हो जाती है, तो उसे एलर्जिक अस्थमा कहते हैं।

अस्थमा के लक्षण क्या हैं?

  • बलगम वाली खांसी या सूखी वाली खांसी
  • हंसते समय या व्यायाम करते समय छाती में जकड़न होना
  • सांस की तकलीफ होना
  • बात करने में दिक्कत होना
  • बार-बार घबराहट होना
  • थकान होना
  • छाती में दर्द
  • तेज-तेज सांस लेना
  • बार-बार इन्फेक्शन होना
  • नींद आने में परेशानी होना
  • बेचैनी या घबराहट
  • सांस लेने में मुंह से सीटी जैसी आवाज निकलना
  • खांसते समय गले में दर्द होना

अस्थमा का अटैक आने के मुख्य कारण क्या हैं?

  • रेस्पिरेटरी इंफेक्शन जैसी स्वास्थ्य स्थितियां
  • एक्सरसाइज
  • एनवायरमेंटल इरिटेंट
  • एलर्जी
  • इंटेंस इमोशन्स
  • एक्ट्रीम वैदर कंडीशन
  • पेस्ट्स (कीट)
  • एस्पिरिन या नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) सहित कुछ अन्य दवाएं लेना

अस्थमा के मरीजों को किन चीजों से परहेज करना चाहिए?

यदि अस्थमा के मरीज खाने-पीने का खास ध्यान ना रखें तो ये बीमारी बढ़ती ही जाती है। ऐसे में हम आपको आज उन चीजों के बारे में बता रहे हैं जो आपको खाने में परहेज करना चाहिए।

  • पैकेटबंद फूड
  • अल्कॉहल और अचार
  • मूंगफली
  • ठंडी चीज
  • ज्यादा तली हुई चीजें

अस्थमा का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

यदि आप भी अस्थमा बीमारी के शिकार हैं, तो आपको काफी ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। दरअसल, अस्थमा के रोगियों को अटैक आने का खतरा काफी ज्यादा रहता है, ऐसे में ये आपके लिए घातक भी हो सकता है। अगर आपको सांस लेने में दिक्कत हो रही है और मौसम के साथ-साथ समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं तो हम आपको आज कुछ ऐसे साधारण घरेलू आयुर्वेदिक उपचार के बारे में बता रहे हैं, जो अस्थमा के खतरे को कम कर सकते हैं।

हर्बल टी

अस्थमा के असर को कम करने के लिए आप रोजाना अलग-अलग जड़ी बूटियों से बनी हुई हर्बल टी का सेवन कर सकते हैं। जिस हर्बल टी में अजवायन, तुलसी, काली मिर्च और अदरक होती है, वो अस्थमा के रोगियों के लिए काफी असरदार रहती है। इसके नियमित सेवन से कफ की समस्या कम होती है।

लहसुन

लहसुन भी अस्थमा के इलाज में काफी कारगर साबित हुआ है। रोजाना 30 मि।ली। दूध में लहसुन करीब 5 कलियाँ उबालकर इसका सेवन करने से अस्थमा जड़ से खत्म हो सकता है।

अजवाइन

अजवाइन भी अस्थमा के इलाज में काफी बेहतर साबित होती है। आप पानी में अजवाइन डालकर इसे अच्छे से उबाल लें और फिर इसकी भाप लें, इससे सांस लेने में तकलीफ दूर हो जाएगी। इसके अलावा यदि आप अजवायन के बीज और लौंग की समान मात्रा का 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन खाते हैं तो भी ये आपको काफी फायदा पहुंचाएगा।

आंवला पाउडर

रोजाना 2 चम्मच आंवला पाउडर में 1 चम्मच शहद मिलाकर यदि सुबह खाली पेट इसका सेवन करेंगे तो इससे अस्थमा कंट्रोल में रहेगा।

पीपल के पत्ते

अस्थमा को ठीक करने के लिए पीपल के पत्ते भी काफी फायदेमंद होते हैं। आप इन्हें सुखाकर जला लें और फिर छानकर शहद मिला लें। इसके बाद दिन में इसे 3 बार चाट लें, इससे कुछ ही दिनों में अस्थमा की समस्या दूर हो सकती है।

अडूसा की पत्तियां

अडूसा की पत्तियां भी अस्थमा का इलाज करने में काफी फायदेमंद होती हैं। यदि इसे रोजाना मरीज को दिया जाए तो काफी जल्दी आराम मिलता है। अडूसा शरीर में जाकर फेफड़ों में जमी कफ और गंदगी को बाहर निकालता है।

अंजीर

अंजीर का सेवन करने से कफ जमना बंद हो जाता है। रोजाना एक अंजीर को गर्म पानी में भिगोकर रख दें और सुबह खाली पेट अस्थमा के मरीज इसका सेवन करें। इससे सांस की नली में जमा हुआ बलगम बाहर निकलने लगता है और इन्फेक्शन फैलने से रुक जाता है।

हल्दी

औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी कई बीमारियों को दूर करने में मददगार साबित होती है। हल्दी में पाए जाने वाले सबसे शक्तिशाली तत्व की वजह से ही इसका रंग पीला होता है। दरअसल, हल्दी में मौजूद औषधीय और एंटीऑक्सीडेंट घटक सूजन को रोकने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में ये अस्थमा में भी असरदार साबित होते हैं। आप रोजाना हल्दी पाउडर का चाय या पानी के साथ सेवन कर सकते हैं।

यूरिक एसिड बढ़ने के क्या है लक्षण और कारण? जानें इसे कंट्रोल करने के आयुर्वेदिक उपाय

आज के समय में हर दूसरा व्यक्ति गलत लाइफस्टाइल और अनहेल्दी खानपान होने की वजह से कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहा है। कुछ तो ऐसी भी बीमारी होती हैं जिनके बारे में ज्यादातर लोग जानते तक नहीं हैं। ऐसी ही एक बीमारी है यूरिक एसिड। Uric acid शरीर में एक तरह का गंदा पदार्थ होता है जो हमारे खून में जमा होना शुरू हो जाता है। इसके कारण शरीर के कई हिस्सों में दर्द होने लगता है।  यूरिक एसिड के बढ़ने से ज्यादातर जोड़ों में दर्द, घुटनों में दर्द जैसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। वैसे तो बाजार में बढ़े हुए Uric acid को कम करने के लिए कई तरह की दवाइयाँ मौजूद हैं लेकिन आप शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि आप घर में ही कुछ आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनाकर बढ़े हुए यूरिक एसिड को कम कर सकते हैं। जी हां, आयुर्वेदिक उपायों को अपनाकर भी आप आसानी से बढ़े हुए यूरिक एसिड को कम करके जोड़ो के दर्द से छुटकारा पा सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे?

यूरिक एसिड की समस्या कब होती है?

हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, यूरिक एसिड के बढ़ने से शरीर के जोड़ों में तेज दर्द होने लगता है. पहले सिर्फ बुजुर्गों में ही ऐसी समस्या देखने को मिलती थी लेकिन अब कम उम्र के लोग भी इसका शिकार होने लगे हैं। जब भी हम प्यूरिन युक्त फूड्स अधिक मात्रा में खाते हैं, तब खून में Uric acid की मात्रा बढ़ जाती है। हालांकि हमारी किडनी यूरिक एसिड को फिल्टर कर उसे यूरिन के माध्यम से शरीर के बाहर निकाल देती है लेकिन जब प्यूरिन की मात्रा बढ़ जाती है तो किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती है और यूरिक एसिड ब्लड में मिलने लगता है।

यूरिक एसिड क्या होता है?

यूरिक एसिड खून में पाया जाने वाला एक रसायन होता है। यूरिक एसिड का निर्माण प्यूरीनयुक्त खाद्य पदार्थों की पाचन प्रक्रिया के दौरान होता है। हमारा शरीर किडनी की मदद से यूरिक एसिड को फ़िल्टर करता है। फिर वह पेशाब के साथ शरीर से बाहर निकल देता है। दरअसल, जब शरीर में प्यूरीन का लेवल काफी ज्यादा बढ़ जाता है तो किडनी उसे ठीक से फ़िल्टर नहीं कर पाती है। ऐसे में शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर के कई हिस्सों में दर्द की शिकायत होने लगती है।

यूरिक एसिड बढ़ने से क्या खतरा हो सकता है? 

शरीर में यूरिक एसिड बढ़ना यानी बीमारियों का प्रवेश होना। यूरिक एसिड के बढ़ते ही जोड़ों में दर्द, सूजन, गाउट और गठिया जैसी बीमारी उतपन्न हो जाती हैं। साथ ही यूरिक एसिड किडनी के काम को भी प्रभावित कर देता है। यदि कोई व्यक्ति डायबिटीज या हार्ट का मरीज है, तो उसे और भी कई समस्याएँ हो सकती हैं। दरअसल, कई बार किडनी यूरिक एसिड को बाहर नहीं निकाल पाती है, ऐसे में यूरिक एसिड क्रिस्टल का रूप ले लेता है और फिर वह शरीर में जोड़ो के आसपास जमा होने लगता है। इससे शरीर में जोड़ो का दर्द उत्पन्न हो जाता है।

यूरिक एसिड बढ़ने के लक्षण क्या हैं?

  • जोड़ों में दर्द 
  • उंगलियों में सूजन-दर्द 
  • जोड़ों में गांठ की शिकायत
  • उठने-बैठने में परेशानी 
  • गुर्दे की पथरी 
  • थकान, बुखार और ठंड 

यूरिक एसिड को कम करने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

  • यूरिक एसिड बढ़ाने वाली दवाएं ना खाएं। 
  • कॉफी और चाय का सेवन कम करें। 
  • वजन कम करें। 
  • फाइबर रिच फूड और विटामिन सी डाइट में शामिल करें। 
  • प्यूरिन रिच फूड्स का सेवन करने से बचें।
  • नशीले पदार्थों से दूरी बनाकर रखें। 
  • एयरेटेड ड्रिंक्स में हाई शुगर होता है, जितना हो सके इनसे बचें.
  • ज्यादा फ्रक्टोज वाले फलों का सेवन ना करें। 
  • पालक, ब्रोकली, हरी मटर, आदि जैसी प्यूरीन वाली सब्जियां खाने से बचें। 
  • पानी ज्यादा मात्रा में पिएं।
  • मीट का सेवन ना करें। 
  • रोजाना एक्सरसाइज या व्यायाम करें।  
  • रात में जल्दी भोजन करने की कोशिश करें।

यूरिक एसिड को कम करने का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?

आयुर्वेद के मुताबिक, शरीर में जब यूरिक एसिड बढ़ जाता है तो इससे पथरी और गठिया रोग होता है। हम आपको आज कुछ ऐसे आयुर्वेदिक नुस्खें बता रहे हैं जो  यूरिक एसिड के लक्षणों को दूर करने में बेहद असरदार साबित होते हैं। आइए जानते हैं इन आयुर्वेदिक नुस्खों के बारे में।

गिलोय 

गिलोय को सबसे शक्तिशाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटी माना जाता है। गिलोय इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के साथ-साथ Uric acid को कम करने के लिए भी काफी असरदार साबित हुई है। इससे शरीर में पित्त की मात्रा कम होती है और वात दोष भी कम होता है।

सौंठ और हल्दी

सौंठ और हल्दी का पाउडर शरीर में Uric acid को कम करने में मदद करता है। साथ ही इसके सेवन से जोड़ो के दर्द में भी काफी आराम मिलता है। आप चाहे तो सौंठ और हल्दी के पाउडर में पानी मिलाकर उसे दर्द वाली जगह पर भी लगा सकते हैं।

काली किशमिश

काली किशमिश के सेवन से हडिडयां मजबूत होती हैं। Uric acid से होने वाले दर्द से राहत पाने के लिए आप रोजाना रात में काली किशमिश को भिगोकर रख दें और सुबह इसका सेवन करें. इससे आपको काफी आराम मिलेगा।

नीम 

औषधीय गुणों से भरपूर नीम को कई बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। Uric acid के मरीजों के लिए भी ये काफी फायदेमंद है। आप नीम के पेस्ट को दर्द वाली जगह पर लगा लें, इससे दर्द और सूजन दोनों से ही राहत मिलेगी।

त्रिफला

भीभीतकी, हरीतकी और आंवला से मिलकर बनने वाला त्रिफला भी Uric acid के मरीजों के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। सुबह रोजाना खाली पेट त्रिफला पाउडर को एक ग्लास गर्म पानी में मिलाकर पीने से काफी आराम मिलेगा।

गोखरू 

गोखरू का फल शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। आप ताजे का सालभर पुराने गोखरू के फल को अच्छे से कुचलकर इसे पानी में भिगो दें और फिर इसे एक-दो दिन तक पी लें। हालांकि, तीन दिन से ज्यादा इस पानी का इस्तेमाल न करें।

वरूण चूर्ण

वरूण चूर्ण भी आयुर्वेद में सबसे शक्तिशाली और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर दवाई मानी जाती है। वरूण चूर्ण का सेवन करने से जोड़ो के दर्द और सूजन दोनों से राहत मिलती है। साथ ही ये ब्लड में Uric acid को बढ़ने से भी रोकता है।

मुस्ता 

मुस्ता भी Uric acid को कण्ट्रोल करने के लिए सबसे असरदार आयुर्वेदिक जड़ी बूटी मानी जाती है। आप मुस्ता को हल्का दरदरा पीस लें और फिर इसे रातभर पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उठकर आप इस पानी को अच्छे से उबालकर पी लें।

नींबू पानी 

नींबू में अधिक मात्रा में विटामिन-C पाया जाता है जो शरीर में एसिडिक प्रभाव पैदा करता है। इससे Uric acid का स्तर कम होने लगता है। रोजाना सुबह उठकर गुनगुने पानी में नींबू निचोड़कर उसका सेवन करने से आपको काफी फायदा पहुंचेगा।

कमर के निचले हिस्से में होने वाला दर्द ले सकता है गंभीर रूप, अपनाएँ ये घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खें

उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई तरह की परेशानियां होने लगती है। अब ना सिर्फ बुढ़ापे में बल्कि जवानी में भी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है बदलती लाइफस्टाइल और शारीरिक हरकत में कम। दरअसल, दिन का ज्यादातर समय ऑफिस में घंटों कुर्सी पर बैठे-बैठे निकल जाता है। इसके अलावा हेल्दी खाने की जगह जंक फ़ूड का सेवन बढ़ गया है। साथ ही एक्सरसाइज या व्यायाम की कमी शरीर में कई तरह की बीमारियां बढ़ा देती है। सबसे ज्यादा अगर लोग किसी दिक्कत से परेशान रहते हैं तो वो है कमर दर्द।

पीठ दर्द, कमर दर्द, या बैक पैन आम शारीरिक बीमारियों में से एक है। ये बीमारी हर दूसरे व्यक्ति को अपने चपेट में ले लेती है। बदलती लाइफस्टाइल और खासकर ऑफिस में लंबे समय तक एक ही जगह गलत पॉश्चर में बैठने के कारण कमर के निचले हिस्से में दर्द होना शुरू हो जाता है। दरअसल, इससे रीढ़ को सहारा देने वाली मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है और फिर उनमें अकड़न आ जाती है। इससे पहले तो कमर दर्द होना शुरू हो जाता है। फिर ये दर्द धीरे-धीरे कमर के निचले हिस्से तक पहुँच जाता है। कुछ समय तक तो लोग इसे आम समझकर नजरअंदाज करते हैं, लेकिन अगर कमर के निचले हिस्से में दर्द लंबे समय तक बना रहे तो इसे इग्नोर नहीं करना चाहिए। आमतौर पर कमरदर्द या कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए आप आयुर्वेदिक इलाज की मदद ले सकते हैं। आप साधारण घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे अपनाकर कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द को दूर कर सकते हैं। हम आपको इस आर्टिकल में कमर के निचले हिस्से में दर्द होना कारण, इसके लक्षण और इससे राहत पाने के आयुर्वेदिक उपायों के बारे में बताएंगे।

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने के क्या कारण हैं?

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने के कई कारण हैं जिनके बारे में हम आपको बता रहे हैं-

ख़राब पॉश्चर

दरअसल, जब भी आप लंबे समय तक गलत तरीके से बैठते हैं तो इससे मांसपेशियों में खिंचाव होने लगता है। इसके अलावा गलत तरीके या गलत पॉश्चर में घूमने से भी पीठ के निचले हिस्से में दर्द महसूस होने लगता है। इसके अलावा लंबे समय तक एक ही जैसी पोजीशन में बैठने से भी कमर के निचले हिस्से में दर्द होना शुरू हो जाता है।

मांसपेशियों में मोच आना

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने का एक और कारण मांसपेशियों में मोच आना भी हो सकता है। दरअसल, कई बार गलत तरीके से बैठने और उठने से या फिर गलत तरीके से एक्‍सरसाइज करने से मांसपेशियों में खिंचाव हो जाता है। इससे बाद में दर्द होने लगता है।

किडनी में पथरी होना

कई बार लोअर बैक पैन किडनी में पथरी होने कारण भी होने लगता है। इससे असहनीय दर्द होता है। ये दर्द पीठ के निचले हिस्से तक फ़ैल जाता है। जब आपको मूत्र में रक्त, बार-बार पेशाब आना और मतली जैसे लक्षणों के साथ पीठ के निचले हिस्से में भी दर्द होने लगे तो आप तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

अकड़न

इन दिनों महिलाओं में अकड़न की समस्या आम हो गई है। अकड़न के कारण पीठ निचले हिस्से की मांसपेशियां ज्यादा सिकुड़ जाती है या फिर अकड़ जाती है। ऐसे में कमर अंदर घुस जाती है और हिप्स ऊपर की तरफ निकल जाते हैं। इससे शरीर का शेप भी भद्दा लगता है और हमेश लोअर बैक पैन होने लगता है।

कमजोर कोर मांसपेशियां

जब रीढ़ की हड्डी को सुरक्षित ना किया जाए तो तो कमर में दर्द होना शुरू हो जाता है। कोर मसल्स रीढ़ की हड्डी से दोनों तरफ से जुड़ी होती हैं। अगर कोर कमजोर होती है तो रीढ़ की हड्डी में दर्द होने लगता है। ये दर्द निचले हिस्से तक फ़ैल जाता है।

कमर के निचले हिस्से में दर्द होने के लक्षण क्या है?

  • पीठ पर खिंचाव
  • अचानक दर्द होना
  • सुन्न होना
  • चेहरे की चमक खो जाना
  • रीढ़ की हड्डी का दबाव
  • वजन बढ़ना
  • तनाव
  • दर्द का पैरों की तरफ बढ़ना

कमर के निचले हिस्से में दर्द से बचाव के आयुर्वेदिक उपाय क्या हैं?

यदि आप भी हल्के या गंभीर लोअर बैक पैन यानी कमर के निचले हिस्से में दर्द से परेशान हैं तो हम आपको आज कुछ ऐसे सरल आयुर्वेदिक उपाय बता रहे हैं, जिन्हें आप घर में अपनाकर इस दर्द से राहत पा सकते हैं।

अदरक

कमर के निचले हिस्से में दर्द से आपको अदरक राहत दिला सकती है। आप ताज़ी अदरक के चार-पांच टुकड़े लें और उसमें डेढ़ कप पानी डालकर करीब 15 मिनट तक उबालें। जब वह ठंडा हो जाए तो आप उस पानी में जरा-सा शहद मिलाकर पी लें। आप अदरक का पेस्ट बनाकर दर्द वाली जगह पर भी लगा सकते हैं। इससे आपको राहत मिलेगी।

सरसो का तेल

सरसो का तेल हर तरह के दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है। आप सरसो के तेल को हल्का गर्म करके उसे दर्द वाले हिस्से पर लगाकर हल्के हाथ से मालिश करें। आप चाहे तो सरसो के तेल में 10-12 लहसुन की कलियां और एक चम्मच अजवाइन डालकर उसे अच्छे से उबाल लें। फिर आप इसे ठंडा करके मालिश कर लें।

खसखस के बीज

कमर दर्द और कमर के निचले हिस्से में दर्द से राहत दिलाने में खसखस के बीज काफी असरदार है। आप आधा कप खसखस के बीज और उसमें थोड़ी सी मिश्री डालकर पीस लें। फिर इसे रोजाना सुबह और शाम को दूध में एक चम्मच डालकर पी लें।

तुलसी

कई चमत्कारी गुणों से भरपूर तुलसी कमर और उसके निचले हिस्से में होने वाले दर्द को ठीक करने में राहत दिलाएगी। आप एक कप पानी में तुलसी की 10 पत्तियां डालकर उबाल लें। फिर आप उसे ठंडा करने के बढ़ उसमें एक चुटकी नमक डालकर पी लें।

गेहूं

रोजाना खाने में इस्तेमाल होने वाले गेंहूं भी आपके लोअर बैक पैन से राहत दिलाने में मदद करेंगे। दरअसल, गेहूं में कई इसे दर्द निवारक गुण मौजूद होते हैं जो कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से छुटकारा दिला सकते हैं। आप रोजाना एक ग्लास पानी में एक मुट्ठी गेहूं डालकर रख दें और अगले दिन गेहूं को एक ग्लास दूध में डालकर गर्म कर लें। आप इसका दिन में दो बार सेवन करें, इससे आपको कमर दर्द से राहत मिल सकती है।

लहसुन

लहसुन वैसे तो शरीर के हर हिस्से के लिए बहुत फायदेमंद है। लेकिन आप इसका इस्तेमाल कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द को कम करने के लिए भी कर सकते हैं। आप सरसो के तेल में लहसुन की कुछ कलियों को डाल दें और उसे अच्छे से उबाल लें। फिर तेल ठंडा होने पर आप उस तेल से दर्द वाली जगह पर मसाज करें। इससे आपके दर्द में काफी राहत मिलेगी।

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